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– गोपाल शुक्ल:
कुछ अरसा पहले एक फिल्म आई थी। नाम था मिशन मंगल। इसरो के वैज्ञानिकों की एक टीम के लोग अपने निजी तजुर्बे और अपने पेशेवर जीवन के बीच के संघर्ष के बावजूद अपनी जिंदगी के मकसद को नहीं भूलते और मार्स ऑर्बिटर मिशन के लिए अपनी कोशिशें जारी रखते हैं। आखिरकार कामयाब भी होते हैं। उस फिल्म में एक सीन है, जिसमें स्पेस में इस्तेमाल होने के लिए ऐसे किसी फैब्रिक की जरूरत पड़ती है जो वजन में हल्का हो, लेकिन आसमानी उल्कापिंड की बारिश से खराब होने की बजाय उसका सामना करते हुए पूरी तरह से काम करने के लायक रहे। फिल्म में दिखाई गई कहानी के मुताबिक एक बुजुर्ग साइंटिस्ट की अचानक प्लास्टिक की पाबंदी वाले एक विज्ञापन पर नजर पड़ती है और वह उसी प्लास्टिक को अपने मिशन के लिए इस्तेमाल लायक फैब्रिक तैयार करने का इरादा करते हैं। उनका यह प्रयोग कामयाब हो जाता है। ये तो था प्लास्टिक का वो इस्तेमाल जो फिल्म के जरिए हम सबके सामने पहुंचा। लेकिन लेकिन इसी प्लास्टिक से जुड़ा एक और उदाहरण देखिये। जिसे देखकर, पढ़कर आप अवश्य प्रेरित होंगे।
तेलंगाना का गांव देश का सबसे आदर्श गांव
देश की करीब 68 फीसदी आबादी गांवों में रहती है। भारत में करीब 6 लाख से ज्यादा गांव हैं। कई गांव तो ऐसे हैं जो अपनी खास पहचान रखते हैं। उन्हीं में से एक गांव है तेलंगाना का गुड्डेडाग। ये छोटा सा गांव इतना खास है कि अपनी उस खासियत की वजह से देश का वो शायद इकलौता ऐसा गांव होगा, जिसे हर लिहाज से आदर्श गांव कहा जा सकता है। इस गांव को इतना खास बनाया है गांव के लोगों ने।
गांव में प्लास्टिक की नो एंट्री
असल में इस गांव के लोग प्लास्टिक का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं करते। गांव में प्लास्टिक की हर चीज पर बैन लगा हुआ है। चाहें कुछ भी हो जाए , गांव के लोग किसी भी सूरत में प्लास्टिक से बनी किसी भी चीज को गांव में दाखिल नहीं होने देते। कम से कम सिंगल यूज वाली प्लास्टिक का एक टुकड़ा भी इस गांव के आसपास नहीं मिल सकता।

गांव के लोगों ने बनाया स्टील बैंक
गांव को पूरी तरह से प्लास्टिक के प्रकोप से बचाए रखने के लिए गांववालों ऐसा बंदोबस्त भी कर रखा है, जिसने हर किसी को इस गांव के बारे में बात करने को मजबूर कर दिया। यहां गांव के लोगों ने आपसी सहयोग से एक ऐसा बैंक बनाया है, जहां शादी ब्याह या ऐसे किसी भी समारोह में इस्तेमाल होने वाले सारे बर्तन स्टील के रखे जाते हैं। गांव में जब भी कोई समारोह या शादी ब्याह होता है, उसी बैंक से बर्तन निकालकर इस्तेमाल किए जाते हैं और फिर उन्हें बैंक में जमा करवा दिया जाता है।
गांव वालों ने कसी है कमर
ऐसा करके गांव के लोगों ने स्वच्छ वातावरण बनाने के लिए कमर कस ली है और ये फैसला लिया है कि गांव में कोई भी व्यक्ति प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करेगा। यह गांव तेलंगाना के मेडक जिले के नरसापुर मंडल में आता है। गांव में 180 घर हैं और करीब 655 लोग रहते हैं।
बर्तन बैंक खोलकर निभा रहे दायित्व
इस गांव के लोगों ने पूरे हिन्दुस्तान को सीख दी है कि बिना प्लास्टिक का इस्तेमाल के भी जिंदगी चल सकती है। शादी या किसी समारोह में गांववाले स्टील के बर्तनों का उपयोग करते हैं। जिसके लिए गांव में बाकायदा बैंक बनाया गया है। वहां से बर्तन लिए जाते हैं जो कार्यक्रमों के बाद एक अतिरिक्त बर्तन का मोल चुकाते हुए उसे वापस जमा कर दिया जाता है।
सरकार ने लगाया प्लास्टिक पर बैन
भारत सरकार ने 1 जुलाई 2022 से सिंगल यूज यानी एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक पर पाबंदी लगा दी है। पॉलीस्टायरीन और विस्तारित पॉलिस्ट्रीन समेत एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक का उत्पादन, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और इस्तेमाल पर प्रतिबंध का यह आदेश 1 जुलाई 2022 से प्रभावी तो हो गया, लेकिन जमीन पर इसका असर शायद कुछ भी देखने को नहीं मिल रहा है।
एकल-उपयोग या सिंगल यूज प्लास्टिक क्या हैं?
प्लास्टिक की ऐसी चीज है जिन्हें केवल एक बार इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है। आमतौर पर इसका इस्तेमाल पैकेजिंग में किया जाता है। इनमें किराना बैग, खाद्य पैकेजिंग, सिगरेट बट्स, प्लास्टिक की बोतलें, प्लास्टिक के ढक्कन, स्ट्रॉ और स्टिरर, प्लास्टिक के कंटेनर, कप और कटलरी का सामान शामिल हैं।

ज्यादातर प्लास्टिक नष्ट होने वाले या बायोडिग्रेडेबल नहीं होते हैं। इसके बजाय वे धीरे-धीरे छोटे टुकड़ों में टूट जाते हैं जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक से पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। इसके अलावा ये प्लास्टिक इंसानी शरीर और उसके विकास के साथ साथ उसकी सेहत पर भी बुरा असर डालती है।
दुनिया भर में प्लास्टिक की खपत?
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी UNEP के आंकड़ों के मुताबिक अगर मौजूदा हालात में खपत का पैटर्न और अपशिष्ट प्रबंधन तरीके ऐसे ही जारी रहते हैं, तो 2050 तक लैंडफिल और पर्यावरण में लगभग 12 बिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक का कूड़ा होगा।
टनों में निकलता है प्लास्टिक का कचरा
UNEP की रिपोर्ट पर यकीन किया जाए तो दुनिया भर में हर साल 26 से 27 ट्रिलियन प्लास्टिक बैगों की खपत होती है। प्लास्टिक सूप फाउंडेशन के मुताबिक दुनिया भर में हर सेकेंड 15 हजार एकल-उपयोग वाली कोल्ड ड्रिंक्स की प्लास्टिक की बोतलें बिकती हैं। यानी 10 लाख बोतलें प्रति मिनट और 480 अरब बोतलें हर साल। इन एक बार उपयोग होने वाली प्लास्टिक की बोतलों में से केवल 7 फीसदी को ही रीसायकल किया जाता है, इसके बावजूद कि उपयोग की जाने वाली सामग्री (PET) रीसायकल करने में आसान है।
ढक्कनों से ढक जाएगा समंदर?
प्लास्टिक की बोतलों के अलावा इसके ढक्कन तो और भी खतरनाक हैं। ये ढक्कन एक अलग प्रकार के प्लास्टिक यानी HDPE से बने होते हैं और पानी से हल्के होते हैं। नतीजतन, बोतलों की तुलना में समुद्र तटों पर ढक्कन सबसे ज्यादा पाए जाते हैं।
भारत में किन वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया गया है?
प्लास्टिक निस्तारण प्रबंधन नियम, 2016 तथा मंत्रालय की सूचना के मुताबिक, गुटखा, तंबाकू और पान मसाला के भंडारण, पैकिंग और बिक्री के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्लास्टिक का इस्तेमाल करने वाले पाउच पर पाबंदी है। प्लास्टिक की छड़ें, प्लास्टिक के गुब्बारे की छड़ें, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी की छड़ें, आइसक्रीम की छड़ें, प्लेट, कांटे, चम्मच, चाकू, चश्मा, पुआल और ट्रे जैसे कटलरी आइटम पर भी पाबंदी लगा दी गई है। दूसरी चीजों में प्लास्टिक से बने मिठाई के बॉक्स, प्लास्टिक से बने निमंत्रण कार्ड और सिगरेट के पैकेट, प्लास्टिक या पीवीसी बैनर के चारों ओर रैपिंग फिल्म शामिल है जो 100 माइक्रोन से कम हैं। भारत सरकार ने सितंबर 2021 में पहले ही 75 माइक्रोन से कम के पॉलीथीन बैग पर प्रतिबंध लगा दिया था। जिसमें पहले के 50 माइक्रोन की सीमा को बढ़ा दिया गया था।
सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध?
सवाल उठता है कि आखिर सिंगल यूज प्लास्टिक पर ही पाबंदी क्यों लगा दी गई। असल में इस विशेष तरह की प्लास्टिक से पर्यावरण, वन्य जीवन और लोगों के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यह प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेवार है और उनसे निकलने वाले जहरीले रसायन भूजल को आसानी से प्रदूषित कर सकते हैं, जिससे घातक जानलेवा बीमारियां हो सकती हैं। UNEP के मुताबिक 1970 के दशक से प्लास्टिक उत्पादन की दर किसी भी दूसरी चीज के मुकाबले तेजी से बढ़ी। इसमें कहा गया है कि उत्पादित सभी प्लास्टिक का लगभग 36 प्रतिशत पैकेजिंग में उपयोग किया जाता है, जिसमें खाद्य और पेय पदार्थों के लिए एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक उत्पाद शामिल हैं।
सड़ता नहीं है प्लास्टिक
पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि प्लास्टिक का कचरा पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा है क्योंकि यह लंबे समय तक पर्यावरण में ही बना रहता है, और सड़ता भी नहीं है। बल्कि माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाता है, जो हमारे खाने पीने की चीजों के जरिए इंसानी शरीर में प्रवेश करता है।
सिर्फ 9 फीसदी रीसायकिल होती है प्लास्टिक
वेओलिया इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट बताती है कि 1950 के बाद से, दुनिया भर में इस्तेमाल की जाने वाली सभी प्लास्टिक में से लगभग आधे प्लास्टिक लैंडफिल में मिल जाते हैं या इन्हें जंगल में फेंक दिया जाता है। प्लास्टिक का केवल 9 प्रतिशत ही सही तरीके से रीसायकिल किया जाता है।
क्यों खतरनाक है प्लास्टिक?
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के रिसर्चर सिद्धार्थ सिंह के मुताबिक मल्टी-लेयर्ड पैकेजिंग (एमएलपी) का इस्तेमाल चिप्स से लेकर शैंपू और गुटखा के पाउच तक लगभग सभी चीजों में किया जाता है। सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि जब प्लास्टिक प्रदूषण की बात आती है तो यह मल्टी-लेयर्ड पैकेजिंग बहुत बड़ा खतरा है। क्योंकि इन चीजों को इकट्ठा करना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि इस पैकेजिंग सामग्री के साथ केवल यही किया जा सकता है कि इसे खत्म करने के लिए सीमेंट संयंत्रों को भेजा जाए।
80 देशों में प्लास्टिक पर पाबंदी
भारत से पहले कई देश सिंगल यूज प्लास्टिक पर पाबंदी लगा चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र (यूनाइटेड नेशन) के मुताबिक दुनिया के 80 देशों में इस पर आंशिक या पूरी तरह से प्रतिबंध लागू है। यूरोप में प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल पर अतिरिक्त टैक्स वसूला जाता है। जबकि अफ्रीकी देशों में प्लास्टिक ज्यादातर पूरी तरह से बैन है। कैलिफोर्निया में 2014 से बैन लागू है। हालांकि कुछ चीजों पर छूट है। वहीं कई विकासशील देश आंशिक बैन लगाकर प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट की कोशिश कर रहे हैं।
सबसे पहले कहां लगाया गया प्रतिबंध?
हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में सबसे पहले सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगाया था। यहां 2002 में प्लास्टिक बैग्स और सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगाया गया था। इसके बाद दुनिया के अलग-अलग देशों ने भी इस पर बैन लगाना शुरू किया। चीन ने साल 2008 में पॉलिथिन पर बैन लगाया था। यहां पहले पतले पॉलिथिन पर बैन लगाया गया था। लेकिन 2020 में चीन ने घोषणा की थी कि वह धीरे-धीरे इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देगा। फिलहाल चीन के कई बड़े शहरों में वैसे प्लास्टिक बैग्स पर बैन लगाया जा चुका है, जिन्हें डिकंपोज नहीं किया जा सकता।
अमेरिका में आंशिक प्रतिबंध
अमेरिका में सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है। वहां आंशिक तौर पर बैन लगाया गया है। अमेरिका के कुछ राज्यों में इससे सबंधित कुछ कानून लागू हैं। न्यूयॉर्क में अक्टूबर 2020 से इस पर प्रतिबंध लागू है।
केन्या में सबसे कड़ी पाबंदी
केन्या में साल 2017 में प्लास्टिक बैग्स पर बैन लगाया गया। कहा जाता है कि केन्या में सबसे कड़े प्रतिबंध लागू हैं। वहां सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रॉडक्शन, बिक्री और आयात पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। पकड़े जाने पर 4 साल की जेल या 40 हजार डॉलर यानी करीब 31.5 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।