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– श्याम दत्त चतुर्वेदी:
1990 में बाला ठाकरे की शिवसेना के साथ छोटे भाई की हैसियत से 42 सीटें जीतने वाली बीजेपी इस बार चुनाव में अकेले अब बहुमत के करीब आ गई। उसके नेतृत्व में बना महायुति गठबंधन सरकार बनाने की तैयारी में जुट गया है। सवाल उठता है कि आखिर महाराष्ट्र के इस फंसे हुए चुनाव में बीजेपी जीत का रास्ता दिखा कैसे? इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है बीजेपी के फायर ब्रांड नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ। हरियाणा के बाद अब महाराष्ट्र में योगी का महामंत्र बहुत काम आ गया है। मराठी मानुष को ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और PM मोदी का ‘एक हैं तो सेफ हैं’ का नारा शायद सबसे ज्यादा पसंद आया तभी तो सूबे की चाबी सूबे की जनता ने महायुति को थमाने का इरादा किया। अब नतीजे सबके सामने हैं।
हालांकि, महज 5 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव के नतीजे देखकर इस रिजल्ट का अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा था। क्योंकि, लोकसभा चुनाव में अगर विधानसभावार आंकड़ों को देखा जाए तो ठाकरे की शिवसेना के पास 57 सीटें थी। बीजेपी को महज 79 सीटों में तगड़े वोट मिले थे। जबकि, कांग्रेस के पास 63 सीटों पर बहुमत था।
योगी के महामंत्र से जीती महाराष्ट्र की महाभारत
महाराष्ट्र में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारा काम कर गया। हरियाणा में भी इस नारे का असर देखा गया था, जिसके बाद भाजपा को ऐतिहासिक जीत मिली थी। योगी आदित्यनाथ ने सबसे पहले यह नारा दिया ‘बटेंगे तो कटेंगे’। इसके लेकर उनका सियासी विरोध हुआ। इस बीच PM मोदी ने भी दोहराया ‘एक हैं तो सेफ हैं’। महाराष्ट्र में महायुति के शानदार प्रदर्शन से साफ है कि राज्य की जनता को यह नारा पसंद आया है।
काम आ गई RSS की रणनीति
महाराष्ट्र में जब बीजेपी ने योगी के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ वाले बैनर लगाए, तो इसकी तीखी आलोचना भी हुई। क्योंकि महाराष्ट्र में हिंदुत्व की छवि उत्तर प्रदेश या हरियाणा जैसी नहीं है। इसके साथ ही महाराष्ट्र चुनाव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपनी रणनीति को बड़ी सतर्कता के साथ अंजाम दिया। हरियाणा की तरह, महाराष्ट्र में भी संघ के कार्यकर्ता चुनावों में सक्रिय रहे। संघ ने इन चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंकी है।
इन मुद्दों से खेल गई बीजेपी
बीजेपी नेताओं ने ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे को देश में जातिवाद, छुआछूत और अन्य भेदभाव को खत्म करने के लिए आवश्यक बताया। उन्होंने जनता के बीच प्रचारित किया कि सभी जातियों के लोगों को मिलकर देश की तरक्की के लिए काम करना होगा।
चुनाव के दौरान राज्य में ‘वोट जिहाद’ का मुद्दा भी जोर पकड़ने लगा था। भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि लोकसभा चुनाव में वोट जिहाद ही मुख्य कारण था, जिसमें एक विशेष समुदाय ने भाजपा के खिलाफ वोट दिया। फडणवीस का ये प्लान भी काम कर गया।
इस चुनाव में दो शब्दों ‘रेड बुक’ और ‘अर्बन नक्सल’ ने काफी सुर्खियां बटोरीं। भाजपा ने राहुल गांधी के संविधान की लाल किताब को हाथ में पकड़े हुए दिखाए जाने पर इन शब्दों का उपयोग किया।
5 महीने 5 फैक्टर से पलटा गेम
2024 के लोकसभा चुनाव में मिली हार से सबक लेते हुए, बीजेपी और महायुति ने अपनी रणनीति को मजबूत किया और कई कदम उठाए। शिंदे सरकार ने चुनावी मैदान में उतरने से पहले कई लोकलुभावन योजनाएं शुरू कीं, जिनका असर चुनावी नतीजों पर पड़ा। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम अजीत पवार ने महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों का दौरा कर सियासी माहौल बनाने की पूरी कोशिश की। इसके साथ ही, बीजेपी ने अपने बिगड़े हुए सियासी समीकरणों को सुधारने के लिए कई रणनीतियों पर काम किया। महायुति के लिए यह कदम बेहद कारगर साबित हुए। अब गठबंधन सरकार बनाने जा रहा है।
1- ‘माझी लाड़की बहिण’ योजना
महाराष्ट्र में जून 2024 में शुरू की गई ‘माझी लाडकी बहिण’ योजना ने महायुति गठबंधन को महिलाओं का समर्थन दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई। इस योजना के तहत महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिए गए। चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने वादा किया था कि यदि महायुति सत्ता में आती है, तो इस योजना के तहत महिलाओं को हर महीने 2100 रुपये दिए जाएंगे। यह वादा महिलाओं का मन मोह गया और सफल रहा।
2- बूथ स्तर पर संघ ने किया प्रचार
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी को समर्थन दिलाने के लिए RSS ने ग्राउंड पर व्यापक काम किया। संघ के करीब 60 हजार कार्यकर्ता बूथ स्तर पर सक्रिय रहे और 12 हजार से ज्यादा छोटी-बड़ी बैठकें कीं। विशेषज्ञों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन को देखते हुए संघ ने इस बार अपने साइलेंट वर्कर की भूमिका को मजबूत किया।
3- महाविकास अघाड़ी का नैरेटिव असफल
महाविकास अघाड़ी (MVA) इस चुनाव में जनता के बीच कोई मजबूत नैरेटिव बनाने में विफल रही। लोकसभा चुनाव में जहां ‘संविधान’ और ‘आरक्षण’ जैसे मुद्दे कारगर साबित हुए थे, वहीं विधानसभा चुनाव में ‘गद्दारी’ के नारे तक सीमित रहना उन्हें भारी पड़ा। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने महंगाई और किसानों के मुद्दे उठाए, लेकिन ये प्रभावी साबित नहीं हुए। विदर्भ और कुछ अन्य क्षेत्रों में इसका कुछ फायदा मिला, लेकिन बड़े पैमाने पर जनता ने इसे नकार दिया।
4- छोटी जातियों पर फोकस
इस बार बीजेपी ने मराठा समुदाय के बजाय हरियाणा की तरफ छोटी-छोटी जातियों पर फोकस किया। माली, धनगर और वंजारी जैसी ओबीसी जातियों के लिए ‘माधव’ फॉर्मूले को फिर से जिंदा किया गया। बीजेपी ने जातिगत समीकरण साधने के लिए स्थानीय उम्मीदवारों को टिकट दिया, जैसे विदर्भ में तेली समाज के उम्मीदवार। यही कारण रहा कि दलित और मुस्लिम वोट इस बार एकतरफा नहीं गया। इसका फायदा बीजेपी को मिला।
5- बढ़ी वोटिंग से मिली बढ़त
2019 के विधानसभा चुनाव में 61.1% वोटिंग हुई थी, जो इस बार बढ़कर 66% हो गई। बीजेपी और महायुति ने अधिक वोटिंग सुनिश्चित करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए। बढ़ी हुई वोटिंग का सीधा फायदा महायुति को मिला। लोकसभा चुनाव में महायुति को 1.5% वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन इस बार ज्यादा वोटिंग ने उनकी जीत सुनिश्चित कर दी।