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पीएम मोदी का सबसे बड़ा सपना पूरा करेगा यह गांव, यहां की बच्चियां बनना चाहती हैं स्पेस साइंटिस्ट, ग्राम प्रधान ने कैसे बदली एक गांव की किस्मत!

Girls aspiring to be space scientists - Dayitva Media
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– विकास मिश्र:

हाईलाइट्स

-आईआईटी बीएचयू ने इस गांव को लिया गोद

  • देश का सर्वश्रेष्ठ ग्रामीण पर्यटन केंद्र बनेगा यह गांव
  • देश का दूसरा कार्बन न्यूट्रल गांव बनने की ओर
  • गांव में एयरकंडीशंड सरकारी स्कूल, बच्चे बोलते हैं फर्राटेदार अंग्रेजी
  • गांव के सरकारी स्कूल में बनी देश की पहली स्पेस लैब

एक ऐसा गांव, जिसमें चप्पे-चप्पे पर लगे हैं सीसीटीवी कैमरे। ऐसा गांव जहां 10 बेड का अस्पताल है, हर्बल औषधि पार्क है, ओपेन जिम, योगा सेंटर और चिल्ड्रेन पार्क है। गांव को पीने का शुद्ध पानी मिले, इसके लिए बाकायदा आरओ प्लांट लगा है। गांव का सरकारी स्कूल ऐसा, जो पूरी तरह वातानुकूलित यानी एयरकंडीशंड है, जिसमें सारी सुविधाओं के अलावा स्पेस लैब भी है। जहां की बेटियां देख रही हैं अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनने के सपने।

आप सोच रहे होंगे कि ऐसा गांव या तो कल्पनाओं में होगा या फिर किसी विकसित देश में। हम आपको बता दें कि यह गांव हमारे ही देश में है। उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में है यह गांव, जिसका नाम है-हसुड़ी औसानपुर। देश ही नहीं, पूरी दुनिया में इस गांव का नाम चमक रहा है। यूं तो सिद्धार्थनगर का नाम उत्तर प्रदेश के पिछड़े जिलों में शुमार होता है, लेकिन इस गांव ने ऐसी चमक बिखेरी है, जिसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी कायल हो गए हैं। इस गांव की कहानी बताती है कि अगर कोई अपने दायित्वों के प्रति सचेत हो जाए, जिम्मेदारों को दायित्वबोध हो जाए तो देश का कायापलट हो सकता है। एक ईमानदार ग्राम प्रधान के विजन और गांव वालों के साथ ने कैसे इस गांव के भाग्य की एक नई पटकथा लिख दी, यह गांव उसका अनुपम उदाहरण है। इसी वजह से इस गांव की पूरी कहानी बताना हम अपना दायित्व समझते हैं।

देश का दूसरा कार्बन न्यूट्रल गांव बनेगा

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर का यह हसुड़ी औसानपुर गांव देश का दूसरा और यूपी का पहला कार्बन न्यूट्रल ग्राम पंचायत बनने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2070 तक देश को कार्बन न्यूट्रल बनाने का सपना देखा है और उनके सपने को साकार कर रहा है यह गांव। गांव को कार्बन न्यूट्रल बनाने के लिए क्या-क्या किया गया है, एक बार इसे देख लेते हैं-

  • दिसंबर 2022 में ही गांव में ग्रीन टेक टावर स्थापित किया गया था। इसके माध्यम से पर्यावरण में मौजूद कार्बन को अवशोषित करके पर्यावरण को शुद्ध किया जाता है। प्रतिदिन इसके माध्यम से 9 लाख घन मीटर हवा को शुद्ध किया जाता है।
  • गांव में 40 हजार से ज्यादा पेड़ लगाए गए हैं, पेड़ लगाने का काम अभी भी जारी है।
  • बिजली पर निर्भरता कम करने के लिए 120 सोलर लाइट्स लगाई गई हैं, गांव के लोग सोलर वाटर पंप, बायो गैस प्लांट का इस्तेमाल कर रहे हैं। गांव में ई रिक्शा और ई साइकिलें भी हैं।
  • हसुड़ी औसानपुर इस ग्राम पंचायत में 5 किलोवाट का सौर संयंत्र सरकारी स्कूल में लगाया गया है।
  • गांव में ऐसा कोल्ड स्टोरेज बनाया जा रहा है, जो सोलर सिस्टम से चलेगा।
  • प्रकृति के साथ कदमताल करते हुए गांव में तालाब भी बनाए जा रहे हैं।
  • गांव के किसान आर्गेनिक खेती कर रहे हैं।

क्या होता है कार्बन न्यूट्रल

हम आपको सबसे पहले बताते हैं कि कार्बन न्यूट्रल आखिर है क्या? दरअसल पर्यावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बहुत अधिक होती है, जिस क्षेत्र में कार्बन डाई ऑक्साइड को पूरी तरह अवशोषित कर लिया जाता है, उस क्षेत्र को कार्बन न्यूट्रल कहते हैं। यानी जितना कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ा गया है, उसे अवशोषित करने के उपाय भी किये गए हैं। कार्बन उत्सर्जन जहां शून्य हो। यही हो रहा है हसुड़ी औसानपुर गांव में। ये काम आईआईटी बीएचयू की देखरेख में हो रहा है, क्योंकि इस गांव को आईआईटी बीएचयू ने गोद लिया है। आईआईटी बीएचयू ने इस गांव को कार्बन न्यूट्रल घोषित करने के लिए अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। फरवरी 2025 में सर्वे के लिए यहां टीम आएगी, फिर इस गांव को आधिकारिक रूप से कार्बन न्यूट्रल घोषित कर दिया जाएगा।

जब ग्राम प्रधान ने की ‘रीयल रैंचो’ से मुलाकात

हसुड़ी औसानपुर को कार्बन न्यूट्रल बनाने के लिए ग्राम प्रधान दिलीप त्रिपाठी ने अध्ययन किया, गांव में हरियाली बढ़ाई और इसके लिए उन्होंने लद्दाख जाकर शिक्षाविद और इंजीनियर सोनम वांगचुक से भी मुलाकात की। सोनम वांगचुक वही हैं, जिनकी जिंदगी पर फिल्म थ्री इडियट बनी थी और उनकी भूमिका आमिर खान ने निभाई थी। सोनम वांगचुक ने लद्दाख के स्टूडेंट एजुकेशनल एंड कल्चर मूवमेंट ऑफ लद्दाख के परिसर को डिजाइन किया था। यह परिसर पूरी तरह से सौर ऊर्जा से संचालित है। उत्तर प्रदेश के पंचायती राज्य मंत्रालय की पहल पर हसुड़ी औसानपुर के ग्राम प्रधान दिलीप त्रिपाठी अपनी टीम के साथ लद्दाख जाकर सोनम वांगचुक से मुलाकात की और उनसे गांव को कार्बन न्यूट्रल बनाने के गुर सीखे।

देश का पहली कार्बन न्यूट्रल पंचायत के बारे में जान लीजिए

हसुड़ी औसानपुर देश की दूसरी कार्बन न्यूट्रल पंचायत बनने जा रही है, लेकिन आप सोच रहे होंगे कि आखिर पहली ऐसी ग्राम पंचायत कौन सी है। हम आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर के सांबा जिले की पल्ली ग्राम पंचायत को देश की पहली कार्बन न्यूट्रल ग्राम पंचायत का दर्जा दिया गया है। पूरा गांव सौर ऊर्जा से संचालित है, जितना भी गांव से कार्बन उत्सर्जन होता है, उसे गांव में लगे पेड़-पौधे अवशोषित कर लेते हैं। इस गांव की हवा देश में सबसे शुद्ध मानी जाती है।

पूरी दुनिया ने देखी गांव की चमक

देश भर में इस गांव की चर्चा तो है ही, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी चर्चा तब हुई, जब इस गांव के विकास मॉडल पर फिल्म बनाई गई और उसे 2023 के शिखर सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया। इससे पहले कई मौकों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस गांव और गांव के प्रधान दिलीप त्रिपाठी की तारीफ की। नाना जी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम पुरस्कार और दीन दयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तिकरण पुरस्कार तीन बार पाने वाला यह देश का पहला गांव है। गांव को दर्जन भर से ज्यादा राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय सम्मान मिल चुके हैं। एक नजर इस पर भी डाल लेते हैं।

  • लगातार तीन बार 2017, 2018 और 2019 में दीन दयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तीकरण पुरस्कार
  • लगातार तीन बार 2017, 2018 और 2019 में नाना जी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार
  • 2021 और 2022 में मुख्यमंत्री पंचायत प्रोत्साहन पुरस्कार
  • उत्कृष्ट ग्राम प्रधान पुरस्कार
  • चाइल्ड फ्रेंडली (बाल हित) पंचायत पुरस्कार
  • 2018 में यूपी सरकार का राम मनोहर लोहिया स्मार्ट विलेज अवार्ड
  • 2017 से अब तक भारत सरकार का सर्वाधिक पुरस्कार पाने वाला पहला गांव

ग्रामीण स्पेस लैब वाला देश का पहला सरकारी स्कूल

सिद्धार्थनगर जिला मुख्यालय से करीब 75 किलोमीटर दूर भनवापुर ब्लाक का हसुड़ी औसानपुर गांव का सरकारी स्कूल सबके आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। स्कूल के बच्चे पढ़ाई में बहुत तेज हैं, फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं, प्रदेश और देश के स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं, मेडेल भी जीतकर आते हैं। स्कूल पूरी तरह वातानुकूलित है। स्कूल में सारी बुनियादी सुविधाएं तो हैं ही, साथ ही यहां अत्याधुनिक स्पेस लैब भी बना हुआ है, जिसका नाम है- विक्रम साराभाई स्पेस लैब। इस लैब को बनाने में करीब सवा आठ लाख रुपये का खर्च आया है। इसे खास तौर पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र यानी इसरो ने डिजाइन किया है। गांव का स्कूल और स्पेस लैब, ये समीकरण हैरानी पैदा करता है, लेकिन इसे साकार किया गांव के प्रधान दिलीप त्रिपाठी ने। दायित्व मीडिया से बातचीत में दिलीप त्रिपाठी ने बताया कि उन्हें स्पेस लैब बनाने का आइडिया फिल्म मिशन मंगल से मिला था। अगस्त 2019 में उन्होंने मिशन मंगल देखी थी। फिल्म में उन्होंने देखा कि किस तरह आईआईटी और दूसरे उच्च संस्थानों से निकले छात्र प्राइवेट नौकरियों में देश या विदेश में चले जाते हैं, इसरो जैसे संस्थानों में कम रुचि रखते हैं। जबकि इसरो में जो वैज्ञानिक काम कर रहे हैं, वे कम तनख्वाह में काम कर रहे हैं, लेकिन देश की सेवा कर रहे हैं। बस वहीं से उन्हें लगा कि अगर उनके गांव का एक भी बच्चा इसरो का साइंटिस्ट बन गया तो फिर पूरे जिले का नाम रोशन हो जाएगा। इसके बाद से उन्होंने इसरो की सहायता से ही गांव में स्पेस लैब बनवाया।

इसरो तक पहुंची हसुड़ी औसानपुर गांव की धमक

अगस्त 2022 में गांव के प्रधान ने मिशन मंगल देखी थी और नवंबर 2022 तक इसरो की डिजाइन पर हसुड़ी औसानपुर गांव में स्पेस लैब बन गया। 14 नवंबर को गांव के स्पेस लैब का उद्घाटन हुआ, तो चर्चा पूरे देश में फैली। यह देश का पहला सरकारी स्कूल था, जहां ग्रामीण स्पेस लैब बनाया गया था। दिसंबर 2022 में इसरो के रिटायर्ड साइंटिस्ट टीएन सुरेश खुद को गांव में आने से रोक नहीं पाए। टीएन सुरेश गांव आए, स्कूल में बच्चों से मिले, ढेर सारी बातें कीं, बच्चों को स्पेस साइंस के बारे में भी विस्तार से बताया। 19 दिसंबर 2022 को गांव के प्रधान दिलीप त्रिपाठी स्कूल के सात बच्चों के साथ इसरो, अहमदाबाद पहुंचे थे। उन्हें इसरो की तरफ से आमंत्रित किया था। 7 विद्यार्थियों में 5 लड़कियां थीं। इसरो अहमदाबाद में ही इन लोगों की भेंट अंतरिक्ष वैज्ञानिक मीनल रोहित से हुई। मीनल रोहित का किरदार मिशन मंगल फिल्म में दर्शाया गया है। दिलीप त्रिपाठी कहते हैं कि इसरो में 30 फीसदी से अधिक महिला कर्मचारी हैं। इस बात से स्कूल की छात्राएं बहुत प्रभावित हुईं। गांव की लड़कियों में यह आत्मविश्वास आया कि वे भी एक दिन अंतरिक्ष वैज्ञानिक बन सकती हैं। गांव के स्कूल में स्पेस लैब बना तो जिले के सभी सरकारी जूनियर हाई स्कूल के बच्चे इस गांव में आए और इस लैब को देखा। प्रधान की इस पहल पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनकी पीठ थपथपाई और अब प्रदेश के कई सरकारी स्कूलों में स्पेस लैब की स्थापना की जा रही है।

इस गांव के आगे तो शहर भी फीके

हसुड़ी औसानपुर की आब-हवा ऐसी है कि आपका यहीं पर बस जाने का जी करेगा। हर तरफ हरियाली, साफ सड़कें और साफ सुथरी गलियां। गली के हर नुक्कड़ पर कूड़ेदान है और ग्रामीण भी कूड़ा इधर-उधर नहीं फेंकते, बल्कि कूड़ा कूड़ेदान में ही डालते हैं। इस गांव की आबादी करीब 1400 है। गांव इतना जागरूक है कि कोरोना काल में यहां सौ फीसदी टीकाकरण हुआ था। गांव में फ्री वाई-फाई है, हर्बल औषधि पार्क है, योगा सेंटर और ओपेन जिम है। चिल्ड्रेन पार्क है, बकरी पालन के लिए 14 पशु शेड बनाए गए हैं। गांव में आधुनिक कंप्यूटर लैब, कृषि यंत्र बैंक और शुद्ध पानी के लिए आरओ प्लांट भी लगा हुआ है। पूरे गांव में वाई-फाई सिस्टम काम करता है। गांव में ही अटल ग्राम संसद भवन यानी पंचायत भवन बनाया गया है। इसमें आठ कमरे हैं। पंचायत भवन में बाकायदा लाइब्रेरी बनी हुई है। पूरा भवन बाहर और अंदर से चमचमाता हुआ है। यह पूरी तरह एयर कंडीशंड है, वाईफाई के जरिए यहां वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग होती है। 2019 में 10 ट्रेनी आईएएस गांव में गांव के विकास का अध्ययन करने यहां आए थे, 10 दिन यहां पर रहे थे। सभी की ट्रेनिंग भी चल रही थी, जरूरत पड़ने पर ये ट्रेनी आईएएस वाई फाई और प्रोजेक्टर के जरिए अपने ट्रेनिंग सेंटर से भी जुड़ जाते थे। उत्तर प्रदेश के कई बड़े अधिकारी यहां से प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में बैठे दूसरे अधिकारियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर बातचीत कर चुके हैं।

एक प्रधान ने बदली इस गांव की किस्मत

2015 तक हसुड़ी औसानपुर गांव सिद्धार्थनगर जिले के गड़ावर ग्राम पंचायत का हिस्सा था, दिसंबर 2015 में यह ग्राम पंचायत अलग हुई। अलग चुनाव हुए और 13 दिसंबर 2015 को दिलीप त्रिपाठी इस नई ग्राम पंचायत के नए प्रधान हुए। दिलीप त्रिपाठी पोस्ट ग्रेजुएट हैं । उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से मध्यकालीन इतिहास में एमए किया है। दिलीप त्रिपाठी ने नौकरी के लिए हाथ-पांव नहीं मारा, 2004 से ही वह सौर ऊर्जा के बिजनेस में थे। उन्होंने प्रधानी मिलने के बाद से ही गांव के काया कल्प का प्रण कर लिया था। गांव को मिला फंड कहां खर्च हो, इसकी रूपरेखा बनाई। उनके कई काम तो पहले गांव वालों की समझ में नहीं आए, लेकिन बाद में पूरा गांव उनका कायल हो गया।

इस तरह आदर्श गांव बना हसुड़ी औसानपुर

दायित्व मीडिया से बातचीत करते हुए गांव के प्रधान दिलीप त्रिपाठी बताते हैं कि उन्होंने गांव के विकास के लिए चार सूत्रीय कार्यक्रम बनाया। शिक्षा, स्वच्छता, इनफ्रास्ट्रक्चर और स्वास्थ्य। जब उनका कार्यकाल शुरू हुआ था, तब गांव में न तो पंचायत भवन था, न आंगनवाड़ी केंद्र। सरकारी जूनियर हाई स्कूल की हालत खस्ता थी। सरकारी पैसे से उन्होंने इनका निर्माण शुरू करवाया। उनके काम की धमक शासन प्रशासन तक पहुंची। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिलीप त्रिपाठी को मिलने के लिए बुलाया। गांव में सड़कों के लिए पैसे जारी किए। दिलीप त्रिपाठी ने किसी भी सांसद या विधायक से पैसे नहीं लिए। उन्होंने सरकारी योजनाओं के पैसे से ही गांव को चमचमा दिया। मनरेगा के पैसे से गांव वालों की मेहनत से पूरे गांव का कायाकल्प हो गया। इस गांव को पुरस्कार के रूप में करीब डेढ़ करोड़ रुपये मिल चुके हैं, ग्राम प्रधान ने इस पैसे को भी गांव के विकास पर खर्च किया। आज गांव में विकास की स्थिति यह है कि 206 हेक्टेयर गांव का कुल रकबा है, जिसमें 11 किलोमीटर की पिच रोड बनी हुई है। गांव से आने जाने के लिए 6 रास्ते हैं, सब पर पिच रोड बनी हुई है। हर चकरोड को प्रधान ने पिच रोड बनवा दिया। अब दिलीप त्रिपाठी गांव को कार्बन न्यूट्रल बनाने की दिशा में प्रयत्न कर रहे हैं। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2070 तक देश को जीरो कार्बन करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन वह 2025 में ही अपने गांव में पीएम मोदी का वह सपना साकार कर देंगे। इसके लिए बीएचयू आईआईटी की टीम ने बाकायदा एक्शन प्लान बनाया है।

गांव में बना है 10 बेड का अस्पताल

ग्राम प्रधान दिलीप त्रिपाठी ने दायित्व मीडिया से बातचीत में बताया कि इन्सेफेलाइटिस यानी दिमागी बुखार से उनकी मां सुषमा त्रिपाठी का देहांत हो गया था। इसके बाद से ही उन्होंने तय किया था कि गांव में वह अस्पताल जरूर बनवाएंगे। अपने खर्च पर उन्होंने गांव में अपनी मां की स्मृति में 2000 वर्गफीट में 10 बेड का अस्पताल बनवाया। बाद में इस अस्पताल को उन्होंने राज्य सरकार को दान में दे दिया। प्रदेश के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने उनका यह दान स्वीकार किया था। इस अस्पताल में गांव वालों का मुफ्त में इलाज होता है।

समाज को चाहिए ऐसा ही दायित्वबोध

यूपी के पिछड़े जिले सिद्धार्थनगर के एक आम गांव को एक प्रधान ने अपनी मेहनत, ईमानदारी, लगन और विजन से आज ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है, जिसकी देश भर में चर्चा हो रही है। उत्तर प्रदेश की नई पर्यटन नीति के तहत, हसुड़ी औसानपुर को बेस्ट टूरिज्म विलेज के रूप में भी चुना गया है। अगर प्रधान दिलीप त्रिपाठी और उनके गांव वालों की तरह दायित्वबोध हो तो देश का हर गांव चमक सकता है। गांव में ही रोजगार का सृजन होगा और गांव के युवाओं को शहर की तरफ पलायन करने की नौबत भी नहीं आएगी।

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