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-श्यामदत्त चतुर्वेदी
इन दिनों महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों के कारण देश में सियासी पारा हाई है। नेता एक दूसरे पर जमकर हमला कर रहे हैं। इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे जमकर हमला कर रहे हैं। खड़गे ने झारखंड के पांकी में योगी आदित्यनाथ पर जमकर निशाना साधा। इसका जवाब CM योगी ने महाराष्ट्र के अकोला में दिया और इतिहास के पन्नों को पलटने के साथ खड़गे को सलाह दी कि आप भी मेरे नारे के बारे में लोगों को बताएं, क्योंकि आप खुद भी इसके भुक्तभोगी हैं। इस तरह से मामला हैदराबाद के आखिरी निजाम तक पहुंच गया। आइये जानते हैं कि हैदराबाद का आखिरी निजाम मीर उस्मान अली खान कौन था? कौन थे उसके रजाकार और क्या सच में उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे के परिवार को जलाकर मार डाला था? आखिर CM योगी ने क्या कहा और इस बात में कितनी सच्चाई है?
CM योगी आदित्यनाथ ने क्या कहा?
योगी आदित्यनाथ ने अकोला की रैली में कहा- आजकल कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे जी मुझ पर अनावश्यक रूप से लाल-पीले हो रहे हैं। गुस्से में हैं। खड़गे जी मेरे ऊपर गुस्सा मत कीजिए, मैं आपका सम्मान करता हूं। आपको गुस्सा करना है तो निजाम पर करिए हैदराबाद के निजाम पर। एक हैदराबाद के निजाम के रजाकारों ने आपके गांव को जलाया था। हिंदुओं की निर्मम हत्या की थी। आपकी पूज्य माता को, आपकी बहन को, आपके परिवार के सदस्यों को जलाया था। इसकी सच्चाई दुनिया के सामने रखिए। आप वोट बैंक के लिए इस सच्चाई को देश के सामने रखने में कोताही कर रहे हैं। देश के साथ धोखा आप कर रहे हैं। इस सच्चाई को देश के सामने रखिए कि जब भी बंटेंगे तो ऐसे निर्ममता से कटेंगे।
खड़गे ने क्या कहा था?
झारखंड में चुनाव प्रचार करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पांकी में जनसभा को संबोधित करने पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने योगी के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे को निशाने पर लेते हुए कहा कि भाई एक काम करो। दो-दो काम क्यों करते हो। जो साधु-संत होता है वो तो सभी का होता है। बांटों, काटो में क्यों जा रहे हो। ये बोल रहे हैं कि बंटेंगे तो कटेंगे। ये साधु का काम है? नागपंथ का काम है? इतना ही नहीं आगे खड़गे ने कहा कि बंटेंगे तो कटेंगे आतंकी कह सकता है आप नहीं, आप एक मठ के व्यवस्थापक हैं।
निजाम मीर उस्मान अली खान कौन था?
देश में अंग्रेजों का शासन चल रहा था. उन दिनों हैदराबाद रियासत देश के नामी और बड़ी रियासतों में से एक था और इसके निजाम हुआ करते थे महबूब अली खान। 6 अप्रैल 1886 को महबूब अली खान के घर में उनके दूसरे बेटे उस्मान अली खान का जन्म होता है, जो आगे चलकर हैदराबाद के निजाम बनते हैं और उनका नाम पड़ता है निजाम उल मुल्क ‘आसफ जाह सप्तम’। उन्होंने महज 25 साल की उम्र में 29 अगस्त 1911 को छठे निजाम-महबूब अली खान से हैदराबाद का पदभार संभाला.
मीर उस्मान अली खान के गद्दी संभालने के बाद हैदराबाद राज्य में कई सुधार हुए। उन्होंने शिक्षा, रोजगार के लिए लगातार काम किया। यही कारण था कि उनको जनता का प्यार भी मिलता रहा। कहा जाता है भूमिहीन किसानों के लिए उन्होंने अपनी 14,000 एकड़ जमीन दान कर दी थी। उनके शासन काल में गोलकुंडा की खदानों में खनन बढ़ा और हैदराबाद देश के सबसे बड़ी रियासतों में से एक बन गया। इसकी सीमाएं कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना तक फैली थीं। वहीं इसके निजाम को सबसे रईस का तमगा भी मिला।
एक समय निजाम मीर उस्मान अली खान यानी निजाम उल मुल्क ‘आसफ जाह सप्तम’ के पास इतनी संपत्ति थी कि उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए नौसैनिक, जहाज और दो रॉयल एयरफोर्स स्क्वाड्रन उपलब्ध कराए थे। 1945 में विश्वयुद्ध के खत्म होते ही भारत की आजादी का रास्ता साफ होने लगा था। इसी के साथ तमाम रियासतों को भारत में शामिल करने की कवायद भी शुरू हो गई थी। हालांकि मीर उस्मान अली खान इसके खिलाफ थे। खैर उन्हें भारतीय शासन में लाने के लिए ऑपरेशन पोलो (एक सैन्य अभियान) चलाया गया और अंत में उन्हें भारत में विलय करना ही पड़ा। 24 नवंबर, 1949 को निजाम ने भारत का संविधान ही हैदराबाद का संविधान घोषित किया और 26 जनवरी, 1950 को हैदराबाद भारत का आधिकारिक हिस्सा हो गया।
24 नवंबर, 1949 से पहले भारत सरकार और निजाम के बीच काफी खींचतान चलती रही। सरकार ने ऑपरेशन पोलो चलाया। इसी दौरान सामने आती है उसके रजाकारों द्वारा किए गए अत्याचार की कहानी। इसी का जिक्र उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी अकोला की सभा मे किया था. तो आइये अब जानते हैं रजाकार किसे कहा जाता था और वो कौन थे जिन्होंने इतने अत्याचार किए।
निजाम के रजाकार कौन थे?
आजादी के वक्त देश का सबसे बड़ा रजवाड़ा हैदराबाद था। यहां निजाम की सरकार चलती थी। निजाम के पास अपनी निजी सेना या मिलिशिया थी। इन्हीं को रजाकार कहा जाता था। इसकी स्थापना स्थानीय लोगों ने 1920 के दशक में मुस्लिम समुदाय के लिए एक सांस्कृतिक और धार्मिक मंच के तौर पर किया था। हालांकि, धीरे-धीरे ये संगठन निजाम शासन की रक्षा के लिए काम करने लगा और इसमें लड़ाके शामिल होने लगे। बाद में लातूर के एक वकील कासिम रिजवी के नेतृत्व में रजाकारों ने उग्रवादी मोड़ ले लिया। यहीं से रजाकारों का अत्याचार शुरू होता है। रजाकार मूल रूप से स्वयंसेवक थे, लेकिन वे शासकों और सैनिकों की तरह व्यवहार करने लगे थे। 1947 में देश आजाद हुआ तो रजाकारों ने हैदराबाद के निजाम के पक्ष में लोगों से या तो पाकिस्तान में शामिल होने या एक अलग मुस्लिम राज्य बनाने का आह्वान किया। इसके लिए उन्होंने उग्र रूप भी अपनाया।
क्या सच में रजाकारों ने खड़गे के परिवार को मारा?
साल 1948 का था. आजादी के बाद गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हैदराबाद में सैन्य हस्तक्षेप का आदेश दिया। इसके बाद भारत सरकार ने हैदराबाद को खुद में मिलाने के लिए ऑपरेशन पोलो चलाया। इसी का विरोध करते हुए रजाकारों ने गांवों पर हमला करना शुरू कर दिया। इसे ही आज के समय में रजाकार आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। रजाकारों ने घरों को लूटकर आग लगा दी। वे निजाम के पक्ष में जाने के लिए लोगों पर दबाव बना रहे थे। रजाकार खून-खराबे पर उतारू हो गए। उन्होंने हिंदुओं का कत्लेआम भी किया। राज्य में व्यापक स्तर पर हिंसा भड़काई गई। इसमें कई निर्दोष लोग मारे गए। इन्हीं लोगों में शामिल था खड़गे का परिवार, जिसका सीएम योगी अकोला में जिक्र किया था।
क्या हैं दावे और सच्चाई?
टाइम्स ऑफ इंडिया की 11 दिसंबर 2022 की एक रिपोर्ट में उस वक्त तेलंगाना कांग्रेस के उपाध्यक्ष जी निरंजन के हवाले से लिखा गया है कि 1948 में वरावट्टी में खड़गे के पैतृक घर को रजाकारों ने जला दिया था। इस घटना में उनकी मां की मौत हो गई थी। उस वक्त खड़गे केवल सात साल के थे। वहीं न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 8 मई 1948 को रजाकारों ने बिदर के एक गांव में 200 से अधिक लोगों को मार दिया। फिर वहां के लक्ष्मी मंदिर में इन शवों को जलाया गया था।
2022 में मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे प्रियांक ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में बताया था कि रजाकारों के हमले के समय उनके दादा खेतों में काम करने गए थे। उनको वहां से भागते हुए एक पड़ोसी ने बताया कि रजाकारों ने उनके टिन की छत वाले घर में आग लगा दी है। प्रियांक ने कहा ‘मेरे दादाजी (मल्लिकार्जुन खड़गे के पिता) घर पहुंचे, लेकिन केवल मेरे पिता को बचा सके। वो मेरी मेरी दादी और चाची को बचाने में सफल नहीं हो पाए। इसके बाद दादा मेरे पिता को लेकर गुलबर्गा (आधुनिक कलबुर्गी) चले गए और वहां नए सिरे से अपना जीवन शुरू किया।
सच है CM योगी का दावा
कांग्रेस जी निरंजन के हवाले से छापी गई रिपोर्ट और मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे प्रियांक के साक्षात्कार से ये तो साफ होता है कि रजाकारों ने मल्लिकार्जुन खड़गे के पैतृक गांवों में हमला किया था। उन्होंने इनके घर में आग लगा दी थी जिसमें उनके परिवार के कई सदस्य मारे गए थे। उस वक्त 7 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे वहीं मौजूद थे और ये निर्मम कांड उनकी आंखों के सामने हुआ था।