#लाइफ स्टाइल

सावधान! कहीं आपका बच्चा तो नहीं है इस बीमारी की गिरफ्त में..? मेडिकल साइंस के पास भी इसका इलाज नहीं

Dayitva Media Autism Spectrum Disorder
Getting your Trinity Audio player ready...

Autism Spectrum Disorder: क्या आपका बच्चा गुमसुम और खोया-खोया सा रहता है, भीड़ में जाने से कतराता है, खेल-कूद और मौजमस्ती में उसका मन नहीं लगता, दोस्तों के साथ ज्यादा वक्त नहीं बिताता, उनसे दूरी बनाकर रखता है, क्या वह मोबाइल पर ज्यादा समय बिताता है, क्या वह अपने आप में ही लीन रहता है, क्या वह अकेलापन पसंद करने लगा है, अगर इन सभी सवालों का जवाब हां है तो सावधान हो जाएं। आपका बच्चा एक ऐसी बीमारी की गिरफ्त में है, जिसके इलाज में मेडिकल साइंस ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं । जी हां इस बीमारी का नाम है ऑटिज्म (Autism) या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर यानी ASD । यह न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर से पैदा हुई एक बीमारी है, जिसका अभी तक कोई पुख्ता इलाज नहीं खोजा जा सका है। हालांकि जीवनशैली में कुछ बदलाव के साथ इसके लक्षणों को कंट्रोल किया जा सकता है। वहीं इस बीमारी के लक्षण इतने अधिक हैं कि इसकी पहचान भी मुश्किल हो जाती है। जबकि इसके मरीजों में इजाफा लगातार हो रहा है। ये समस्या बड़ी इसलिए भी है क्योंकि, ये बीमारी गर्भावस्था से ही शुरू हो जाती है।

इंसान के लिए घातक है ऑटिज्म (Autism)

निदा फाजली का एक मशहूर शेर है-
‘एक महफिल में कई महफिलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा।

जाहिर है इंसान के पास कोई न कोई ऐसी बात होती है जिसे वो किसी से बता नहीं पाता है। ऐसे में उस बात और मौके के लिए वो अकेला हो जाता है। खैर निदा फाजली की ये शायरी तो दिल के दर्द में अकेले रहने वालों के लिए हैं, लेकिन ऐसे ही अकेले रहने की समस्या एक बीमारी है। इसे ऑटिज्म (Autism) कहते हैं। यह एक तरह का न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। मेडिकल की भाषा में इसको ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर कहा जाता है। हम इसकी चर्चा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘लैंसेट साइकियाट्री’ ने इस संबंध में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें बताया गया है कि दुनिया के पुरुषों में ऐसी बीमारी के मामले करीब दोगुने हैं। यह बच्चों के भविष्य के लिए बड़ी खतरनाक समस्या है। भारत की बात करें तो आंकड़ों का अनुपात यहां भी लगभग ऐसा ही है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि इसका अभी तक कोई इलाज भी नहीं है।

कुछ लोग कई बार दूसरों से थोड़ा अलग होते हैं। उन्हें दूसरों को समझने में जितनी दिक्कत होती है उतनी ही परेशानी उन्हें खुद को जाहिर करने में होती है। इतना ही नहीं कई बार तो उन्हें लोगों की भीड़, सामाजिक आयोजनों से भी परहेज होता है। यह एक दिमागी समस्या है जो तेजी से बदलती जीवनशैली के कारण काफी हद तक बढ़ी है। मामला घातक तब हो जाता है जब ऐसे लोग समाज से तालमेल नहीं बैठा पाते हैं और खुद को भी अधिक अकेला कर लेते हैं। कई बार तो बात खुद के जीवन को खत्म करने तक पहुंच जाती है। ये समस्या लाइलाज है। ऐसे में हमारा दायित्व बनता है कि हम घर-परिवार, समाज में इस समस्या से पीड़ित लोगों की पहचान करें और उनके लिए कोई उपाय करें।

क्या है ऑटिज्म (Autism)?

ऑटिज्म (Autism) यानी ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर दिमागी विकास की स्थिति है। इससे पीड़ित लोगों में मेलजोल की कमी, किसी चीज में रुचि न होने की समस्या, बातों को बार-बार दोहराने जैसी समस्याएं शामिल होती हैं। ऑटिज्म के अलग-अलग लक्षण अलग-अलग मरीजों में भिन्न हो सकते हैं। बच्चों में इसके लक्षण काफी कॉमन होते हैं। उनको नई चीजें सीखने में दिक्कत होती है। हालांकि, कई केस में देखा गया है कि परिवार, टीचर्स की मदद मिले तो वो काफी तेज हो जाते हैं।

लाइलाज है ये बीमारी

यूं तो ऑटिज्म एक ऐसी समस्या है जो हमेशा से ही संसार में रही होगी लेकिन इसे लेकर 4 दशक पहले चर्चा शुरू हुई। बोस्टन चिल्ड्रन हॉस्पिटल के अनुसार, पहली बार इसके बारे में 1980 के दशक में तेजी से चर्चा होती है। क्योंकि, इसी दौर में इससे पीड़ित बच्चों की संख्या में खासा इजाफा हुआ। न्यूरो डेवलपमेंट स्थिति से पैदा हुई बीमारी अभी भी लाइलाज बनी हुई है। हालांकि, लगातार इसे लेकर रिसर्च हो रहे हैं। डॉक्टरों ने इसके कुछ लक्षणों की पहचान की है। इनके जरिए माता पिता या परिवार के लोग बच्चों की समस्या को समझ सकते हैं और सुझाए उपायों पर काम कर सकते हैं।

महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज्यादा

साल 2021 में लैंसेट साइकियाट्री में प्रकाशित रिपोर्ट पर गौर करें तो दुनिया का हर 127वां इंसान ऑटिस्टिक है। करीब 6.18 करोड़ लोग इस डिसऑर्डर के शिकार हैं। इसमें महिलाएं, पुरुष और बच्चे शामिल हैं। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज 2021 की रिपोर्ट बताती है कि ये 20 साल के कम उम्र के लोगों से जुड़ी 10 गैर-घातक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक है। यानी इससे सीधे तौर पर तो कई खतरा नहीं है, लेकिन इसका बढ़ता स्तर एक तरह का खतरा जरूर बन सकता है। हर एक लाख में 1,065 पुरुष और 508 महिलाएं इस समस्या के घेरे में आई हैं। यानी महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में करीब आधी ही है।

भारत में कितने लोगों को समस्या

वैश्विक आंकड़ों की बात करें तो जापान सहित एशिया-प्रशांत क्षेत्र वाले देशों में ऑटिज्म की दर अधिक पाई गई है। वहीं दक्षिण अमेरिका और बांग्लादेश में इसकी दर सबसे कम है। इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 18 मिलियन लोग ऑटिज्म से पीड़ित हैं। इसमें 2 से 9 साल तक के बच्चों की संख्या 1 से 1.5 प्रतिशत है। अध्ययनों में बताया गया है कि ऑटिज्म के केवल 30 फीसदी मामले ही वंशानुगत होते हैं। बाकी से 70 फीसदी केस में यह न्यूरो डेवलपमेंट स्थिति से पैदा होती है।

ऑटिज्म के 2 प्रकार

  • ऑटिस्टिक डिसऑर्डर: यह बेहद आम है। इससे पीड़ित लोगों को समाज और लोगों से व्यवहार बनाने में परेशानी होती है। उन्हें असामान्य चीजों से लगाव होता है। कुछ मामलों में बौद्धिक क्षमता में कमी भी नजर आती है। वहीं हकलाना भी इसके लक्षणों में से एक है।
  • अस्पेर्गेर सिंड्रोम: यह ऑटिज्म का हल्का रूप माना जाता है। इससे पीड़ित व्यक्ति भले ही व्यवहार से अजीब लगते हैं लेकिन कुछ खास विषयों में इनकी रुचि अधिक होती है। हालांकि, ऐसे लोगों को मानसिक या सामाजिक व्यवहार से जुड़ी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है।

लक्षण क्या-क्या होते हैं?

ऑटिज्म के लक्षण अलग-अलग उम्र में अलग-अलग तरीके से नजर आते हैं। हालांकि, बच्चों में ये 6 महीने से 3 साल तक नजर आ जाते हैं। आमतौर पर 12-18 महीने के भीतर लक्षण देखे गए हैं। समय से इस पर काबू पा लिया गया तो बेहतर है नहीं ये पूरी जिंदगी के लिए भी रह सकते हैं।

ऑटिज्म के लक्षण

  • शब्द बार-बार बोलना
  • आई-कॉन्टैक्ट से बचना
  • घुलने-मिलने से बचना
  • अकेले रहना पसंद आना
  • एक ही वस्तु पर ध्यान देना
  • एक ही काम को बार-बार करना
  • दूसरों के हर शब्द को दोहराना
  • सनकी की तरह व्यवहार करना
  • खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश
  • गुस्सैल, बदहवास, बेचैन, अशांत
  • दूसरों को ना समझ पाना
  • भूलने की बीमारी

बच्चों में गंभीर हो सकती है समस्या

अगर बच्चा किसी के बुलाने पर प्रतिक्रिया न दे और ये लगातार हो तो आपको अटेंशन देने की जरूरत है। इतना ही नहीं बच्चा आंखों में नजर डालकर बात न करे और बार-बार इधर-उधर देखे तो यह भी गंभीर समस्या के संकेत हैं। आपके बच्चे 9 महीने के हो गए हैं लेकिन अभी भी उनको अपना ही नाम पहचानने में दिक्कत होती है। वो खुशी, उदासी, गुस्से या आश्चर्य को जाहिर नहीं कर पाते हैं या फिर लगातार जाहिर करते हैं तो यह ध्यान देने वाली बात है। 12 महीने का बच्चा साधारण खेल या किसी गतिविधि की नकल नहीं कर पाता या संकेत समझने में असमर्थ है तो ये ऑटिज्म के लक्षण हैं। उम्र के हिसाब से ऐसे समझें बच्चों का विकास

  • 9 महीने के बच्चे को अपना ही नाम पहचानने में दिक्कत होती है
  • 12 महीने का बच्चा खेल की नकल नहीं करता और संकेत समझने में असमर्थ है
  • 15 महीने की उम्र में वह रुचियों को दूसरों को नहीं बताता
  • 18 महीने की उम्र में बच्चा किसी रोचक चीज पर प्रतिक्रिया नहीं दे पाता
  • 24 महीने की उम्र में बच्चा दूसरों को समझने में कठिनाई महसूस करता है
  • 36 महीने (3 साल) की उम्र में बच्चा दूसरे बच्चों के साथ खेलने में रुचि न दिखाए।
  • 48 महीने (4 साल) की उम्र बच्चा कोई काल्पनिक खेल नहीं खेलता है। जैसे टीचर, सिंगर, पुलिस बनना।
  • 60 महीने (5 साल) का बच्चा गाना, डांस या अभिनय करने में खुद को सक्षम नहीं समझता है।

बार-बार एक ही व्यवहार को दोहराना या एक जैसी बातें करने को रिपिटेटिव बिहेवियर कहा जाता है। वहीं शब्द या वाक्य को लेकर आ रही समस्याएं भी बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण को बताती हैं। ऐसे में बच्चों के शब्दों के आधार पर उनमें समस्या की पहचान कुछ ऐसे कर सकते हैं

  • 18 महीने का बच्चा सरल शब्द जैसे दूध, खाना, पापा, मम्मा, चाय नहीं बोल पाता।
  • 19 से 35 महीने का बच्चा 2-3 शब्दों को जोड़कर वाक्य बना सकता है। जैसे बाहर चलो, खाना अच्छा है
  • 36 से 42 महीने का बच्चा छोटे पैराग्राफ बोलने में असक्षम होता है। जैसे कोई छोटा वाकिया

बच्चे की उम्र के साथ कई तरह के संकेत बताते हैं कि इसके दिमाग की कितना और कैसा विकास हो रहा है। बच्चा बहुत नाराज हो जाता है और चीजों को उठाकर फेंकने लगता। अपने तय रूटीन पर काम न करें तो आप सजग हो जाएं। इसके लिए कई पैमाने भी तय हैं। अगर आपका बच्चा उन पैमाने पर खरा नहीं उतर पाता है तो आपको विशेषज्ञ से सलाह लेने की जरूरत है।

बढ़े लक्षणों से हो सकती हैं ये समस्याएं

  • डिस्लेक्सिया और डिस्प्रेक्सिया: अक्षर पहचानने, लिखने और पढ़ने में परेशानी के साथ बातों को सुन उसे समझ पाने में समस्या।
  • अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर: मन में भटकाओ होता है। एकाग्रता बनाए रखने में दिक्कत होती है।
  • अनिद्रा या इंसोमेनिया: इस समस्या में नींद की कमी हो जाती है। अच्छी नींद लेने में लगातार समस्या आती है।
  • लर्निंग डिसेबिलिटी: नयी चीजों सीखने-समझने में दिक्कत के साथ खुद का ध्यान रखने में असहजता।
  • मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स: बेचैनी, डिप्रेशन, ऑब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर यानि किसी काम में सनक या अधिक जुनून।
  • मिर्गी: पीड़ित के हाथों-पैरों में सरसराहट बने रहना। अनावश्यक स्वाद और गंध महसूस होना।

क्यों होता है ऑटिज्म?

अभी तक हुई रिसर्च में ऑटिज्म के सही कारणों के बारे में पता नहीं चल सका है। हालांकि, एक बात साफ हुई है कि करीब 30 फीसदी मामले अनुवांशिक और 70 फीसदी पर्यावरणीय कारणों से होते हैं। उष्णकटिबंधीय यानी कम ठंड वाले इलाकों में इसकी दर कम होती है। पर्यावरणीय कारक गर्भ में बच्चे के विकास को रोकते हैं। इससे उसका दिमाग सही तरह से विकसित नहीं हो पाता है। अनुवांशिक रूप से इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं।

  • दिमाग के विकास के लिए जरूरी जीन गड़बड़ी आ जाती है।
  • सेल्स और दिमाग के बीच संबंध बनाने वाले जीन कमजोर पड़ जाते हैं।

दवाएं भी दी जा सकती हैं

ऑटिज्म का पुख्ता इलाज अभी तक नहीं खोजा जा सका है। हालांकि, व्यावहारिक उपचार के साथ ही मनोवैज्ञानिक इस समस्या के लिए कुछ दवाओं का प्रयोग करते हैं। मनोचिकित्सक मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों की जांच करने के बाद एरिपिप्राजोल और रिसपेरीडोन जैसी दवाएं खाने की सलाह देते हैं। ये दवाएं चिड़चिड़ेपन की समस्या के लिए दी जाती है। हालांकि, डॉक्टर ऐसे मामलों में प्राथमिकता से दवा खिलाने से बचते हैं। अगर बचपन में ही समस्या का पता चल जाए तो इंटरवेंशनल ट्रीटमेंट सर्विसेज के जरिए इलाज से काफी सहायता मिलती है। वयस्कों में डॉक्टर लक्षणों के आधार पर दवाएं देते हैं। हालांकि, हम ये साफ तौर पर बता दें कि ये कोई परमानेंट इलाज नहीं होता है।

बेचैनी: एंटी-एंग्जायटी दवाइयां
चिड़चिड़ापन: एंटीसाइकोटिक दवाइयां
अशांत: सेंट्रल नर्वस सिस्टम स्टिमुलैंट्स दवा
डिप्रेशन: एंटीडिप्रेसेंट्स दवा

क्या है आपका और हमारा दायित्व?

फिलहाल, ऑटिज्म को जांचने के लिए कोई खास तरह का टेस्ट नहीं है। इसे पीड़ित के व्यवहार और दिमागी विकास के आकलन के जरिए ही पता लगाया जा सकता है। विशेषज्ञ अक्सर देखने, सुनने, बोलने और कॉर्डिनेशन की क्षमता का आकलन कर इसके बारे में पता लगाते हैं। इससे बाद स्थिति को देखते हुए वे दवाओं का सुझाव देते हैं। हालांकि, ये समस्या दिमाग से उपजी हुई है। इस कारण एजुकेशनल प्रोग्राम और बिहेवियरल थेरेपी को इसके लिए कारगर माना गया है। यहीं पर समाज और परिवार का दायित्व बढ़ जाता है।

तो आपको ये करना है…

  • संवाद को आसान बनाएं
  • धीरे और साफ आवाज में बात करें
  • जवाब के लिए उन्हें पर्याप्त समय दें
  • इशारों और तस्वीरों की सहायता लें
  • खाने-पीने की आदतें नोट कर ख्याल रखें
  • सोने के लिए कमरा शांत और डार्क हो
  • सोने और जागने के समय का ध्यान रखें
  • भावनाओं पर काबू रखने की ट्रेनिंग
  • पीड़ित को सहज माहौल दें

ऑटिज्म लाइफटाइम रहने वाली समस्याओं में से एक समस्या है। लगातार बढ़ते लक्षणों के कारण कई बार ऐसे लोगों को डिस्लेक्सिया, डिस्प्रेक्सिया, अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर, इंसोमेनिया, लर्निंग डिसेबिलिटी, मेंटल हेल्थ, मिर्गी जैसी समस्याएं हो सकती है। ऐसे में इससे पीड़ित लोगों को विशेष सहयोग और सपोर्ट की जरूरत होती है। दावा किया जाता है कि इससे लक्षण कमजोर पड़ते हैं। इस कारण हमारा ये दायित्व है कि ऐसे बच्चों या मरीजों की पहचान करें और उन्हें उनके अनुकूल माहौल दें। समाज के साथ तालमेल बनाने के लिए उनकी सहायता करें।

Author

  • श्यामदत्त चतुर्वेदी - दायित्व मीडिया

    श्यामदत्त चतुर्वेदी, दायित्व मीडिया (Dayitva Media) में अपने 5 साल से ज्यादा के अनुभव के साथ बतौर सीनियर सब एडीटर जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इससे पहले इन्होंने सफायर मीडिया (Sapphire Media) के इंडिया डेली लाइव (India Daily Live) और जनभावना टाइम्स (JBT) के लिए बतौर सब एडिटर जिम्मेदारी निभाई है। इससे पहले इन्होंने ETV Bharat, (हैदराबाद), way2news (शॉर्ट न्यूज एप), इंडिया डॉटकॉम (Zee News) के लिए काम किया है। इन्हें लिखना, पढ़ना और घूमने के साथ खाना बनाना और खाना पसंद है। श्याम राजनीतिक खबरों के साथ, क्राइम और हेल्थ-लाइफस्टाइल में अच्छी पकड़ रखते हैं। जनसरोकार की खबरों को लिखने में इन्हें विशेष रुचि है।

    View all posts
सावधान! कहीं आपका बच्चा तो नहीं है इस बीमारी की गिरफ्त में..? मेडिकल साइंस के पास भी इसका इलाज नहीं

भोपाल के सीने का ‘जहर’ इंदौर का

सावधान! कहीं आपका बच्चा तो नहीं है इस बीमारी की गिरफ्त में..? मेडिकल साइंस के पास भी इसका इलाज नहीं

चंबल का बदला चेहरा, बीहड़ की बलखाती

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *