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क्रांति का केंद्र रहा है प्रयाग कुंभ, जानें आजादी से पहले कैसे हिला ब्रिटिश सिंहासन

Dayitva Media Kumbh 2025
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Prayagraj Mahakumbh 2025: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाकुंभ के आयोजन का इतिहास तो करोड़ों साल पूर्व का है। मुख्य बात तो यह है कि इस आयोजन का उद्भव ही देवताओं और दानवों के युद्ध से शुरू होता है। यह युद्ध बुरी शक्तियों को ताकतवर होने से रोकने के लिए था। ताकि राक्षसों के हाथ अमृत न लगे और वो संसार में उत्पात न मचा पाएं। जबसे कुंभ का लिखित इतिहास मिलता है तभी से यह समाज और देश की दशा-दिशा तय कर रहा है। पहले इस पर मुगलों की नजर रही। इसके बाद आए अंग्रेजों ने इस पर अपना कब्जा जमा लिया। हालांकि इस बात के प्रमाण भी मिलते हैं कि दोनों ही आक्रांता इस आयोजन से खौफ खाते थे।

साल 1700 के आसपास मुगलों का पतन शुरू हो गया था। हालांकि इससे पहले 1600 में अंग्रेजों ने हिंदुस्तान में एंट्री ले ली थी। मुगलों के पतन के बाद 1757 में प्लासी का युद्ध हुआ। इसके बाद से अंग्रेजों ने सरकार चलाना शुरू किया। कुछ सालों तक सब ऐसा ही चलता रहा। धीरे-धीरे ब्रिटिश देश के तमाम हिस्सों में पहुंचने लगे। इस बीच उनके खिलाफ क्रांति की ज्वाला भी धधकती रही। यही कारण था कि अंग्रेज देश में होने वाले बड़े आयोजनों पर कड़ी निगरानी रखते थे और उन्हें रोकने का प्रयास करते थे।

अंग्रेजी सरकार में महाकुंभ

महाकुंभ का आयोजन अंग्रेजों और मुगलों के काल से पहले भी होता रहा है। पहले अखाड़े और संत इसके आयोजन का जिम्मा उठाते रहे हैं। हालांकि अंग्रेजों ने धीरे-धीरे इस पर अपनी कमान लगा दी। 1857 में महाकुंभ से उठे विद्रोह के बाद अंग्रेज सतर्क हो गए। उन्होंने 1870 में आयोजित कुंभ की कमान पूरी तरह अपने हाथों में ले ली। इसी महाकुंभ को सरकारी तौर पर पहला आधिकारिक महाकुंभ माना गया है। इसके बाद से अंग्रेजी शासन में 6 महाकुंभ हुए। 1894 से इसकी कमान जिला मजिस्ट्रेट को दी जाने लगी।

कुंभ से फूटी क्रांति

साल 1870 में अंग्रेज महाकुंभ की कमान अपने हाथों में लेते, इससे पहले कुंभ में क्रांति की ज्वाला धधक उठी थी। साल 1857 में देश भर में अंग्रेजों के खिलाफ लामबंदी हो रही थी। अंग्रेजों ने समझ लिया था कि हिंदुस्तान में राज करना इतना आसान नहीं है। 1857 की क्रांति में कम से कम 13,000 ब्रिटिश और सहयोगी सैनिक मारे गए थे। वहीं 40 हजार विद्रोहियों के साथ ही कई ब्रिटिश और भारतीय नागरिकों ने इस क्रांति में अपनी जान गंवाई थी।

जब देश भर में क्रांति का दौर चल रहा था। इसी दौरान प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ। देशभर से पहुंचे संतों और क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ योजना बनाने पर काम शुरू किया। लेखक मैकलीन ने प्रयागराज कुंभ के दौरान प्रयागवाल समुदाय की क्रांति और अंग्रेजी क्रूरता के बारे में लिखा है। उन्होंने इसे ‘इलाहाबाद की कुख्यात क्रूर शांति’ बताया है। मैकलीन के लेख के अनुसार, कर्नल नील की नजर महाकुंभ पर पड़ गई थी। उसने यहां भारी नरसंहार किया था। कुछ इतिहासकार तो इसे 19वीं सदी का भयंकर नरसंहार तक कहते हैं।

महाकुंभ से पहली क्रांति

प्रयागराज में आज का कंपनी बाग या अल्फ्रेड पार्क उन दिनों समदाबाद हुआ करता था। यहां महाकुंभ में व्यापार करने के लिए राजस्थान से आए मेवाती रह रहे थे। कुछ दिनों बाद देश में क्रांति ज्वाला फूट पड़ी थी। इस कारण मेवातियों ने भी क्रांतिकारियों का साथ देना शुरू कर दिया। 12 मई 1857 को अंग्रेज इलाहाबाद के अलोपीबाग स्थित गोदाम में गोला बारूद लाना चाह रहे थे। इसके लिए उन्होंने मेवातियों को आदेश दिया कि वो फौज का साथ दें। मेवाती तो पहले ही क्रांति के पक्ष में हो गए थे। इस कारण उन्होंने अंग्रेजी अफसरों के मनाने पर भी मना कर दिया।

जून का महीना आते-आते मेवातियों ने संगम के किले पर कब्जा कर लिया। इतना ही नहीं उन्होंने अंग्रेजों के हथियार और खजाने पर अपना कब्जा कर लिया। अब अंग्रेजी सरकार हिल गई थी। आक्रोश में आई सेना ने किले पर हमला कर दिया। हालांकि क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के हथियार से ही सेना को खदेड़ दिया। इस घटना के बाद कर्नल नील बौखला गया और उसने 6 जून को प्रयाग की धरती पर धावा बोलकर कत्लेआम शुरू कर दिया।

इलाहाबाद गजेटियर में इस क्रांति के बारे में जानकारी मिलती है। बताया जाता है कि 6 जून को ब्रिटिश फौज ने समदाबाद में कत्लेआम शुरू कर दिया था। करीब 7 दिन तक इलाके में लाशें ही नजर आ रहीं थी। अंग्रेजों ने किसी को नहीं छोड़ा। कई लाशों को तो उन्होंने खौफ फैलाने के लिए पेड़ों पर टांग दिया था। इतिहासकार बीएन पांडेय की किताब में दावा किया गया है कि इन 7 दिनों में 6 हजार से अधिक लोग मारे गए थे।

20वीं सदी में कुंभ की क्रांति

1857 की क्रांति के बाद अंग्रेज कुंभ को लेकर सतर्क हो गए थे। वो देशभर में आयोजित होने वालों कुंभ पर कई तरह की बंदिश लगा रहे थे। इसके बाद भी क्रांतिकारियों ने इन्हें अपना केंद्र बना लिया था। हरिद्वार, नासिक, उज्जैन तीनों ही कुंभों में देश की आजादी और सनातन के प्रचार के लिए प्रयास होते रहे हैं। हालांकि क्रांति की भूमि प्रयाग ही बनी रही।

1857 की क्रांति के बाद साल 1906 में एक बड़ी बैठक का जिक्र मिलता है। बताया जाता है इसी साल सनातन धर्मसभा ने प्रयाग महाकुंभ में बैठक की थी। यहीं से मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का संकल्प लिया गया था। इसके बाद से प्रयागराज और कुंभ आंदोलन के साथ राजनीति के केंद्र में बने रहे। CID की रिपोर्ट बताती है कि असहयोग और खिलाफत आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी प्रयाग कुंभ पहुंचे थे और उन्होंने लोगों को आंदोलन के लिए आमंत्रित किया था।

फरवरी 1921 में फैजाबाद की एक सभा में खुद महात्मा गांधी ने इस बात का जिक्र किया था कि वह 1918 में कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज गए थे। लेखक धनंजय चोपड़ा बकौल महात्मा गांधी लिखते हैं, ‘मैं पहले ही फैजाबाद आने वाला था, लेकिन इलाहाबाद में कुंभ स्नान के लिए गया था। कुंभ में सबसे ज्यादा लोग लंबे समय तक रहते हैं। इसलिए मैंने वहां डुबकी लगाई।’ कुछ इतिहासकार मानते हैं कि महात्मा गांधी के सियासी गुरु गोपाल कृष्ण गोखले ने साल 1915 में ही उन्हें प्रयाग कुंभ जाने की सलाह दी थी। इसके बाद इस महात्मा गांधी की इलाहाबाद यात्रा बेहद गुपचुप तरीके से प्लान की गई। जब वो वहां पहुंचे तो असहयोग और खिलाफत आंदोलन को रफ्तार मिल गई।

जमकर लगाया गया था टैक्स

कुंभ से क्रांति की आशंका के बाद भी अंग्रेजों को यहां व्यापार नजर आ रहा था। 1870 से कुंभ आयोजन अपने हाथों में लेने के बाद उन्होंने कर लगाना शुरू किया। हालांकि, इससे पहले 1810 में पहली बार अंग्रेजों ने रेग्युलेटिंग एक्ट के तहत माघ मेले में टैक्स वसूली शुरू कर दी थी। इसके बाद धीरे-धीरे इसे सभी जगहों पर इसे थोप दिया गया। 1882 में हुए प्रयाग कुंभ का ब्यौरा बताता है कि इस आयोजन में 20,228 रुपए खर्च हुए थे। इसके मुकाबले 49,840 रुपये की कमाई हुई थी। कहीं न कहीं यही कारण था कि अंग्रेजों ने कुंभ को क्रांति के बाद भी जारी रखा। हालांकि सख्ती बढ़ाई जाती रहीं हैं।

कुंभ का इतिहास

महाकुंभ मेले का आयोजन कब शुरू हुआ, इसकी शुरुआत किसने की थी। इसे लेकर कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलते हैं। हालांकि इसके बारे में जो सबसे पुराना लिखित रिकॉर्ड है वो चीनी यात्रा ह्वेनसांग के लेख में मिलता है। ह्वेनसांग हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान 629-645 ईस्वी में भारत की यात्रा पर आया था। यानी अगर आधुनिक युग की बात करें तो कुंभ का आयोजन 629-645 ईस्वी के आसपास माना जा सकता है। हालांकि, पौराणिक कथाओं के अनुसार, शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी। इससे संबंधित समुद्र मंथन का जिक्र भागवत पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत और रामायण में मिलता है।

कब से कब तक लगेगा कुंभ?

साल 2025 में प्रयागराज में लगने वाला महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलने वाला है। इस दौरान करोड़ों भक्त इस मेले में शामिल होने के लिए पहुंचेंगे। देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु संगम तट पर स्नान कर पुण्य लाभ लेंगे। इस पूरे मेले के दौरान शाही स्नान के दिन अधिक भीड़ जुटने की संभावना है।

देश में कहां-कहां लगता है कुंभ?

कुंभ का आयोजन प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक में होता है। हर स्थान में एक कुंभ के अलगे 12 साल बाद महाकुंभ लगता है। हालांकि प्रयागराज और हरिद्वार का कुंभ खास होता है। क्योंकि यहां अर्धकुंभ लगने की भी परंपरा है। ज्योतिष शास्त्र में कुंभ के समय को लेकर कुछ गणनाएं बताई गई है। इसी के आधार पर चारों शहरों में कुंभ का आयोजन होता है।

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क्या है कुंभ की कहानी?

पौराणिक कथाओं में ये मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत का कलश निकला तो देवता उसे असुरों से बचाने के लिए लेकर भागने लगे। अमृत की सुरक्षा चंद्रमा को दी गई, लेकिन उसे लेकर जाते समय उनके हाथों से 4 बूंदें धरती पर गिर गईं। जिन स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थी वहीं कुंभ का आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि कुंभ के समय वही काल परिस्थिति बनती है जो समुद्र मंथन के बाद बनी थी। इसी कारण इस आयोजन में भाग लेना परम पुण्य बताया गया है।

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  • श्यामदत्त चतुर्वेदी - दायित्व मीडिया

    श्यामदत्त चतुर्वेदी, दायित्व मीडिया (Dayitva Media) में अपने 5 साल से ज्यादा के अनुभव के साथ बतौर सीनियर सब एडीटर जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इससे पहले इन्होंने सफायर मीडिया (Sapphire Media) के इंडिया डेली लाइव (India Daily Live) और जनभावना टाइम्स (JBT) के लिए बतौर सब एडिटर जिम्मेदारी निभाई है। इससे पहले इन्होंने ETV Bharat, (हैदराबाद), way2news (शॉर्ट न्यूज एप), इंडिया डॉटकॉम (Zee News) के लिए काम किया है। इन्हें लिखना, पढ़ना और घूमने के साथ खाना बनाना और खाना पसंद है। श्याम राजनीतिक खबरों के साथ, क्राइम और हेल्थ-लाइफस्टाइल में अच्छी पकड़ रखते हैं। जनसरोकार की खबरों को लिखने में इन्हें विशेष रुचि है।

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