Getting your Trinity Audio player ready...
|
छुट्टियां गरमी की हों या फिर सर्दी की, छुट्टियां दीपावली की हों या फिर दशहरा या होली की। या फिर कामकाज की व्यस्तता से थोड़ी फुरसत मिले तो आप कहां जाना पसंद करेंगे। यह सवाल अगर दस साल पहले पूछा जाता तो जवाब होता कि किसी हिल स्टेशन पर, ऐसी जगह जहां बर्फ पड़ रही हो, मसूरी की हसीन वादियों में, आगरा का ताजमहल देखने या दिल्ली का कुतुबमीनार-लाल किला देखने, स्विटजरलैंड की बर्फीली दुनिया में। यानी वो जगहें जो बहुत ही खूबसूरत हों और वहां दर्शनीय स्थल हों, लेकिन अब पर्यटन की दुनिया पूरी तरह से घूम गई है। भारत में धार्मिक पर्यटन का एक नया चलन शुरू हुआ है, जिसने पूरी अर्थव्यवस्था ही पलटकर रख दिया है। पर्यटक धार्मिक स्थलों की तरफ रुख कर रहे हैं। बड़े तीर्थों की बात तो छोड़ दीजिए, छोटी-छोटी धार्मिक जगहों पर भी लाखों की संख्या में पर्यटक पहुंच जा रहे हैं। यानी जो कभी पर्यटक थे, अब वो श्रद्धालु बन चुके हैं।
दिल्ली से दूर नहीं ये पर्यटन स्थल
पहले देश की राजधानी और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर की बात कर लेते हैं। यहां बाकी छुट्टियों की बात तो छोड़िए। शनिवार-रविवार की छुट्टियां मनाने के लिए भी लोग या तो मथुरा-वृंदावन धाम निकल लेते हैं या फिर हरिद्वार ऋषिकेश की तरफ। मथुरा-वृंदावन में श्री राधेकृष्ण की भक्ति में डूबते हैं या फिर हरिद्वार-ऋषिकेश में मां गंगा की शीतलता और पावनता को आत्मसात करते हैं। कहां तो धार्मिक स्थलों की ओर लोगों को प्रेरित करने के लिए बड़े-बड़े विज्ञापन छपते थे ताकि पर्यटक वहां पर आएं और भगवान के दर्शन करें। अब हालत यह हो जाती है कि वहां के शासन प्रशासन को श्रद्धालुओं से हाथ जोड़ने पड़ जाते हैं कि भगवान के लिए कृपया कुछ दिन यहां न आएं, लेकिन दिल्ली-एनसीआर वाले हैं कि मानते ही नहीं। इसकी वजह भी है, यहां अब जाम से निजात है। मथुरा-वृंदावन जाने के लिए यमुना एक्सप्रेस बन गया है तो हरिद्वार और ऋषिकेश के बीच जाम का झाम दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे ने हटा दिया है। लोग अपनी गाड़ी उठाते हैं। ढाई-तीन घंटे में मथुरा-वृंदावन पहुंच जाते हैं तो हरिद्वार-ऋषिकेश जाने में भी साढ़े तीन से साढ़े चार घंटे लगते हैं।

हर हफ्ते शनिवार-रविवार दिल्ली-एनसीआर से हरिद्वार-ऋषिकेश और मथुरा-वृंदावन जाने वाले पर्यटकों की तादाद इतनी हो जाती है कि इन जगहों पर होटलों का किराया आसमान छूने लगता है। हाइवे पर जाम लग जाता है। सभी होटल और गेस्टहाउस खचाखच भरे रहते हैं। शनिवार-रविवार के अलावा हरिद्वार-ऋषिकेश में सबसे ज्यादा भीड़ क्रिसमस, नया साल, होली और दशहरा जैसे त्योहारों में होती है। गरमी और सर्दी की छुट्टियों में तो हरिद्वार-ऋषिकेश घूमने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
उत्तराखंड की चार धाम यात्रा का बढ़ता क्रेज
उत्तराखंड में हर साल चार धाम यात्रा होती है। उत्तराखंड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और यमुनोत्री ये चार धाम हैं। सभी का रास्ता हरिद्वार से होकर गुजरता है। अगर आप चारों धाम एक साथ करना चाहते हैं तो करीब 12 से 15 दिन का समय लग जाता है। सबसे पहले लोग यमुनोत्री पहुंचते हैं, उसके बाद गंगोत्री, फिर केदारनाथ और फिर बद्रीनाथ पहुंचते हैं। हर साल चार धाम जाने की चाहत लोगों में कितनी बढ़ रही है, इसका उत्तर ये आंकड़े दे रहे हैं।

2024 में हुई चार धाम यात्रा में बढ़ती भीड़ के कारण रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया था। इसके बाद रजिस्ट्रेशन इतने अधिक हो गए कि 31 मई तक ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन पर रोक लगानी पड़ गई। वहीं हरिद्वार और ऋषिकेश में हजारों श्रद्धालु फंस गए । यही नहीं केदारनाथ क्षेत्र में आपदा की वजह से भी एक महीने तक यात्रा बाधित रही। अगर ऐसा न होता तो 2024 में चार धाम यात्रियों की संख्या सारे रिकॉर्ड तोड़ देती।
श्रद्धा का नया केंद्रः बाबा नीम करौली का कैंची धाम
उत्तराखंड में एक तरफ चार धाम और ऋषिकेश-हरिद्वार में सैलानियों की तादाद लगातार बढ़ी है तो वहीं नैनीताल के पास बाबा नीम करौली धाम में श्रद्धालुओं की संख्या साल दर साल, दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। 10-15 साल पहले तक नीम करौली बाबा धाम में इक्का-दुक्का श्रद्धालु ही पहुंचते थे। 2015 में जबसे बाबा के धाम में फेसबुक के सुप्रीमो मार्क जुकरबर्ग पहुंचे। जब लोगों को यह पता चला कि एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स भी नीम करौली बाबा के भक्त थे, इसके बाद से तो नीम करौली बाबा के धाम पर भक्तों ने जैसे डेरा डाल दिया। छुट्टी हुई नहीं कि गाड़ी पहुंच गई बाबा के धाम में। बाबा का कैंची धाम जहां है, वहां पहले सिर्फ एक छोटा सा मंदिर था और नीचे बहती नदी, लेकिन अब वहां छोटा सा कस्बा बन गया है, विशालकाय पार्किंग बन गई है, फिर भी कई किलोमीटर तक कारों का काफिला सड़क पर रहता है। हजारों भक्त रोजाना दर्शन करते हैं। नीम करौली बाबा के मंदिर के स्थापना दिवस 15 जून को तो लाखों श्रद्धालु यहां उमड़ पड़ते हैं।
कभी-कभी तो यहां इतनी भीड़ हो जाती है कि उसे नियंत्रित करने में प्रशासन के हाथ-पांव फूल जाते हैं। यहां भीड़ की सबसे बड़ी वजह यह है कि यहां से नैनीताल की दूरी महज 20 किलोमीटर है। जब भी पर्यटक नैनीताल आते हैं तो यहां दर्शन करने जरूर आते हैं। कई बार उल्टा भी होता है कि बाबा के दर्शन किए और फिर नैनीताल भी घूम आए।
कान्हा की नगरी में भक्तों का रेला
कुछ यही हाल है मथुरा वृंदावन में जाने वाले भक्तों का। यहां दिल्ली-एनसीआर से ही नहीं, दुनिया भर से भक्त पहुंचते हैं। भगवान बांके बिहारी के दर्शनों के लिए इतनी भीड़ जमा हो जाती है कि कभी कभी अप्रिय घटनाएं भी सामने आ जाती हैं। 2024 में ही जन्माष्टमी के मौके पर मंदिर में लाखों की भीड़ उमड़ पड़ी। भीड़ में दम घुटने से एक श्रद्धालु की मौत हो गई। इसी तरह 2024 में होली के दिन भी भारी भीड़ में दम घुटने से एक श्रद्धालु की मौत हो गई थी। इसके बाद त्योहारों पर मंदिर प्रशासन ने कड़ा रुख अपनाते हुए विशेष दिशा निर्देश दे डाले थे, इसमें साफ कहा गया था कि त्योहारों में, छुट्टियों में बुजुर्गों और बच्चों को मंदिर में न लाएं। 2024 में क्रिसमस के मौके पर भी वृंदावन में भक्तों की भीड़ जमा हो गई थी। नए साल के जश्न के लिए महीने भर पहले से होटल बुक होने लगे थे। हर साल 31 दिसंबर और 1 जनवरी को मथुरा-वृंदावन धाम भक्तों से खचाखच भरा रहता है। साल 2024 में भी मथुरा-वृंदावन प्रशासन ने 25 दिसंबर से 5 जनवरी 2025 तक के लिए लोगों से अपील की थी कि वे अपने साथ बुजुर्गों, बच्चों, गर्भवती महिलाओं और गंभीर बीमारियों से परेशान लोगों को मंदिर में लेकर न आएं। नए साल के जश्न को देखते हुए वृंदावन में नया ट्रैफिक प्लान लागू किया गया है। बाहरी वाहनों की एंट्री पर रोक लगाई गई है।
न्यू इयर, क्रिसमस की तो बात छोड़िए अब तो लोग गरमी की छुट्टियों में भी बच्चों को हिल स्टेशन ले जाने की बजाय मथुरा-वृंदावन लाना पसंद करते हैं। प्रेमी युगल वृंदावन में सगाई कर रहे हैं, विवाह कर रहे हैं, बच्चों के नामकरण और मुंडन संस्कार भी कर रहे हैं। कुछ ऐसी तिथियां हैं, जिन पर मथुरा-वृंदावन में लाखों की संख्या में भक्त उमड़ पड़ते हैं। प्रशासन हाथ जोड़ता रहता है कि वृंदावन में मत आइए, लेकिन भक्त हैं कि मानते नहीं।
मथुरा-वृंदावन भगवान श्रीकृष्ण की लीला भूमि है। यहां जितनी महिमा श्रीकृष्ण की है, उससे कहीं अधिक राधा जी की है। यहां लोग सिर्फ मथुरा और वृंदावन ही नहीं, श्रीकृष्ण का जहां बचपन बीता उस नंदगांव, राधारानी के मायके बरसाना, गोकुल, बलदेव और गोवर्धन भी दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
अयोध्या में करोड़ों भक्तों का जयश्रीराम
22 जनवरी 2024 को अयोध्या के नवनिर्मित भव्य और दिव्य मंदिर में भगवान श्रीराम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्य यजमान के तौर पर पूजा की थी। उस दिन अयोध्या में साधु संतों, उद्योगपतियों, फिल्म इंडस्ट्री के सितारों का मेला लगा था। प्राण प्रतिष्ठा के दिन ही करीब 5 लाख श्रद्धालुओं ने भगवान श्रीराम के दर्शन किए थे। प्राण प्रतिष्ठा के बाद तो अयोध्या में वीवीआईपी मेहमानों का काफिला पहुंचने लगा। वर्तमान राष्ट्रपति, पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, उपराज्यपाल, राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने बार बार आकर भगवान श्रीराम के आगे माथा टेका। प्राण प्रतिष्ठा के बाद पहले महीने में ही औसतन 1.5 लाख लोगों ने प्रतिदिन भगवान श्रीराम के दर्शन किए। एक अनुमान के मुताबिक प्राण प्रतिष्ठा से लेकर 25 दिसंबर 2024 तक 1.5 करोड़ से ज्यादा भक्त श्रीरामलला के दर्शन कर चुके हैं। राम मंदिर बनने के बाद से अयोध्या में धार्मिक पर्यटन आसमान की बुलंदियों पर है । अयोध्या की धरती सोना उगल रही है । प्रॉपर्टी के रेट आसमान पर हैं। अयोध्या में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, शानदार रेलवे स्टेशन है, इसके कारण यह धार्मिक नगरी निरंतर विकास के पथ पर आगे बढ़ रही है।
अयोध्या में भी अब लोग छुट्टी मनाने पहुंच रहे हैं। सभी धार्मिक पर्वों पर तो यहां भीड़ लगती ही है, सामान्य त्योहारों पर भी यहां भक्तों का तांता लग रहा है। अभी क्रिसमस पर भी अयोध्या श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ था। नए साल के जश्न के लिए तो 15 दिन पहले से ही होटलों की बुकिंग फुल हो चुकी है। अयोध्या के चार सितारा होटल द रामायण में सभी 55 लग्जरी कमरे बुक हो चुके हैं। यहां 30 दिसंबर से 2 जनवरी तक सभी कमरे बुक हैं। रॉयल हेरिटेज होटल के सभी 175 कमरे बुक हैं। प्रशासन के अनुमान के मुताबिक अयोध्या में नये साल के जश्न में करीब 3 लाख लोगों के पहुंचने की संभावना है। इस भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन ट्रैफिक डायवर्जन और दूसरी व्यवस्थाओं में जुटा हुआ है।
कॉरिडोर ने बदली काशी की किस्मत
जो हाल है अयोध्या का वही हाल है वाराणसी का। जबसे काशी विश्वनाथ का कॉरिडोर बना है, तबसे देश-विदेश से यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ गई है। यहां भी छुट्टी मनाने लोग पहुंच रहे हैं। 13 दिसंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर का उद्घाटन किया था। कॉरिडोर बनने के बाद सिर्फ जनवरी 2022 में ही 74 लाख 60 हजार श्रद्धालुओं ने काशी विश्वनाथ के दर्शन किए। पूरे साल में करीब 6.85 करोड़ भक्तों ने बाबा के दर्शन किए। 2024 में भक्तों की संख्या थोड़ी घटी भी। 2024 में लगभग 6 करोड़ 39 लाख भक्तों ने बाबा के दर्शन किए। काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर बनने के बाद से बनारस में भी धार्मिक पर्यटन नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है। होटल उद्योग में खुशी छाई हुई है। मौका दशहरा, दीवापली, क्रिसमस या नए साल के जश्न का हो, लोग किसी अन्य पर्यटन स्थल पर जाने की बजाय बाबा विश्वनाथ के धाम काशी में जाने को वरीयता दे रहे हैं।
माता ने बुलाया है
हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थल वैष्णो देवी माता के दरबार को लेकर एक गाना प्रसिद्ध है- चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है। अब तो माता करोड़ों भक्तों को हर साल बुला रही हैं। पहले माता वैष्णो देवी की यात्रा बहुत ही दुर्गम थी, लेकिन जबसे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तबसे वैष्णो देवी के दरबार के दिन बहुर गए। कटड़ा तक ट्रेन पहुंचने लगी। मां के दरबार तक हेलिकॉप्टर जाने लगे। अब तो रोपवे से भी आसानी से मां के दर्शन कर सकते हैं। यही कारण है माता के दरबार में हर साल भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ता है। एक अनुमान के मुताबिक 2024 में 1 करोड़ से ज्यादा भक्त माता वैष्णो के दर्शन के लिए उनके दरबार में पहुंचे।
डेस्टिनेशन वेडिंग केंद्र बने धार्मिक स्थल
भारत में पिछले कुछ सालों से डेस्टिनेशन वेडिंग का चलन बढ़ गया है। यानी ऐसी जगह, जो न लड़की वालों का घर हो न लड़के वालों का घर। बिना ज्यादा तामझाम के कुछ चुने हुए बरातियों और घरातियों की उपस्थिति में शादी। अब डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए भी लोग धार्मिक स्थलों को तरजीह दे रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा लोग उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों का रुख कर रहे हैं। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के नागनाथ-पोखरी मार्ग पर एक प्राचीन मंदिर है, जिसका नाम है दुर्गाधार मंदिर। यह धार्मिक स्थल डेस्टिनेशन वेडिंग का सबसे प्रसिद्ध केंद्र है। रुद्रप्रयाग का त्रियुगीनारायण मंदिर भी डेस्टिनेशन वेडिंग का प्रमुख केंद्र है। कहते हैं कि इसी मंदिर में भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। मान्यता यह भी है कि जो युगल इस मंदिर में सात फेरे लेता है, उसे आजीवन भगवान शिव और पार्वती का आशीर्वाद मिलता है। इसके अलावा ऋषिकेश, हरिद्वार में भी हर साल बाहर से आकर सैकड़ों परिवार वैवाहिक कार्यक्रमों का आयोजन करवाते हैं।
मोदी-योगी की जोड़ी ने देश में फहराई धर्म ध्वजा
आखिरकार पिछले एक दशक में क्यों धार्मिक पर्यटन नई ऊंचाइयों पर पहुंचा है, क्यों लोग हिल स्टेशन की बजाय छुट्टियां मनाने धार्मिक नगरों में पहुंच रहे हैं। अगर इसका उत्तर तलाशेंगे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम अवश्य आएगा। आम तौर पर मोदी से पहले के जो भी प्रधानमंत्री हुए, वे धार्मिक कार्यक्रमों से दूरी बनाकर चलते थे। यहां तक कि जब ऐतिहासिक सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू उस मंदिर में नहीं गए थे, नेहरू के विरोध के बावजूद तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद पहुंचे थे। जबकि सोमनाथ मंदिर का निर्माण देश के लिए गर्व की बात थी।
वहीं बात अगर नरेंद्र मोदी की करें तो 2014 में उन्होंने पहले तो लोकसभा चुनाव में अपने लिए वाराणसी की सीट चुनी। चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिली और प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले मोदी वाराणसी पहुंच गए। उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर में बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए। रुद्राभिषेक किया और मां गंगा का दुग्धाभिषेक किया। मोदी ने इस कार्यक्रम के माध्यम से एक तरह से धार्मिक क्रांति का शंखनाद कर दिया था। उधर मार्च 2017 में योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। देश और उत्तर प्रदेश में धर्म ध्वजा लहरा उठी। दोनों खुलकर धार्मिक कार्यक्रमों में जाने लगे। मोदी जब भी काशी गए, बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए, विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती देखी। काठमांडू पहुंचे तो पशुपतिनाथ के दर्शन किए। मोदी-योगी के कार्यकाल में ही राम मंदिर पर फैसला आया। पीएम मोदी ने तमाम आलोचनाओं के बावजूद अयोध्या में भूमि पूजन किया, मंदिर बनने के बाद प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भी मुख्य यजमान के रूप में भी पूजन किया। उज्जैन में बाबा महाकाल का कॉरिडोर बना तो बनारस में बाबा विश्वनाथ का कॉरिडोर। हर जगह उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूद रहे। अब अगला नंबर वृंदावन कॉरिडोर का है, जिसका रोडमैप तैयार हो चुका है। अयोध्या और वाराणसी जैसी धर्म नगरी के विकास में मोदी-योगी की जुगलबंदी ने इतिहास रच दिया। यही नहीं प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू-कश्मीर में सबसे प्रमुख तीर्थ स्थल मां वैष्णोदेवी के दरबार तक भक्तों की पहुंच आसान करवा दी। तीर्थस्थलों पर विकास कार्य हुए तो पर्यटकों के लिए ये धर्म स्थल घूमने-फिरने की जगहों में वरीयता पर आ गए। एक तो धर्म और ऊपर से पर्यटन का भी आनंद। ऐसे में छुट्टियों में धार्मिक जगहों पर भीड़ उमड़नी ही थी।
भारत में धार्मिक पर्यटन का अर्थशास्त्र
- कोविड के बाद से लगातार बढ़ा धर्म का बाजार
- 2023 से 2030 तक धर्म के बाजार का कंपाउंड एनुअल ग्रोध 16% रहने का अनुमान
- 2023 में भारतीय धार्मिक बाजार का मार्केट साइज करीब 5 हजार 91 करोड़ रुपये
- 2032 तक धार्मिक बाजार का मार्केट साइज करीब 11 हजार करोड़ रुपये
- दुनिया के जाने-माने ब्रांड्स ने किया धार्मिक स्थलों का रुख
स्रोत -IMARC