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नक्सलवाद का नाम सुनते ही आपके बंदूक की ठांय-ठांय की आवाज आने लगती होगी। साथ ही टीवी चैनलों की लाल पट्टी वाली ब्रेकिंग और अखबारों की बैनर स्टोरी। इनमें अक्सर स्थानीय निवासियों की मौत, जवानों पर हमला और हत्या, विकास कार्यों में बाधा डालने की खबरें होती है। खैर अब और नहीं…, देश में नक्सलवाद अब जल्द खत्म होने वाला है। खासतौर से छत्तीसगढ़ में ये 31 मार्च 2026 तक खत्म हो जाएगा। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं। ये दावा देश के गृहमंत्री अमित शाह ने किया है। उनकी मानें तो देश में नक्सलवाद के खात्मे का खाका सरकार ने बना लिया है। यानी अब नक्सलियों के खात्मे का काउंटडाउन शुरू हो गया है। सरकार के इस दावे के साथ ही सवाल उठता है कि आखिर आदिवासी इलाकों में नक्सलवाद पनपा क्यों और कैसे, क्योंकि आदिवासियों को तो दुनियादारी से ज्यादा मतलब होता ही नहीं। चर्चा इस पर भी हो रही है कि सरकार के पास इसको लेकर प्लान क्या है और भी इसके लिए क्या रास्ते हो सकते हैं?
छत्तीसगढ़ नक्सलवाद की बड़ी समस्या से जूझ रहा है। यह समस्या राज्य के विकास और लोगों के जीवन को गहराई से प्रभावित करती है। छत्तीसगढ़ उन राज्यों में से एक है, जहां नक्सलवाद की जड़ें सबसे गहरी हैं। नक्सलवाद मुख्यतः आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय है जो भारत आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बन गई है।
नक्सलवाद के मुख्य कारण
नक्सलियों ने स्थानीय आदिवासियों की समस्याओं, जैसे भूमि अधिकार, शोषण और विकास की कमी को अपने पक्ष में इस्तेमाल किया। छत्तीसगढ़ के लोगों को लगा कि खनिज संपदा के दोहन से स्थानीय लोगों की उपेक्षा हो रही है। उनके अधिकार छीने जा रहे हैं। इससे उनमें आर्थिक असमानता आ रही है। उनके सामने भविष्य का संकट खड़ा हो रहा है। यही कारण था कि नक्सली आंदोलन को और बढ़ावा मिल गया।

आर्थिक असमानता: छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी क्षेत्रों में गरीबी और बेरोजगारी व्यापक हैं। खनिज संपदा से समृद्ध होने के बावजूद, इन क्षेत्रों में विकास नहीं हुआ।
आदिवासियों के अधिकारों का हनन: भूमि अधिग्रहण, खनिज उत्खनन, और विस्थापन के कारण आदिवासी समुदायों को उनके मूल निवास से बेदखल किया गया।
प्रशासनिक विफलता: दूर-दराज के क्षेत्रों में प्रशासनिक ढांचा कमजोर है, और स्थानीय लोगों की समस्याओं को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है।
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: इन क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है, जिससे स्थानीय लोग नक्सलियों के प्रभाव में आ जाते हैं।
सरकारी भ्रष्टाचार: सरकारी योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचता, जिससे लोगों में असंतोष बढ़ता है।
नक्सलवाद का प्रभाव
नक्सलवादियों का मानना है कि वे हिंसा के माध्यम से समाज में बदलाव ला सकते हैं। ये लोकतंत्र एवं लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ हैं और जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को खत्म करने के लिये हिंसा का सहारा लेते हैं। ये समूह देश के कम विकसित क्षेत्रों में विकासात्मक कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं और लोगों को सरकार के प्रति भड़काने की कोशिश करते हैं।

जनहानि और असुरक्षा: नक्सली हमलों में नागरिकों, सुरक्षा बलों और सरकारी अधिकारियों की जान जाती है।
विकास परियोजनाओं पर प्रभाव: नक्सलवाद के कारण कई विकास परियोजनाएं बाधित होती हैं। सड़कों, स्कूलों, और अस्पतालों पर हमले आम हैं।
सामाजिक विभाजन: नक्सलवाद ने समाज में भय और अविश्वास का माहौल पैदा किया है।
राजस्व की हानि: खनिज उत्खनन और व्यापार पर नक्सलियों के हमलों से राज्य के राजस्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
मोदी युग में कमजोर हुआ नक्सलवाद
पिछले कुछ सालों में नक्सलियों का आंदोलन कमजोर हुआ है। गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार हिंसा की घटनाओं में 41% की कमी आई है। सरकार ने लोकसभा में बताया था कि अब नक्सल समस्या 90 जिलों से सिमटकर 46 जिलों में पहुंच गई है। यानी साफ है कि देश में नक्सलियों की कमर टूट चुकी है। इसके साथ ही केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से ही नक्सलियों के खिलाफ लगातार एनकाउंटर अभियान चलाए जा रहे हैं। इसके डर से भी नक्सली मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं।
2014 के बाद से क्या-क्या हुआ?
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में कुछ आंकड़े पेश किये थे। इसके अनुसार, अब नक्सलवाद काफी सीमित हो गया है। अब ये महज 38 जिलों में सिमट गया है। इसमें छत्तीसगढ़ के कुल 15 जिले, ओडिशा के 7 और झारखंड के महज 5 जिले हैं। उन्होंने दावा किया है कि साल 2014 के बाद से हालात में सुधार हुआ है। देखें लोकसभा में सरकार ने क्या बताया।

तय तारीख के पीछे क्या दम है?
15 दिसंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बस्तर पहुंचे थे। यहां उन्होंने बस्तर ओलंपिक 2024 के समापन समारोह को संबोधित किया। इस दौरान शाह ने कहा कि पिछले 10 साल में हमने कई मोर्चों पर लड़ाई लड़ी है। आज, सुरक्षा कर्मियों की मौतों में 73 प्रतिशत की कमी आई है। 1973 से नक्सलियों के गढ़ रहे क्षेत्रों में नागरिक मौतों में 70 प्रतिशत की कमी आई है। 31 मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा। आइये जानें इस दावे के पीछे आखिर इसके पीछे क्या-क्या कारण है या कौन से कदम है जो सरकार ने उठाए हैं।

क्या है 2026 में खात्मे का प्लान?
कुछ दिनों पहले गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ सरकार की प्रशंसा की है। उन्होंने मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, पुलिस महानिदेशक और पूरी टीम को बधाई देते हुए बताया कि जनवरी से अब तक राज्य में 194 नक्सली मारे गए हैं। इसके साथ ही 801 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है। वहीं 742 ने नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। इसके साथ ही केंद्र और राज्य सरकार लगातार आत्मसमर्पण को प्रोत्साहित कर रही है। वहीं विकास कार्यों को बढ़ावा देने के साथ सख्त कार्रवाई भी की जा रही है। इसी का परिणाम है कि नक्सली लगातार कम हो रहे हैं और केंद्र सरकार मार्च 2026 तक इनके खात्मे की बात कर रही है।

विकास कार्यों पर बढ़ा फोकस
केंद्र सरकार की ओर से मिली जानकारी के अनुसार, सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) योजना के अंतर्गत 2004-2014 के दौरान जहां नक्सल प्रभावित इलाकों में 1,180 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। वहीं 2014-2024 के बीच यह राशि बढ़कर 3,006 करोड़ रुपये हो गई है, जो लगभग तीन गुना है। एसआरई योजना नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यों को बढ़ावा देती है। केंद्रीय सहायता योजना के तहत छत्तीसगढ़ में पिछले 10 वर्षों में 3,590 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। 2019 से पहले सैनिकों के लिए केवल दो हेलीकॉप्टर उपलब्ध थे, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़कर 12 हो गई है। इसमें BSF के 6 और वायुसेना के 6 हेलीकॉप्टर शामिल हैं।
नक्सलियों के बड़े हमले
आजादी के बाद काफी हद तक नक्सलबाड़ी का आंदोलन किसानों और मजदूरों के लिए खड़ा था। 1972 में चारु मजूमदार पकड़े गए और उनकी जेल में मौत हो गई। इसके बाद आंदोलन अपने रास्ते से भटक गया और सियासी हो गया। नक्सलवादी आंदोलन के प्रणेता कानू सान्याल ने आंदोलन के राजनीति का शिकार होने के कारण 2010 में आत्महत्या कर ली। उनकी मौत से पहले और बाद में रास्ते भटके नक्सलियों ने कई बड़े हमले किए। इसमें से ज्यादातर हमले छत्तीसगढ़ में किए गए हैं।
6 अप्रैल 2010: दंतेवाड़ा जिले जंगल में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 75 जवानों सहित 76 लोगों की हत्या कर दी, इसमें 8 माओवादी मारे गए थे।
8 अक्टूबर 2009: गढ़चिरौली जिले में लहरी पुलिस थाने पर हमला करके 17 पुलिस वालों की हत्या।
5 फरवरी 2010: बंगाल के सिल्डा में करीब 100 नक्सलियों ने पुलिस कैंप पर हमला करके 24 जवानों की हत्या कर दी।
4 अप्रैल 2010: उड़ीसा के कोरापुट जिले में पुलिस की एक बस पर नक्सलियों ने हमला कर दिया जिसमें 10 जवान शहीद हो गए और 16 घायल हो गए।
1 मई 2019: गढ़चिरौली में हुए एक हमले में 15 जवान शहीद हो गए
छत्तीसगढ़ में हुए बड़े नक्सली हमले
15 मार्च 2007: बीजापुर के बोदली पुलिस कैंप पर अचानक से हमला हुआ। इसमें 55 जवान शहीद हुए थे।
29 अगस्त 2008: दंतेवाड़ा के जगरगुंडा में 200 नक्सलियों ने सुरक्षाबलों पर हमला कर दिया। इसमें 12 जवान शहीद हुए थे।
20 अक्टूबर 2008: बीजापुर के मोडु पाल और कोमपल्ली नक्सल अटैक में 12 जवान शहीद हो गए थे।
12 जुलाई 2009: राजनांदगांव के मानपुर में नक्सलियों ने आईईडी ब्लास्ट किया। इसमें 30 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे।
8 अक्टूबर 2009: राजनांदगांव के लहेरी पुलिस चौकी पर नक्सलियों ने हमला कर 17 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी।
25 मई 2013: सुकमा में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला कर कई कांग्रेस नेताओं समेत 25 लोगों की हत्या कर दी गई।
13 मार्च 2018: सुकमा में CRPF के जवानों पर हमला हुआ। जिसमें 9 जवान शहीद हो गए थे।
4 अप्रैल 2019: बस्तर में नक्सलियों एक BSF जवान की हत्या कर दी थी।
9 अप्रैल 2019: दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने बीजेपी विधायक भीमा मंडावी और उनके सुरक्षाकर्मियों की हत्या कर दी
4 अप्रैल 2021: बीजापुर में सुरक्षाबलों पर हमले में 23 जवान शहीद हो गए और 31 जवान घायल हुए।
30 जनवरी 2024: सुकमा डीआरजी और एसटीएफ के जवानों पर हमले में 3 जवान शहीद हुए, 15 जवान घायल हुए थे।
नक्सलवाद का समाधान
नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकार कई तरह की रणनीति पर एक साथ काम कर रही है। इसमें सुरक्षा एवं विकास से संबंधित उपायों के साथ-साथ आदिवासियों को उनके अधिकार दिलाने को लेकर सरकार प्रयासरत है। इसके साथ ही उनकी मान्यताओं को संरक्षित करने के काम किए जा रहे हैं। अलग-अलग राज्यों की सरकारें केंद्र के साथ मिलकर आत्मसमर्पण की नीतियों पर काम कर रही हैं। सड़क निर्माण के साथ ही आदिवासी इलाकों को संचार से जोड़ने के काम किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं कई स्थानों पर सरकार सख्ती से भी निपट रही है।

विकास पर जोर: दूरदराज के क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार किया जाना चाहिए।
स्थानीय समुदायों का सशक्तिकरण: आदिवासियों को भूमि अधिकार और रोजगार के अवसर प्रदान किए जाएं।
संवाद और पुनर्वास: नक्सलियों के साथ संवाद स्थापित कर उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने के प्रयास किए जाएं।
सुरक्षा बलों की प्रभावशीलता: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों को आधुनिक उपकरण और प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जाए।
स्थानीय प्रशासन की मजबूती: दूर-दराज के इलाकों में प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए।
जन-जागरूकता: स्थानीय समुदायों को नक्सलवाद के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाए।
नक्सलवाद जटिल समस्या
नक्सलवाद छत्तीसगढ़ और भारत के लिए एक जटिल समस्या है, लेकिन इसे प्रभावी नीतियों, समन्वित प्रयासों और दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति से हल किया जा सकता है। जब तक आदिवासी समुदायों को न्याय, सुरक्षा और विकास के अवसर नहीं मिलते, तब तक नक्सलवाद जैसी समस्याओं का समाधान मुश्किल है। इस दिशा में सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा ताकि छत्तीसगढ़ और अन्य प्रभावित क्षेत्रों में शांति और समृद्धि लाई जा सके। इसके लिए सबसे पहले आदिवासियों को भरोसे में लेना होगा, विश्वास दिलाना होगा कि सरकार उनके लिए, उनके उत्थान के लिए काम कर रही है।
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