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भूतिया फिल्मों की ‘भूल-भुलैया’ में फिर से गोते लगाता बॉलीवुड, जान लीजिए पूरा इतिहास

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हाईलाइट

-स्त्री और भूल भुलैया सीरीज की कामयाबी से लौटा हॉरर कॉमेडी फिल्मों का दौर
-हॉरर फिल्म की शूटिंग के लिए खोदा गड्ढा और उसमें से सचमुच निकल आई लाश
-क्या रामसे ब्रदर्स ने सचमुच चुड़ैल को दी थी अपनी कार में लिफ्ट?
– हॉरर फिल्मों के स्टैंडर्ड पर कहां खड़ा है बॉलीवुड?

– केवी शाहाबादी

अगर आपने स्त्री-2 और भूल-भुलैया सीरीज की तीसरी फिल्म देख ली होगी, तो आपके जेहन में भी ये सवाल उठ रहा होगा। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि इन दोनों फिल्मों ने ना सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर कमाई की, बल्कि हॉरर फिल्मों के नए जॉनर को दर्शकों के बीच लोकप्रिय बनाया। इसमें हॉरर के साथ कॉमेडी और रोमांस का गजब तड़का है। इन्हीं के बीच एक तुम्बाड-2 जैसी फिल्म भी आई, जो इन लोकप्रिय तड़कों से बचते हुए परदे पर गजब का हॉरर क्रियेट करती है। खास बात ये, कि कम लागत में बनी इन फिल्मों की बॉक्स ऑफिस पर कमाई इतनी कि हजार-दो हजार करोड़ की कमाई वाली फिल्में बनाने वाले निर्माता निर्देशकों और सुपरस्टार्स को भी रस्क हो जाए।

वैसे, सिनेमा के परदे पर हॉरर, यानी डर को भूत-प्रेत और भटकती आत्माओं वाली कहानियों से भुनाने का चलन पुराना है। ऐसा इसलिए भी, कि दुनिया भर के मिथकीय कहानियों में भूत-प्रेत और सुपरनेचुरल पावर्स का जिक्र है। जैसे जैसे सिनेमाई तकनीक का विकास हुआ, परदे पर एक से बढ़कर एक हॉरर फिल्में आई. अगर बात करें हॉलीवुड की तो 1970 के दशक में ‘हैलोवीन’ सीरिज और ‘द एक्जोरसिस्ट’ नाम की फिल्मों ने सबका ध्यान खींचा था। 1973 में आई ‘द एक्जोरसिस्ट’ को तो आज तक की सबसे डरावनी फिल्म कहा जाता है। कई सर्वेक्षणों में ऐसी डरावनी फिल्मों की टॉप-20 लिस्ट तैयार की गई है, लेकिन इस लिस्ट में क्या भारत की कोई हॉरर मूवी है?

इस सवाल से पहले ये जानना होगा, कि भारत में हॉरर फिल्में बननी कब शुरू हुई थीं। वैसे तो भारत में सिनेमा की शुरुआत ही धार्मिक फिल्मों से हुई। 1913 में आई फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ की कहानी का आधार धार्मिक आख्यान ही था। तब फिल्मों में डायलॉग्स नहीं होते थे। इन्हें मूक फिल्में कहा जाता था। भारत में फिल्मों में आवाज की शुरुआत 1931 में आई फिल्म ‘आलम आरा’ से होती है और भूतिया फिल्मों का सिलसिला 1 साल बाद 1932 से. फिल्म थी- ‘जिंदा लाश’।

92 साल पहले बनी इस फिल्म का कोई क्लिप या गाना नहीं मिलता, लेकिन कुछ दिनों ‘रेडिट’ नाम के प्लेटफॉर्म पर इस फिल्म की एक तस्वीर शेयर की गई थी। इसमें मशहूर अदाकार के.एल सहगल और अभिनेत्री रत्तन बाई नजर आ रही हैं। फिल्म की कहानी एक ऐसी राजकुमारी की है, जिस पर किसी शैतानी रूह ने कब्जा जमा लिया है। इसके बाद साल 1949 में महल नाम की फिल्म आई, जिसमें अशोक कुमार और मधुबाला जैसे कलाकार थे। हालांकि तब ये फिल्म आज की तरह पूरी तरह भूत-प्रेत पर आधारित हॉरर फिल्में नहीं मानी गईं। तब भारतीय फिल्मों में स्पेशल इफेक्ट का इस्तेमाल नहीं के बराबर हुआ करता था। लिहाजा हॉलीवुड की फिल्मों से मुकाबला वैसे भी मुश्किल था। यही वजह है आजादी के बाद 50 और 60 के दशक में ऐसी फिल्में न के बराबर बनीं, लेकिन इसी दशक के आखिर कुछ ऐसा हुआ, जिसने भारत में हॉरर फिल्मों का पूरा सीन बदल दिया।

साल था 1969। ‘एक नन्ही मुन्नी लड़की’ नाम की एक फिल्म की शूटिंग का आखिरी शिड्यूल चल रहा था। फिल्म में मुख्य भूमिका पृथ्वीराज कपूर, मुमताज और हेलन जैसे सितारों की थी। इस फिल्म की कहानी कुमार रामसे ने लिखी थी। इस फिल्म के साथ रामसे ब्रदर्स की कोशिश थी, बड़ी स्टारकास्ट के साथ हॉरर फिल्मों को फिल्मों को सिनेमा की मुख्यधारा में लाने की। फिल्म के एक सीन में पृथ्वीराज कपूर भूतों वाला मास्क जब पहनकर आते हैं तो हीरोइन मुमताज बुरी तरह डर जाती हैं। हालांकि ये फिल्म फ्लॉप रही, लेकिन भूतों वाले मास्क का सीन काफी चर्चित हुआ। इस एक सीन ने कुमार रामसे को एक नई भूतिया फिल्म लिखने के लिए प्रेरित किया। वो फिल्म थी ‘दो गज जमीन के नीचे’।

कुमार रामसे और उनके चाचा और कई भाई, यूं समझिए एक ही परिवार के कई लोग फिल्म निर्माण से जुड़े थे। इनकी बनाई फिल्में जब हिट होने लगी, तो ये रामसे ब्रदर्स के नाम से एक ब्रांड बन गए। इसे स्टैबलिश करने में ‘दो गज जमीन के नीचे’ नाम की फिल्म ने बड़ी भूमिका निभाई। फिल्म का बजट हालांकि बहुत कम था, इसलिए इसकी शूटिंग असली श्मशान में की गई। इस दौरान कहानी के मुताबिक जब सेट पर गड्ढा खोदा जाने लगा, तो उसमें से सचमुच की लाश निकल आई.ये देखकर पूरी यूनिट घबरा गई थी।

रामसे ब्रदर्स में सबसे बड़े तुलसी रामसे के बेटे दीपक रामसे ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनकी शुरुआती फिल्मों में भूतों के किरदार ने उनके एक पारिवारिक करीबी की किस्मत बदल दी थी। दरअसल वो शख्स करीब साढ़े 6 फीट लंबा था। एक हादसे में उनका चेहरा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ था। तब रामसे ब्रदर्स ने उन्हें अपनी फिल्म में भूत का किरदार दिया। ऐसा इसलिए भी क्योंकि भारत में तब प्रोस्थेटिक मेकअप का इस्तेमाल बहुत महंगा होने की वजह से नहीं किया जाता था। तब कलाकारों को भूतों का मास्क पहनाकर शूटिंग की जाती थी, लेकिन इसमें दिक्कत ये होती थी कि चेहरे पर एक्सप्रेशन असली नहीं होते थे। सिर्फ लाइटिंग और कैमरा एंगल के जरिए कुछ इमोशन क्रियेट किए जाते थे, लेकिन रामसे ब्रदर्स ने जब पहली बार एक रियल आदमी को भूत के रोल में उतारा,तो पूरा सीन बदल गया।

भूतिया फिल्मों की दुनिया में रामसे ब्रदर्स को जिस फिल्म ने सबसे कामयाब ब्रांड बनाया, वो फिल्म थी वीराना। ये फिल्म 1988 में रिलीज हुई थी। ये फिल्म दरअसल एक हादसे के बाद बनी थी। रामसे ब्रदर्स में से एक श्याम रामसे अपनी एक फिल्म की शूटिंग से मुंबई लौट रहे थे। शाम ढल चुकी थी, रास्ता सुनसान था, तभी सड़क के किनारे एक महिला श्याम रामसे की कार को हाथ देती नजर आई। वीरान इलाके में महिला को अकेली देखकर श्याम रामसे ने ड्राइवर से गाड़ी रोकने को कहा। उसने महिला को कार की पिछली सीट पर बिठा लिया, लेकिन जैसे जैसे गाड़ी आगे बढ़ी, उस महिला का व्यवहार अजीब होता गया।

इस घटना का जिक्र श्याम रामसे की भानजी प्रीति कृपलानी ने अपनी किताब ‘घोस्ट इन आवर बैकयार्ड’ में किया है। प्रीति ने लिखा है कि उनके मामा श्याम ने जब महिला के अजीब व्यवहार को महसूस करते हुए उसकी तरफ देखा तो उसके पांव मुड़े हुए थे। भूत प्रेतों के ऊपर फिल्मे बनाने वाले श्याम रामसे को ये पता था, ये उल्टे पांव चुड़ैलों के बताए जाते हैं। इसके बाद उन्होंने फौरन उस महिला को कार से उतार दिया और 100 की रफ्तार से कार भगाकर मुंबई पहुंचे।

अगर आपने वीराना फिल्म देखी होगी, तो इस फिल्म में भी जो महिला भूत का किरदार है ,वो लोगों से कार में लिफ्ट लेती है और बीच रास्ते में मार देती है। इस फिल्म में डरावने सुनसान में भूत के किरदार से गजब का रोमांच पैदा किया गया है। ये इफेक्ट पैदा करने के लिए रामसे ब्रदर्स असली श्मशान के एंबीयंस का इस्तेमाल करते थे। वीराना के लिए भी इन्होंने कई रातों को श्मशान और कब्रिस्तान में रिकार्डिंग कराई। एक दिन रिकार्डिंग सुनते हुए स्टूडियो में सबके होश उड़ गए। दरअसल उस रिकार्डिंग में किसी आदमी के जोर जोर से सांस लेने की आवाजें आ रही थी। पूछने पर रिकार्डिंग वाले टेक्नीशियन ने बताया कि उसके अलाव वहां पर कोई नहीं था।

वीराना के बाद सिनेमा का दौर बदला, लेकिन भूतिया फिल्मों की दुनिया में रामसे ब्रदर्सका दबदबा कम होने लगा। पूरे 90 के दशक की बात करें, तो रामगोपाल वर्मा की ‘रात’ और महेश भट्ट की ‘जुनून’ जैसी इक्की दुक्की फिल्मों ने ही सुर्खियां बनाई। रामसे ब्रदर्स की फिल्में तो इस दौर में आईं, लेकिन सब बी या सी ग्रेड स्टारकास्ट और कंटेट के साथ। साल 2002 में महेश भट्ट कैंप ने भूतिया फिल्मों को नए सिरे से ग्लैमराइज किया। फिल्म थी -राज़, जिसने विपाशा बसु और डीनू मोरिया जैसे कलाकारों को रातों रात स्टार बना दिया। इसके बाद सीन में रामगोपाल वर्मा आते हैं। भूत और डरना मना है जैसी फिल्मों से रामू ने परदे पर रहस्य और रोमांच का नया संसार गढ़ा, लेकिन ये सिलसिला फिर भी वैसे नहीं चला, जैसे हॉलीवुड में आगे बढ़ा।

रामगोपाल वर्म ने ‘डरना जरूरी है’ नाम से अपनी फिल्म का सीक्वल बनाया, तो भट्ट कैंप ने ‘राज- द मिस्ट्री कंटीन्यूज’, लेकिन इस दौर में 2007 में आई ‘भूल-भुलैया’ को छोड़कर किसी ने भी अपनी छाप नहीं छोड़ी। इसके बाद ‘राज़ थ्री-डी’ आई, एक थी डायन, 3-जी, भूतनाथ, अलोन, 1920 लंदन, परी, 1921 और 2018 में तुंबाड़ जैसी फिल्में आई, लेकिन थोड़ी बहुत सुर्खियां तुंबाड़ को ही मिली। इसी साल रिलीज हुई ‘स्त्री’ ने सुर्खियों के साथ बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी भी बटोरी. इस फिल्म को भारत में भूतिया फिल्मों का टर्निंग प्वाइंट कहा जा सकता है, लेकिन हॉलीवुड की हॉरर फिल्मों से मुकाबले के लिए अभी अभी भारत की भूतिया फिल्मों को लंबा सफर तय करना होगा।

2017 में हॉलीवुड की ‘इट’ और 2018 में ‘नन’ जैसी फिल्मों ने जैसा हॉरर क्रियेट किया, उसकी मिसाल आज तक दी जाती है. लेकिन भारतीय फिल्म इंडस्ट्री अभी तक हॉरर फिल्मों की दुनिया का कोई क्लासिक नहीं तैयार कर पाई है।

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