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ग्लेडिएटर्स का सच: एक गुलाम की बगावत ने खून-खराबे वाले खेलों के खिलाफ उठाई आवाज और बदल दिया इतिहास

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– गोपाल शुक्ला

इन दिनों सिनेमा प्रेमियों के बीच ग्लेडिएटर 2 फिल्म की खासी चर्चा है। हर कोई इस फिल्म के बारे में बात करना पसंद कर रहा है। एक्शन से भरपूर इस फिल्म में गजब की सिनेमेटोग्रॉफी तो है ही, फिल्म के किरदार और उनके गेटअप ने फिल्म में जान डाल दी है। पर्दे पर सब कुछ उसी दौर का नज़र आता दिखाई पड़ता है जिस दौर की कहानी कही गई है।

फिल्म की वजह से ग्लेडिएटर्स पर सर्च बढ़ी

इस फिल्म का एक कमाल ये भी है कि इस फिल्म के साथ ही इतिहास के पन्ने भी खंगाले जाने लगे हैं। लोग गूगल पर अब ग्लेडिएटर्स का पूरा इतिहास जानने को बेताब होने लगे हैं। कौन होते थे ग्लेडिएटर्स? कैसे रहते थे? उन्हें कौन पालता था? ग्लेडिएटर्स का मालिक कौन होता था? क्या कभी कोई ग्लेडिएटर आजाद भी हुआ? अब तक का सबसे बड़ा और सबसे कामयाब ग्लेडिएटर कौन हुआ? वगैराह वगैराह। ऐसे अनगिनत सवालों के साथ लोगो ने गूगल पर ग्लेडिएटर्स की सर्च बढ़ा दी है।

खूनी लड़ाइयों की पूरी हकीकत

रोमन ग्लेडिएटर्स की खूनी लड़ाइयों के बारे में दुनियाभर में हजारो वर्षों से कई तरह की कहानियां सुनाई जाती रहीं हैं। इसमें सबसे अहम ये है कि ये लड़ाइयां किसी एक लड़ाके के मरने के बाद ही खत्म होती थीं। अब तक लोगों में एक आम धारणा यही थी ग्लेडिएटर हमेशा मौत तक लड़ते थे। यानी जीतने वाला बच जाता था और हारने वाला मारा जाता था। आमतौर पर रोमन सम्राट की विशेष अनुमति के साथ ऐसी लड़ाइयाँ होती थीं, और इसका मतलब यही होता था कि हारने वाले की मौत हो जाती थी और बचने का कोई मौका नहीं होता था।

इतिहास के पन्नों में छुपा सस्पेंस

इतिहास के पन्नों में छुपा ये सस्पेंस अब काफी हद तक साफ हो चुका है। टीवी और फिल्मों ने भी इस समझ को बढ़ाने और सस्पेंस दूर करने में मदद की है। साल 2000 में आई लोकप्रिय फिल्म ‘ग्लेडिएटर’ भी इसी सोच को पुख्ता करती है कि रोमन ग्लेडियेटर्स की लड़ाई तब तक पूरी नहीं मानी जाती थी, जब तक कम से कम एक फाइटर मर नहीं जाता था। सवाल ये है कि क्या सच में ग्लेडिएटर मौत होने तक लड़ते थे?

ग्लेडिएटर के जिंदा रहने की कहानी

कई बार लड़ाई में ग्लेडिएटर की मौत होती थी लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता था। एक्सपर्ट का कहना है कि ग्लेडिएटर फाइट में सरेंडर का भी विकल्प होता था। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ता अल्फोंसो मानस ने ग्लेडियेटर्स के इतिहास पर बड़े पैमाने पर रिसर्च की। उनका कहना है कि ग्लेडियेटर्स की मौत अलग समय पर अलग रही है। मानस के मुताबिक शुरुआती ग्लेडिएटर लड़ाइयों का अंत एक या दोनों लड़ाकों की मौत के साथ ही होता था। मानस के मुताबिक, ’27 ईसा पूर्व के बाद ग्लेडिएटर खेलों में सुधार किया गया, जिससे मौतें कम होने लगीं। ये सुधार करीब 30 ईसा पूर्व के सम्राट ऑगस्टस और 14 ईसा पूर्व के सम्राट टिबेरियस के शासनकाल के दौरान हुए।

नियम बदले तो जिंदा बचे ग्लेडिएटर

पहली शताब्दी ईस्वी में पोम्पेई की दीवारों पर ग्लैडीएटर की लड़ाई के जो चित्र हैं उनसे ये नतीजा निकाला गया है कि 5 लड़ाइयों में से एक का अंत हारने वाले की मौत के साथ हुआ। लेकिन 27 ईसा पूर्व के बाद नियम बदल गए। मानस बताते हैं कि रिसर्च में मिले सबूत यह संकेत देते हैं कि नियम बदलने के बाद एक ग्लैडिएटर अपनी ढाल गिराकर और सिर झुकाकर आत्मसमर्पण कर सकता था। इस दौरान इस खेल का रेफरी किसी ग्लेडिएटर को मौत के कगार पर देखकर लड़ाई रोक सकता था। हार मानने वाले को मैदान छोड़ने की इजाजत दे दी जाती थी।

ग्लेडिएटर के खूनी संघर्ष के पीछे रोमन सम्राच की चाल

इसी के साथ ही एक सवाल ये भी खड़ा होता है कि आखिर रोमन सम्राट ये ग्लेडिएटर्स का खूनी खेल क्यों करवाते थे? असल में रोमन ग्लेडिएटर खेल सम्राटों और धनी अभिजात वर्ग के लिए जनता के सामने अपनी संपत्ति प्रदर्शित करने का भी एक मौका होता था। इसके अलावा सेना की जीत का जश्न मनाने के लिए भी ये खेल खेला जाता था। लेकिन एक और भी कारण था जनता का ध्यान उस समय की राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं से हटाने के लिए भी इन खेलों का आयोजन किया जाता था।

गुलामों को पालने का चलन

रोमन साम्राज्य इंसानों को बड़ी संख्या में गुलाम रखता था। ये तमाम गुलाम या तो उस समय के राज्य के अपराधी हुआ करते थे या फिर युद्ध बंदी। ये गुलामी इस कदर यहां फैल गई थी कि उस दौर के साम्राज्य के अर्थ, समाज और संस्कृति में समा गई थी।

जिंदा भी छोड़े जाते थे ग्लेडिएटर

द ओपन यूनिवर्सिटी के वर्जीनिया कैंपबेल ने बताया कि ग्लेडिएटर्स को उनके मालिकों से किराए पर लिया जाता था, जो खेल खेलना चाहते थे। इस करार के कुछ सबूत भी सामने आए हैं जो दिखाते हैं कि एक ग्लेडिएटर को गंभीर रूप से घायल होने पर लौटाया भी जाता था। वह कहते हैं कि मैदान में जाने वाले कुछ कैदी भी होते थे जिन्हें जंगली जानवर अपना निवाला तक बना लेते थे। असल में ये उन कैदियों को सुनाई गई सजा का हिस्सा होती थी।

स्पार्टाकस भी था एक ग्लेडिएटर

इन्हीं ग्लेडियटर्स की कहानियों में स्पार्टाकस की कहानी भी बहुत मशहूर है जिसे दुनिया भर में बच्चों को पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से पढ़ाया जाता था। स्पार्टाकस के बारे में ये मशहूर है कि वो इतिहाक का सबसे बड़ा और सबसे मशहूर ग्लेडियटर्स था जिसकी शुरुआत एक सैनिक के तौर पर हुई थी। जिसे युद्ध के दौरान एक सैनिक ने पकड़ लिया था और गुलामी के लिए बेच दिया था। लेकिन एक रोज यही स्पार्टाकस क्रांति कर देता है और गुलामी की जंजीरें को तोड़ कर रोमन साम्राज्य के खिलाफ बगावत कर देता है।

स्पार्टाकस बना गुलामों की बगावत का नेता

स्पार्टाकस ने रोम के खिलाफ तीसरे और सबसे बड़े गुलाम विद्रोह का नेतृत्व किया था । लगभग 100,000 की उसकी सेना ने दक्षिणी इटली के ज्यादातर हिस्सों पर कब्ज़ा कर लिया था और इटली प्रायद्वीप की पूरी लंबाई तक आल्प्स तक लड़ाई लड़ी। फिर वह सिसिली तक पहुँचने की कोशिश में दक्षिण की ओर मुड़ गया, लेकिन मार्कस लिसिनियस क्रैसस से हार गया।

पैदायशी गुलाम नहीं था स्पार्टाकस

स्पार्टाकस का असली नाम स्पार्डाकोस था, जिसका मतलब होता है “अपने भाले के लिए मशहूर।” बताया जाता है कि जब वह ग्लेडिएटर बना तब उसकी उम्र करीब 30 साल की थी। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि वह कुलीन या कुलीन रक्त का था। स्पार्टाकस का जन्म गुलामी में नहीं हुआ था, बल्कि उसने रोमन सेना में एक सहायक के रूप में अपनी शुरूआत की थी।
स्पार्टाकस को गुलाम के तौर पर बेचा गया था।

स्पार्टाकस न केवल महान था बल्कि साहस और शक्ति से संपन्न था। स्पार्टाकस पैदायशी थ्रेसियन था जिसे कैपुआ के एक ग्लेडीएटोरियल स्कूल में गुलाम के तौर में बेचा गया था। स्पार्टाकस उन 78 लोगों में से एक था, जो बच निकले और माउंट के कैल्डेरा में शरण ली थी।

गणतंत्र युग में, निजी नागरिक ग्लेडियेटर्स का स्वामित्व रख सकते थे और उन्हें प्रशिक्षित कर सकते थे, या उन्हें लैनिस्टा (ग्लेडिएटर प्रशिक्षण स्कूल के मालिक) से पट्टे पर ले सकते थे।

स्पार्टाकस । संभवतः इतिहास के सबसे प्रसिद्ध ग्लेडिएटरों में से एक। स्पार्टाकस ने थ्रेसियन सैनिक के रूप में शुरुआत की थी, जिसे रोमन सैनिकों ने पकड़ लिया था और गुलामी में बेच दिया था। उसने अपना करियर एक ग्लेडिएटर के रूप में शुरू किया, इस दौरान उसने गुप्त रूप से अन्य ग्लेडिएटरों को उनके भाग्य के विरुद्ध खड़ा किया।

ये कहानी प्राचीन Rome के उस खेल की है, जिसमें शक्ति प्रदर्शन के साथ क्रूरता भी थी. फिर .

एक दौर में प्राचीन . ये था स्पार्टकस. ग्लैडिएटर लड़ाका- स्पार्टकस.
?

है।

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  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

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