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क्या है FII और FDI, जिनकी वजह से शेयर बाजार हो जाता है धड़ाम

क्या है FII और FDI
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-गोपाल शुक्ला

अक्सर हम खबर देखते और सुनते हैं कि शेयर बाजार गिर गया। ऐसी सुर्खियां भी देखने को मिलती हैं कि FPI और FII की वजह से शेयर बाजार धड़ाम हो गया। ऐसा सुनते ही शेयर बाजार के निवेशकों में हाहाकार मच जाता है। इसी हाहाकार के बीच ये सवाल जेहन को मथना शुरू कर देता है कि आखिर ये FPI और FII बला क्या है? ये विदेशी निवेशक क्या होता है, और क्यों इसकी वजह से ही अक्सर शेयर बाजार में लोग खून के आंसू रोने को मजबूर हो जाते हैं।

दरअसल, हर दिन खबर आती है और साथ में डेटा भी, कि आज FPI ने इतने करोड़ रुपये शेयर बाजार से निकाल लिए, कुछ लोग इन्हें FII भी कहते हैं। अब इसी बात को लेकर एक अजीब सी उहापोह वाली हालत बन जाती है। समझ में नहीं आता है, कि FPI और FII क्या है, और दोनों में अंतर क्या है? और ये कैसे भारतीय शेयर बाजार का इतना अहम हिस्सा है कि इनके जरा से हिलते ही शेयर बाजार में हाला डोला आ जाता है?

दरअसल, FPI और FII को समझने से पहले FDI के बारे में थोड़ा समझना ज्यादा जरूरी है। FDI यानी Foreign Direct Investment को हिन्दी में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी कहा जाता है। किसी भी देश में निवेश के लिए FDI बाजार में दाखिल होने का रास्ता है। इसका मतलब है कि किसी विदेशी कंपनी या संस्था में हिस्सेदारी खरीदना या फिर दूसरे देश में अपना कारोबार शुरू करना FDI कहलाता है। कोई भी देश आर्थिक तरक्की के लिए विदेशी निवेश को बढ़ावा देता है। भारत में भी बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश है और यह लगातार बढ़ भी रहा है।

भारतीय परिपेक्ष्य में नियम को देखें तो जब भी कोई विदेशी निवेशक किसी कंपनी में 10 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी खरीदता है, तो फिर वो FDI कहलाता है, यानी FDI के तहत 10 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी खरीदना अनिवार्य होता है। इसके अलावा जब कंपनी हमारे देश में मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट लगाती है, तो वो भी FDI के तहत ही होता है।

अगर विदेशी निवेशक के जरिए किसी कंपनी में 10 फीसदी से कम या फिर 10 फीसदी तक की हिस्सेदारी खरीदी जाती है, तो उसे FPI कहा जाता है। अब जानते हैं कि ये FPI है क्या? FPI को विदेशी पोर्टफोलियो निवेश यानी Foreign Portfolio Investment कहा जाता है। भारतीय बाजार में अभी हर दिन शेयर बेचकर पैसे निकाल रहे हैं, वो यही FPI हैं, कुछ लोग इन्हें विदेशी संस्थागत निवेशक यानी FII भी कहते हैं। दरअसल, 10 साल पहले यानी 2014 से पहले विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में दो तरह से निवेश करते थे।

FII और QFI। QFI को क्ववालिफाइड फॉरेन इन्वेस्टमेंट के नाम से जाना जाता है। भारत में निवेश के लिए साल 1994 में FII को इजाजत मिली थी। जबकि 2011 में QFI को इजाजत मिली। लेकिन 2014 में सेबी SEBI ने FII और QFI को एक में ही मिला दिया और उसे FPI का नाम दिया। यानी FII का वजूद अब केवल बोलचाल की भाषा में तो है, लेकिन असल में उसे FPI ही कहा जाता है। वही भारतीय शेयर बाजार में निवेश कर सकता है।

FII किसी भी कंपनी की इक्विटी में 10 फीसदी ज्यादा निवेश नहीं कर सकते। अनलिस्टेड कंपनी में FII को निवेश की इजाजत नहीं है। विदेशी संस्थागत निवेशक देश के बाहर पंजीकृत होते हैं, जहां वो निवेश करते हैं। संस्थागत निवेशक विशेष रूप से हेज फंड, बीमा कंपनियां, पेंशन फंड और म्यूचुअल फंड में शामिल हैं। यानी आधिकारिक तौर पर भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशक या किसी भी कंपनियों में 10 फीसदी तक की हिस्सेदारी रख सकता है। उसे फॉरेन पोर्टफोलियो इंवेस्टमेंट यानी FPI कहा जाता है। FPI का मतलब है कि एक देश के व्यक्तियों या संस्थाओं की तरफ से किसी अन्य देश के स्टॉक, बॉन्ड या म्यूचुअल फंड जैसे फाइनेंशियल एसेट में किए गए निवेश को दर्शाता है।

FPI कहां-कहां कर सकते हैं निवेश

निवेश- इन्वेस्टर विदेशी कंपनियों में शेयर खरीदते हैं, इससे उन्हें डिविडेंड और कैपिटल गेन का लाभ मिलता है, क्योंकि कंपनी की स्टॉक की कीमत बढ़ती जाती है।

इक्विटी म्यूचुअल फंड- सीधे स्टॉक खरीदने की बजाय, निवेशक इक्विटी-आधारित म्यूचुअल फंड में निवेश करने का विकल्प चुन सकते हैं। ये वही लोग कर सकते हैं जिनके पास विदेशी इक्विटी का विविध पोर्टफोलियो है।

एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ईटीएफ)- ये ऐसे फंड हैं जो विशिष्ट इंडेक्स या सेक्टर को ट्रैक करते हैं और स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड किए जा सकते हैं। विदेशी निवेशक ETF खरीद सकते हैं जो उन्हें विदेशी इक्विटी मार्केट के संपर्क में लाते हैं।

इसके अलावा डेट सिक्योरिटीज के तौर पर सरकारी बॉन्ड, कॉर्पोरेट बॉन्ड और फिक्स्ड-इनकम म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं। साथ ही ट्रेजरी बिल, कमर्शियल पेपर, डिपॉजिट सर्टिफिकेट, रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (REITS), डेरिवेटिव, कमोडिटी-लिंक्ड इन्वेस्टमेंट, सॉवरेन वेल्थ फंड (एसडब्ल्यूएफ), हेज फंड और प्राइवेट इक्विटी में भी निवेश कर सकते हैं।

अभी विदेशी निवेशक दो तरह से भारत में निवेश करते हैं, FPI और FDI. अगर दोनों में अंतर की बात करें तो FDI के तहत विदेशी निवेशक कंपनी पर महत्वपूर्ण प्रभाव या नियंत्रण चाहता है। जबकि FPI में केवल रिटर्न के लिए निवेश किया जाता है, कंपनी के मैनेजमेंट से कोई लेना-देना नहीं होता है।

FPI से जुड़ी कुछ खास बातें-

  • FPI विदेशी अर्थव्यवस्था में निवेश करने का एक सामान्य तरीका है।
  • विदेशी निवेशक को किसी कंपनी की संपत्ति का प्रत्यक्ष स्वामित्व नहीं देता।
  • FPI निवेश से कंपनियों के स्टॉक की मांग को बढ़ावा देता है।
  • FPI निवेश से लिक्विडिटी की कमी नहीं होती है।
  • FPI शॉट टर्म को ध्यान में रखकर निवेश करते हैं।
  • FPI ब्याज दरों या राजनीतिक घटनाओं के आधार पर देश में और बाहर फंड को तेजी से मूव कर सकते हैं।

FII से शेयर बाजार को क्या फायदा होता है?

लिक्विडिटी बढ़ती है- जब FII निवेश करते हैं, तो बाजार में पैसे का प्रवाह बढ़ता है, जिससे ट्रेडिंग आसान और तेज़ हो जाती है।
बाजार में स्थिरता- बड़े संस्थागत निवेशक आमतौर पर सोच-समझकर निवेश करते हैं, जिससे बाजार में स्थिरता आती है।
बाजार का उत्साह- FII के निवेश से अन्य निवेशकों को भी प्रेरणा मिलती है।
रुपये की मजबूती- जब विदेशी मुद्रा (डॉलर, यूरो आदि) भारत में आती है, तो भारतीय रुपये की ताकत बढ़ सकती है।

FII से जोखिम क्या है?

मंदी का खतरा- FII कभी-कभी तेज़ी से पैसा निकाल लेते हैं, जिससे बाजार में गिरावट आ सकती है।
अस्थिरता- FII के आने और जाने से बाजार अस्थिर हो सकता है।

FDI (Foreign Direct Investment)

FDI का मतलब विदेशी सीधा निवेश (Foreign Direct Investment) तब होता है जब कोई विदेशी कंपनी भारत में किसी परियोजना, फैक्ट्री, या उद्योग में सीधे पैसा लगाती है।

FDI से अर्थव्यवस्था और बाजार को क्या फायदा होता है?

रोजगार के अवसर- FDI से नई कंपनियां और उद्योग लगते हैं, जिससे लोगों को नौकरियां मिलती हैं।
तकनीकी विकास- विदेशी कंपनियां नई तकनीक और प्रबंधन के तरीकों को लाती हैं।
लंबे समय का निवेश- FDI आमतौर पर दीर्घकालिक निवेश होता है, जिससे अर्थव्यवस्था को स्थिरता मिलती है।
इंफ्रास्ट्रक्चर विकास- विदेशी निवेश से देश में नए प्रोजेक्ट्स शुरू होते हैं, जैसे सड़कें, फैक्ट्रियां, और बिजली प्लांट।

FDI का शेयर बाजार पर प्रभाव:

पॉजिटिव सिग्नल- जब देश में FDI आता है, तो निवेशकों को भरोसा होता है कि देश की अर्थव्यवस्था मजबूत है।
शेयर बाजार की तेजी- जिन सेक्टरों में FDI होता है, वहां के शेयरों की कीमत बढ़ सकती है।

अगर नुकसान की बात करें तो FPI की अधिक निकासी से बाजार में अस्थिरता का माहौल आ सकता है, जो फिलहाल भारतीय बाजार में हो रहा है, जिससे गिरावट देखने को मिल रही है।

भारत में FPI को कौन नियंत्रित करता है?

भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश को सेबी नियंत्रित करता है। किसी भी FPI को भारतीय बाजार में निवेश से पहले सेबी की इजाजत लेनी होती है, यानी सेबी में FPI को रजिस्टर्ड होना जरूरी है।

Author

  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

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