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श्यामदत्त चतुर्वेदी
Delhi Assemblly Election: मराठी मानुष के महाराष्ट्र, जाटलैंड हरियाणा और भारत के सिरमौर जम्मू-कश्मीर में 2024 में चुनाव हो गए। अब 2025 में देश के दिल यानी दिल्ली के चुनाव की बारी है। चुनाव आयोग से लेकर सियासी दल और आम जनता भी अब इस महापर्व के लिए तैयारी में जुटी हुई है। इस बीच दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और खुद को बेहद आम आदमी बताने वाले AAP के संयोजक अरविंद केजरीवाल के शीश महल का मुद्दा गरम है। इस आवास में करोड़ों के खर्च का दावा और भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे हैं। शीश महल कैसे बना, उसमें कितना खर्च आया, क्या भ्रष्टाचार भी हुआ है? ये तमाम सवाल चर्चा का विषय जरूर हो सकते हैं, लेकिन इसके बीच चर्चा इस बात पर भी होना चाहिए की दिल्ली की आम जनता के आवास का क्या हाल और वो किन हालात में रह रही है।
राजधानी दिल्ली में तेजी से शहरीकरण बढ़ रहा है। रोजगार के लिए देशभर से लोग यहां पहुंच रहे हैं और यहीं के बासिंदे बन रहे हैं। बढ़ती आबादी और आर्थिक गतिविधियों के रूप में प्रदेश को विकास के साथ कई चुनौतियां भी मिली है। दिल्ली में चुनावों से पहले हम आवास और शहरी विकास से जुड़े पांच प्रमुख पहलुओं पर चर्चा करते हैं। इसमें सस्ती हाउसिंग, अनधिकृत कॉलोनियां, स्मार्ट सिटी के साथ ट्रैफिक, सड़कों का रखरखाव, पार्क और ग्रीन जोन जो सीधे आम आदमी के आवास से जुड़े हैं।
आवास योजनाएं और सस्ती हाउसिंग
आजादी के बाद या यूं कहें कि उससे पहले से ही दिल्ली आर्थिक विकास और रोजगार का केंद्र रहा है। हालांकि, विकास की बढ़ती गति के साथ शहर का और अधिक विकास हुआ और वो धीरे-धीरे प्रशासन और सरकार के केंद्र के साथ रोजगार का केंद्र भी बनने लगा। देशभर से यहां लोग पहुंचे और यहीं के हो गए। ऐसे में सबसे बड़ी समस्या आवास की होने लगी। समय-समय पर केंद्र और राज्य में आई सरकारों ने काम तो किए पर आज भी दिल्ली की दशा देख ये नाकाफी ही लगते हैं। इसी कारण हाउसिंग योजनाओं पर सवाल खड़े होते रहे हैं।

आबादी के मुकाबले घर बेहद कम
आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में लगभग 1.9 करोड़ की जनसंख्या के लिए 30 लाख से अधिक आवासीय इकाइयों की कमी है। प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत दिल्ली में अब तक 2.5 लाख से अधिक आवासीय इकाइयों को मंजूरी दी गई है, लेकिन इनमें से केवल 60% ही तैयार हो पाई हैं। सस्ती हाउसिंग योजनाओं में कई बाधाएं सामने आती हैं, जैसे भूमि की कमी, निर्माण में देरी और EWS, LIG के लिए प्रोजेक्ट्स की कम उपलब्धता।
दावों पर सवाल ‘दया बस्ती’
केजरीवाल सरकार ‘झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास योजना’ के तहत हजारों लोगों को स्थायी आवास उपलब्ध कराने का दावा करती है। कई लोगों को घर मिले भी हैं। हालांकि, दया बस्ती जैसे इलाके अभी भी दिल्ली सरकार का काम पर सवाल खड़े कर रहे हैं। इस बीच प्रस्तावित ‘रेन्टल हाउसिंग स्कीम’ एक बेहतर विकल्प के रूप में देखी जा रही है, लेकिन इसे सही तरीके से लागू करने की जरूरत है।

अनधिकृत कॉलोनियां एक बड़ी चुनौती
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली सरकार केवल 30% कॉलोनियों में ही बुनियादी सुविधाओं जैसे पानी, सीवरेज, और पक्की सड़कों की सुविधा उपलब्ध करा पाई है। अभी भी 70 फीसदी कॉलोनियां ऐसी हैं जहां लोगों के पास बुनियादी सुविधा भी नहीं है। दिल्ली में अनधिकृत कॉलोनियों की संख्या 1,700 से अधिक है, जहां लाखों लोग रहते हैं। इन कॉलोनियों का वैधीकरण दिल्ली के शहरी विकास में एक बड़ा मुद्दा है।

दिल्ली सरकार ने भी साल 2021 में मुख्यमंत्री आवास योजना लागू की थी। इसमें झुग्गी-झोपड़ी वालों को स्थायी आवास देने का वादा किया गया था। इसके साथ ही मुख्यमंत्री कॉलोनी विकास योजना के तहत अनधिकृत कॉलोनियों में सड़कों, सीवरेज, और पानी की पाइपलाइन जैसे बुनियादी ढांचे के विकास के लिए बड़े बजट का प्रावधान किया है। पर इन योजनाओं की असलियत दिल्ली में घूमकर देखी जा सकती है।
ट्रैफिक जाम और सड़कों की समस्या
आम आदमी पार्टी की सरकार ने ‘बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम’ और नई इलेक्ट्रिक बसों को शामिल कर पब्लिक ट्रांसपोर्ट को मजबूत करने का प्रयास किया है। पर DTC बसों की हालत ये है कि लोग इनमें सफर करना भी पसंद नहीं करते हैं। इसके साथ ही DTC की बसों में तमाम कोशिश के बाद सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। कुछ समय पहले हुए एक सर्वे में बताया गया था कि 70 फीसदी महिलाओं के DTC की बसों में सफर करने में डर लगता है।

दिल्ली का ट्रैफिक जाम शहरी जीवन को प्रभावित कर रही है। दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की संख्या 1.2 करोड़ से अधिक है, जो सड़कों पर भारी दबाव डालती है। रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की 60% सड़कों को उचित रखरखाव की आवश्यकता है। बारिश के मौसम में जलभराव और गड्ढों की समस्या से लोग परेशान रहते हैं। हर साय ये समस्या होने के बाद भी न तो दिल्ली सरकार इसपर कुछ पुख्ता कदम उठा पाई है और न ही NDMC इस पर कुछ खास कर पाई।
केवल जी रहे हैं कई लाख लोग
दिल्ली में विकास तेजी से हुआ है। हालांकि, इससे साथ ही कई चुनौतियां भी आई हैं। इनमें आवासीय समस्याएं शामिल हैं जो आम आदमी की सबसे बड़ी समस्या है। अनधिकृत कॉलोनियां, ट्रैफिक प्रबंधन भी आम आदमी की जीवन को प्रभावित करता है। क्योंकि, दिल्ली के अधिकतर इलाकों में हाल ऐसा है की कोई बाहरी पहुंच जाए तो पैर रखने की जगह न मिले। इन तमाम चीजों के बाद चुनाव के समय शीश महल की चर्चा जोरों पर होती है। यमुना किनारे खरते में रहने वालों को चर्चा कम हो जाती है। सुनवाई उनकी भी नही होती है जो दया बस्ती जैसे तमाम इलाकों में रहते हैं जिनके बास जीवन की मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि कई लाख लोग दिल्ली में केवल जी रहे हैं।