पूछ रहे हैं मुझ से पेड़ों के सौदागर
आब-ओ-हवा कैसे जहरीली हो जाती है?
शायर आलम खुर्शीद के इस शेर के गहरे अर्थ हैं। ये शेर रिश्तों पर भी खरा उतरता है और पर्यावरण के मानकों पर भी। विकास की अंधी दौड़ में जिस तरह पर्यावरण की अनदेखी की जा रही है, वह भयावह है। वन क्षेत्र घट रहे हैं और प्रदूषण बढ़ रहा है। शहरीकरण ऐसा हो रहा है कि जगह जगह कचरे के पहाड़ लग गए हैं। हवा में जहर घुल रहा है। एक तरफ वो लोग हैं, जिन्हें पर्यावरण की कोई चिंता नहीं, बस उनका मतलब सिद्ध होना चाहिए, तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कुछ ऐसा कर दे रहे हैं कि कुदरत मुस्कुरा उठती है। ऐसी ही एक शख्सियत हैं राजस्थान के झालावाड़ में। नाम है- खुर्शीद खान।
कोटा स्टोन की खानों से निकलता जहर
राजस्थान का कोटा शहर यूं तो कोचिंग सेंटर्स के लिए जाना जाता है। हर साल हजारों छात्र यहां अपना भविष्य बनाने आते हैं। इसी कोटा शहर से लगभग 90 किलोमीटर दूर झालावाड़ जिले में ही 200 से ज्यादा ‘कोटा स्टोन’ की माइन्स हैं। इन खदानों से निकलने वाली स्लरी (पत्थर से निकलने वाला एक घोल) का यहां अंबार लग गया है। कोटा स्टोन की खदानें तो व्यापारियों के लिए सोने का खजाना साबित हुई हैं। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि ये खदानें शहर की आब हवा को जहरीली भी बना रही हैं।
क्या है ‘कोटा स्टोन’?
राजस्थान के कोटा और उसके आस-पास के क्षेत्रों जैसे रामगंज मंडी, जवाहर नगर, झालावाड़ और बारां में कोटा स्टोन खनन होता है। कोटा स्टोन एक प्राकृतिक चूना पत्थर है। यह पत्थर अपनी चिकनी सतह, टिकाऊपन और ताकत के लिए मशहूर है। ये पत्थर बहुत महीन दाने वाले होते हैं। इसका इस्तेमाल निर्माण कार्यों, घर के फर्श, दीवारों और सीढ़ियों के लिए किया जाता है। कोटा स्टोन के मुख्य रूप में हरे-नीले और भूरे रंग के पत्थर काफी प्रसिद्ध है। ये स्टोन टाइल और मार्बल से ज्यादा टिकाऊ और मजबूत होते है। कोटा स्टोन की स्लरी से बनी टाइल, कमरे के तापमान को 5 से 7 डिग्री तक कम कर देती है। यह पत्थर भारत में तो प्रसिद्ध है ही, दुनिया के तमाम देशों को एक्सपोर्ट भी किया जाता है।
खान साहब का कमाल!
कोटा स्टोन की खानों से निकलने वाली स्लरी आस पास के पर्यावरण को लगातार प्रदूषित कर रही हैं। इसी बीच झालावाड़ के खुर्शीद खान ने एक करिश्मा कर दिखाया। उन्होंने ऐसा करिश्मा किया, जो प्रदूषण से लड़ाई में सबसे बड़ा हथियार साबित हो सकता है। दरअसल कोटा स्टोन्स की खदानों के चलते आस पास के लोगों को काफी तकलीफ झेलनी पड़ती है। इस खनन से निकलने वाले स्लरी के ऊपर झालावाड़ के रुणजी ग्राम पंचायत में लीज धारक खुर्शीद खान ने कोटा स्टोन माइन्स से होने वाले प्रदूषण से बचाने के लिए बाकायदा एक पर्यटन स्थल विकसित कर दिया।
खुर्शीद खान ने 400 फीट ऊंचे टीले पर एक बीघा जमीन में बागीचा और बंगला बना लिया। अब यह पर्यटन स्थल बन चुका है। इसके आस-पास रातरानी जैसे खुशबूदार फूल भी लगाए गए है। लोग यहां छुट्टियां मनाने आने लगे हैं। खुर्शीद खान ने इस पहाड़ पर आने के लिए 25 फीट चौड़ी सड़क भी बनाई है। बारिश की भी तैयारी कर रखी है, बारिश में रास्ता न रुके इसके लिए ड्रेनेज सिस्टम भी बनाया गया है। इससे प्रेरित होकर आस पास के कोटा, रामगंज मंडी और झालावाड़ में धूल से मुक्ति पाने के लिए इन प्रदूषित पहाड़ों को हरा-भरा करने का काम शुरू कर दिया गया है। खुर्शीद खान का कहना है कि अगर सरकार और प्रशासन उनकी मदद करे तो कोटा और आसपास के इलाकों का प्रदूषण काफी हद तक कम हो सकता है।
‘कोटा स्टोन’ के प्रदूषण से बढ़ी लोगों की तकलीफ
कोटा स्टोन की माइंस से निकलती धूल से ऑटोमोबाइल जोन में लाखों रुपए की कीमत वाली कारें बेरंग हो रही है। इस धूल के कारण शोरूम में बैठने वाले लोगों के लिए सांस लेना भी मुश्किल है। इस मामले की शिकायत कोटा मोटर व्हीकल डीलर्स एसोसिएशन ने राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास एवं निवेश निगम(रीको) को की है। पर रिको के कर्मचारियों ने इस पर कोई एक्शन नहीं लिया है। दरअसल कोटा स्टोन से निकली स्लरी सूखने के बाद धूल बन जाती है, जिसके बाद हवा चलने पर वह उड़ने लगती है। इस कारण से वहां से गुजरने वाले और वहां रहने वालों को बहुत परेशानी होती है। इसके साथ जो लोग कोटा स्टोन की खदान में काम करते हैं, उनकी सांसों के जरिए धूल फेफड़ों में जमती है, जिससे अस्थमा जैसी बीमारी होने की आशंका हो जाती है।

खनन से बढ़ती फेफड़ों की बीमारी
खदान में काम करने वाले मजदूरों में फेफड़ों की समस्या आम तौर पर देखी गई है। खुदाई के समय लोगों के फेफड़ों में धूल जम जाती है, जिससे उन्हें सिलिकोसिस जैसी गंभीर बीमारी का सामना करना पड़ता है। सिलिका धूल से होने वाली फेफड़ों की सिलिकोसिस बीमारी जल्दी ठीक नहीं होती है। यदि कोई व्यक्ति निर्माण कार्य, खनन और सुरंग में काम करता है तो वह सिलिका धूल के संपर्क में आ सकता है। इस बीमारी में समय के साथ फेफड़े कमजोर होते जाते हैं, जिससे सांस लेने में कठिनाइयां होती है।
पन्ना में सिलिकोसिस का पहाड़
मध्य प्रदेश का पन्ना जिला अपने हीरे के लिए पूरे देशभर में प्रसिद्ध है। 17वीं शताब्दी से यहां से हीरा निकाला जा रहा है। इस हीरे के लिए कई लोगों ने अपनी जान तक गवाई है। सिलिकोसिस जैसी बीमारी पन्ना क्षेत्र में आम सी हो गई है। डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट में पता चला कि पूरा गांधीग्राम गांव सिलिकोसिस की चपेट में है। डॉक्टर सही तरीके से जांच नहीं करते, इसलिए लोगों को इस बारे में पता नहीं है। जब लोग डॉक्टर के पास जाते हैं तो उसे टीबी समझकर उनका इलाज किया जाता है। ग्राम वासी बताते है कि यह बीमारी उन औरतों में भी बहुत सामान्य है जो अपने पति के साथ काम करने खदानों में जाती हैं। पन्ना जिले में पृथ्वी ट्रस्ट जो सिलिकोसिस पीड़ितों के लिए काम कर रही है। उनके निदेशक समीन यूसुफ के कहना है कि, गांधीग्राम में 20 से 25 महिलाएं विधवा हो चुकी हैं। जिसकी वजह सिलिकोसिस बीमारी है। इस बीमारी ने यहां के पुरुषों को कम उम्र में ही अपनी चपेट में ले लिया, जिससे उनकी मौत हो गई।
कूड़े से बना है चंडीगढ़ का गार्डन
झालावाड़ के खुर्शीद खान ने जैसे कोटा स्टोन से निकले प्रदूषण को रोकने के लिए उल्लेखनीय काम किया, उसी तरह का एक शानदार काम चंडीगढ़ में भी हुआ। 1957 में नेकचंद नाम के इंसान ने चंडीगढ़ में रॉक गार्डन के निर्माण की शुरुआत की। देश के मशहूर रॉक आर्टिस्ट नेकचंद ने वेस्ट मटेरियल से करीब 40 एकड़ में इस गार्डन को तैयार किया था। करीब 18 साल तक लगातार प्रयासों के बाद रॉक गार्डन बनकर तैयार हुआ। ट्यूब लाइट्स, टूटी-फूटी चूड़ियों, प्लेट, चीनी मिट्टी के टूटे कप, बोतलें और उनके ढक्कन जैसी अलग-अलग तरह की बेकार चीजों को इकट्ठा करके उन्होंने विशालकाय गार्डन बनाया है। रॉक गार्डन के निर्माण के लिए आर्टिस्ट नेकचंद को 1984 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
खान ने अपना दायित्व निभाया
चंडीगढ़ के नेकराम हों या झालावाड़ के रूणजी ग्राम के खुर्शीद खान दोनों ने पर्यावरण संरक्षण को अपना दायित्व समझा। खुर्शीद खान ने प्रदूषण से बचने के लिए जो उपाय हमें बताए हैं, वो किसी जड़ी बूटी से कम नहीं हैं। खुर्शीद खान ने अपने क्षेत्र को प्रदूषण से बचाने के लिए काफी उम्दा तकनीक इस्तेमाल की है। उन्होंने अपने लोगों के प्रति जागरूकता दिखाई और उनके लिए एक स्थान बनाया जो प्रदूषण को कम करने में मददगार साबित हो सकता है। जो दायित्व खान साहब ने राजस्थान के झालावाड़ जिले में निभाया है, ऐसा ही दायित्वबोध पूरे समाज में विकसित करने की आवश्यकता है। पर्यावरण के प्रति पूरा समाज सजग होगा तो प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई बहुत आसान हो जाएगी।