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– विकास मिश्र:
प्रयागराज में महाकुम्भ की छटा अभी से देखने को मिल रही है। महाकुम्भ के श्रीगणेश में अभी समय है, लेकिन उससे पहले विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक महामेले का महामंच सज गया है। साधु-संतों और रहस्यमय नागा संन्यासियों का महाकुम्भ मेले में आगमन आरंभ हो गया है। ढोल मंजीरे बज रहे हैं। संत भगवत्भजन में लीन हो रहे हैं। अखाड़े सज गए हैं और ठंड की पुरवइया में अखाड़ों की गगनचुम्बी धर्म ध्वजाएं फहरा रही हैं। ये धर्म ध्वजाएं संतों-महंतों के अखाड़ों की प्रतिष्ठा की वाहिका हैं। अखाड़ों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं ये धर्म ध्वजाएं। सभी अखाड़ों की अपनी अपनी धर्म ध्वजाएं हैं, जिन्हें देखकर लोग सहज ही आकर्षित हो जाते हैं।
धर्म ध्वजा की महिमा
सबसे पहले हम जानते हैं कि आखिर धर्म ध्वजा क्या है, क्या यह सिर्फ एक पताका या ज्ञंडा मात्र है, जिसे साधु-संत और अखाड़े अपनी प्रतिष्ठा के लिए लगाते हैं..? इस प्रश्न का उत्तर है नहीं। ध्वजा का अर्थ है शक्ति, निरंतर गतिमान, निरंतर ध्वनिमान। ध्वजा विजय का प्रतीक है। सनातन संस्था के आचार्य और धर्मशास्त्रों के प्रकांड विद्वान डॉ. अजीत तिवारी कहते हैं कि ध्वजा का मूल तत्व अग्नि है। ध्वजा का जो स्वरूप है वह अग्निरूप है। जिस तरह अग्नि की लपट तिकोने रूप में उठती है, कभी-कभी दो लपटें एक साथ उठती हैं और बीच के स्थान में रिक्तता होती है, उसी तरह ध्वजाएं भी निर्मित होती हैं। कहीं तिकोनी ध्वजाएं तो कहीं संयुक्त रूप से दो तिकोनी ध्वजाएं। धर्म के लिए ध्वजाएं सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि उनमें अग्नितत्व की प्रधानता है। चारों वेदों में सर्वप्रथम है ऋग्वेद। उसमें भी प्रथम सूक्त ही अग्निसूक्त है और उसके प्रथम मंत्र में अग्निदेव की ही वंदना की गई है-
अग्निमीडे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्।
होतारं रत्नधातारंरत्नधातमम्।।
अग्नि तेज से युक्त होती है, प्रकाशक होती है। अग्नि जगत को प्रकाशित करती है, उसी तरह ध्वजा का स्वरूप धर्म को प्रकाशित करता है। देश में जितने भी आचार्य हैं, चाहे वह शंकराचार्य हों, रामानुजाचार्य हों, निंबार्काचार्य हों, सबके त्रिदंड में ध्वजा का स्वरूप रहता है। ध्वजा जिस तरह वायु के वेग से डोलायमान रहती है, गतिशील रहती है, उसी तरह हमारे धर्म रूपी जो ध्वजा है वह अपनी गतिशीलता के कारण निरंतर अभिवृद्धि का प्रतीक बन जाती है। ध्वजा की गतिशीलता धर्म की निरंतरता और उसके प्रचार-प्रसार का प्रतीक है। इसी नाते संत महात्मा और अखाड़े धर्म ध्वजा को इतनी प्रतिष्ठा देते हैं।
धर्म ध्वजा के रंग और उसके प्रकार का भी अलग महत्व है। धर्म ध्वजा का रूप आम तौर पर त्रिकोण होता है। यह त्रिकोण कई बातों का परिचायक होता है। हमारे धर्मशास्त्रों, सनातन परंपराओं में त्रिदेव का वर्णन है यानी ब्रह्मा-विष्णु महेश। तो ये धर्मध्वजा त्रिदेव का प्रतीक होती है। तीन लोक हैं, स्वर्गलोक, मर्त्यलोक और पाताल लोक। तीन काल भी हैं, भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल। तीन गुण होते हैं सत, रजत और तमस। ईश्वर की तीन रचनाएं हैं देवता, मानव और दानव। तीन नाड़ियां हैं इडा, पिंगला और सुषुम्ना। तीन क्रियाएं भी हैं इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति। तो इन सभी त्रिगुणायतों का समाहार है त्रिकोणीय धर्म ध्वजा। बात अगर रंग की करें तो अग्नि की लपटों का रंग गेरुआ, लाल, रतनार, केसरिया या भगवा होता है, यही कारण है अग्नि स्वरूपा धर्म ध्वजाओं का रंग भी लगभग लाल या भगवा ही होता है। भगवा ही सनातन का प्रतिनिधि रंग है। यह अग्नि ही नहीं, ज्ञानशक्ति का भी रंग है। यह ब्रह्मचारियों के वस्त्रों का रंग है, संन्यासियों के वस्त्रों का रंग है। अग्नि स्वरूप भगवा रंग अंधकार का नाश करता है और इसका ज्ञान स्वरूप मानव को विनम्रता और मानवता प्रदान करता है।
अखाड़ों की धर्म ध्वजाओं का महत्व
प्रयागराज महाकुम्भ में साधु-संतों के सभी अखाड़ों का आगमन हो गया है। अखाड़ों में सबकी धर्म ध्वजाएं फहरा रही हैं। सभी अखाड़ों की अलग अलग धर्म ध्वजाएं हैं। धर्म ध्वजाओं में अलग-अलग प्रतीक बने हुए हैं। बात शैव संप्रदाय की करें तो वहां नंदी ध्वज ही मान्य है। वैष्णव संप्रदाय में गरुड़ ध्वज की प्रमुकथा होती है। गरुड़ ध्वज मंगल यानी कल्याण का प्रतीक है। इसी नाते वैष्णवी प्रार्थना में कहते हैं-
मंगलम् भगवान् विष्णुः मंगलम् गरुडध्वजः।
इनके अलावा चंद्र ध्वज और सिंह ध्वज का भी सनातन में विशेष महत्व है। प्रयागराज महाकुम्भ में जो अखाड़े आए हैं, सबकी धर्म ध्वजाएं अलग-अलग हैं, प्रतीक चिह्न अलग-अलग हैं। इन्हें आप इस तरह देख सकते हैं।
निरंजनी अखाड़ा- जनेऊ की 52 बंधों वाली भगवा धर्म ध्वजा
जूना अखाड़ा- 52 हाथ ऊंची भगवा रंग की धर्म ध्वजा
महानिर्वाणी अखाड़ा- चतुर्दिश भगवा धर्म ध्वजा
अटल अखाड़ा- चतुर्दिक भगवा धर्म ध्वजा
आनंद अखाड़ा- चतुर्दिक भगवा धर्म ध्वजा
निर्वाणी अनी अखाड़ा- रतनारी धर्म ध्वजा
निर्मोही अनी अखाड़ा- सुनहरी धर्म ध्वजा
दिगम्बर अनी अखाड़ा- पंचरंगी धर्म ध्वजा
निर्मल अखाड़ा- पीले रंग की धर्म ध्वजा
उदासीन अखाड़ा- लाल रंग की धर्म ध्वजा, पंचदेव अंकित
उदासीन नया पंचायती अखाड़ा- मोरपंख अंकित
धर्म ध्वजाएं सनातन का प्रतीक हैं, अखाड़ों की आन बान और अभिमान का प्रतीक हैं। अखाड़ों के साधु संतों के आगमन के साथ ही मंत्रोच्चार के बीच धर्म ध्वजा की स्थापना होती है। धर्म ध्वजा इतनी महत्वपूर्ण है कि संन्यासियों की दीक्षा भी इसी धर्म ध्वजा के नीचे ही दी जाती है। अखाड़ों में धर्म ध्वजा स्थापित होने का अर्थ ही है कि महाकुम्भ मेले में उनकी उपस्थिति का जयघोष हो गया।
महाकुम्भ क्षेत्र में फहराई किन्नर अखाड़े की धर्म ध्वजा
प्रयागराज महाकुम्भ क्षेत्र में शैव, वैष्णव, उदासीन अखाड़ों के अतिरिक्त पंच दशनाम जूना अखाड़े के अनुगामी किन्नर अखाड़े ने भी अपनी धर्म ध्वजा स्थापित कर ली है। किन्नर अखाड़े की महा मंडलेश्वर कौशल्या नंद गिरि जी हैं। उन्होंने किन्नर अखाड़े के सैकड़ों संतों के साथ धर्म ध्वजा की स्थापना की। यही नहीं संतों के अलख संप्रदाय के साधुओं ने भी अपने धर्म ध्वजा की स्थापना कर दी। महाकुम्भ में महिला संतों को भी स्थान और सम्मान प्राप्त हुआ है। अखाड़ा क्षेत्र में महिला संतों की श्री पंच दशनाम जूना संन्यासिनी अखाड़ा की धर्म ध्वजा की भी विधि विधान से स्थापना हो गई। जूना अखाड़ा के भीतर ही श्री पंच दशनाम जूना संन्यासिनी अखाड़ा का शिविर लगा हुआ है। इसी शिविर में धर्म ध्वजा की स्थापना हुई है।
ऐसे होती है धर्म ध्वजा की स्थापना
अखाड़ों के लिए धर्म ध्वजा सबसे महत्वपूर्ण होती है। इसका नीचे झुकना, गिरना अशुभ माना जाता है, इसी नाते इसकी स्थापना विधि विधान से होती है। धर्म ध्वजा स्थापना के लिए सबसे पहले होता है मंत्रोच्चार के बीच भूमि पूजन। इसके बाद भूमि की गहरी खुदाई होती है। फिर इसमें धर्म ध्वजा को स्थापित किया जाता है। धर्म ध्वजा के लिए लंबे वृक्षों के तनों को वनों से काटकर लाया जाता है। यह लकड़ी 52 हाथ यानी 108 से 151 फीट ऊंची होती है। कुछ अखाड़े ऐसे भी हैं, जो अपेक्षाकृत कम लंबाई की लकड़ी पर भी धर्म ध्वजा को विराजमान कर देते हैं। इस दंड में जनेऊ की 52 गांठें भी लगाई जाती हैं। ये 52 गांठें संतों के अखाड़ों की 52 मढ़ियों का प्रतीक हैं। हालांकि संतों महंतों की मानें तो अब केवल 18 मढ़ियां ही अस्तित्व में हैं। महाकुंभ में श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा, श्री पंच दशनाम आवाहन अखाड़ा और अग्नि अखाड़े की धर्म ध्वजा महाकुम्भ में फहरा रही है। धर्म ध्वजाएं इतनी ऊंची होती हैं कि ये दूर से ही नजर में आ जाती हैं। धर्म ध्वजाओं को देखकर आसानी से पता चल जाता है कि कहां पर कौन सा अखाड़ा है। धर्म ध्वजा का यह नियम भी है कि इसे सूरज उगने के साथ ही फहरा दिया जाता है और सूर्यास्त के समय इसे उतार दिया जाता है।
महाकुम्भ में कितनी महत्वपूर्ण है ध्वजा, पताका या झंडा
साधु संतों के अखाड़ों की धर्म ध्वजाएं विशिष्ट हैं, उनके रूप रंग अलग हैं तो उनका संदेश भी अलग है। उदाहरण के लिए जूना अखाड़ा चार मढ़ियों में बंटा हुआ है। यह चारों दिशाओं का प्रतीक है। इसी वजह से जूना अखाड़े की धर्म ध्वजा का हर कोना किसी न किसी दिशा से जुड़ा हुआ है। वैष्णव अखाड़ों की धर्म ध्वजाओं में लाल, सुनहरा और पंचरंग का प्रयोग हुआ है। इन सभी अखाड़ों के इष्ट देव हनुमान जी हैं। निर्वाणी अनी अखाड़े की धर्मध्वजा लाल रंग की है, जो पश्चिम दिशा का संकेत करती है। पश्चिम दिशा भी हनुमान जी का प्रतीक है। निर्मोही अनी अखाड़े की धर्म ध्वजा सुनहरे रंग की है, इसका संदेश है शांति और कल्याण। दिगंबर अनी अखाड़े की पंचरंगी ध्वजा दक्षिण दिशा का संकेत करती है और यह अंगद का प्रतीक है। निर्मल अखाड़े की धर्म ध्वजा पीतवर्णी है। इस अखाड़े का संचालन पंजाबी धार्मिक रीति से होता है।
महाकुम्भ या प्रयागराज के माघ मेले में एक ओर साधु-संतों की धर्म ध्वजाएं हैं तो वहीं यहां के पंडों की भी धर्म ध्वजाएं अलग-अलग हैं। पंडों और तीर्थ पुरोहितों के यजमान उनके झंडे देखकर ही उनके शिविर में पहुंचते हैं। सभी शिविरों में लाउडस्पीकर लगे होते हैं। पंडों के यहां से लाउड स्पीकर पर विशेष झंडे का नाम लेकर यजमानों को बुलाया जाता है । मान लीजिए कि पंडा का नाम है नरसिंह पंडा और उनका झंडा है तोप का झंडा। तो ऐसे में लाउड स्पीकर पर आवाज गूंजेगी- नरसिंह पंडा, तोप का झंडा, चले आओ… चले आओ। श्रद्धालुओं को भी अपने पंडे-पुरोहितों के पते और फोन नंबर की दरकार नहीं रहती। वे बस वह शिविर के झंडे को पहचानकर शिविर तक पहुंच जाते हैं। महाकुंभ मेला क्षेत्र में 1000 से अधिक पंडों के शिविर लगे हुए हैं। सभी के झंडे अलग अलग हैं। किसी पंडा का एक तुमड़ी का झंडा है, किसी का दो तुमड़ी, किसी का तीन तुमड़ी, किसी का चार तुमड़ी का झंडा। किसी का तोप का झंडा है, किसी का राधा-कृष्ण, किसी का हाथी-घोड़ा, किसी का शेर, किसी का त्रिशूल, किसी का भगवान राम, किसी का सिपाही है, किसी का फौजी, किसी का सूर्य। इन पंडों के यजमान सेट हैं, पीढ़ियों से हैं। सबके बही खाते पंडों के पास होते हैं। सबको अपने पंडों के झंडे के निशान पता रहते हैं। पंडे भी अपना खानदानी झंडा कभी नहीं बदलते हैं, क्योंकि झंडा बदला तो यजमान हाथ से निकल जाएगा।
धार्मिक उत्सव और वीरता का प्रतीक भी है ध्वजा
धर्म ध्वजा केवल प्रयागराज के संतों के अखाड़े में ही नहीं लहरा रही है, यह तो सनातन चेतना का प्रतीक है। हमारे घरों में होने वाले यज्ञ, महायज्ञ, भागवत्कथा यहां तक कि विवाह और उपनयन संस्कार में भी ध्वजा लगाई जाती है। सनातन तो धर्म ध्वजा के अनुसरण का संदेश देता है। ध्वजा वीरता का भी प्रतीक है। प्राचीन काल में समरभूमि में 8 प्रकार की धर्म ध्वजाओं का उल्लेख आता है। ये हैं- दीर्घ ध्वज, विजय ध्वज, चपल ध्वज, भीम ध्वज, चपल ध्वज, जय ध्वज, वैजयंतिक ध्वज, विशाल ध्वज और लोल ध्वज। पहले के सभी राजे-रजवाड़ों की अपनी विशेष ध्वजा होती थी। विजय के बाद विजय पताका लहराना वीरता का उद्घोष हुआ करता था। वीर छत्रपति शिवाजी की ध्वजा भी भगवा और उगते सूरज के रंग की थी। जो वीरता और ज्ञान का प्रतीक थी। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी ध्वजाओं की अहम भूमिका थी। कहीं अंग्रेजों के खिलाफ भगवा लहराया तो कहीं तिरंगा लहराकर अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज बुलंद की गई। अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिली तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तिरंगा फहराया था। हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर हमारे प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज ही फहराते हैं। यही नहीं, जब-जब हमारे बहादुर सैनिकों ने कोई जंग फतेह की तो वहां भी तिरंगा ध्वज भी लहराया।