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– विकास मिश्र:
दिल्ली में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के लिए यह चुनाव ‘करो या मरो’ का सवाल बन चुका है। दिल्ली वालों को मुफ्त का चस्का लगाने वाली आम आदमी पार्टी लगातार दिल्ली की सत्ता में बनी हुई है। सत्ता को बरकरार रखने के लिए अरविंद केजरीवाल एक बार फिर रेवड़ी संस्कृति की शरण में जा पहुंचे हैं। इस बार उन्होंने दिल्ली की महिलाओं को लुभाने की कोशिश में नया जाल बुना है। केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बाकायदा इसका ऐलान किया है । केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता में आने के बाद महिलाओं के खाते में 2100 रुपये हर महीने डालने का ताजा वादा किया है। सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि आखिर केजरीवाल के इस नए वादे में क्या है।
‘नारी शक्ति’ के भरोसे अरविंद केजरीवाल
दिल्ली सरकार ने अपनी कैबिनेट बैठक में महिला सम्मान योजना को मंजूरी दी है। फिलहाल दिल्ली की महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये दिए जाएंगे। केजरीवाल ने ऐलान किया है कि अगर दिल्ली में उनकी फिर से सरकार बनती है तो यह राशि 1000 से बढ़कर 2100 रुपये हो जाएगी। केजरीवाल ने कहा- ‘ आज मैं ऐलान कर रहा हूं, कल से रजिस्ट्रेशन चालू होगा, रजिस्ट्रेशन 2100-2100 रुपये का होगा। मैं दिल्ली की सभी मां बहनों को कहना चाहता हूं कि अगले दो तीन दिन से आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता गली गली में जाएंगे, घर-घर में जाएंगे। आप अपना रजिस्ट्रेशन कराओ, वो आपको रजिस्ट्रेशन कार्ड देकर आएंगे, आप कार्ड संभालकर रखना और चुनाव के बाद ये वाली योजना जो हजार रुपये वाली है, उसे बदलकर 2100 रुपये करेंगे। चुनाव के बाद में आपके अकाउंट में हजार रुपये नहीं आएंगे, 2100-2100 रुपये आएंगे। जैसे मैंने हजार रुपये लागू कर दिए, वैसे मैं 2100 रुपये लागू कर दूंगा। जैसे मैंने बिजली फ्री कर दी, वैसे ही 2100 रुपये लागू कर दूंगा। कोई पूछे ना कि केजरीवाल के पास पैसे कहां से आएंगे, कह देना कि हमारा केजरीवाल जादूगर है, छड़ी घुमाएगा पैसे ले आएगा।’ हम आपको बता दें कि दिल्ली सरकार के वित्त विभाग ने इस योजना पर आपत्ति जताई थी।
क्या दिल्ली की सभी महिलाओं को मिलेंगे 1000 रुपये?
अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह महिलाओं को 1000 रुपये हर महीने देने का ऐलान किया, उससे तो यही लगता है कि दिल्ली की हर महिला को हर महीने 1000 रुपये मिलेंगे, लेकिन जरा ठहरिये। इसमें कुछ पेच भी है। अब कौन सी महिलाएं इसकी पात्र होंगी, ये भी जान लीजिए।

तो केजरीवाल हैं दिल्ली के सुपर सीएम!
पिछले 21 सितंबर को आतिशी ने जब दिल्ली के मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभाला था, तब उन्होंने अपने दफ्तर में दो कुर्सियां रखी थीं। जिस तरह भरत जी ने राजा राम के वनवास के दौरान खड़ाऊं पद्धति से अयोध्या का राज चलाया था, उसी तरह आतिशी ने भी कहा था कि जो खाली कुर्सी है वो उनके नेता अरविंद केजरीवाल की है। चुनाव बाद अरविंद केजरीवाल ही दिल्ली के मुख्यमंत्री बनेंगे। अब केजरीवाल ने साबित किया है कि आतिशी तो बस नाम की सीएम हैं, सुपर सीएम तो वही हैं। यह बात इस योजना की घोषणा के सामने खुलकर सामने आ गई। दरअसल दिल्ली की महिलाओं को 1000 रुपये हर महीने देने का फैसला दिल्ली सरकार की कैबिनेट ने पास किया था, लेकिन इसका ऐलान आतिशी या उनकी कैबिनेट के किसी मंत्री ने नहीं किया। इसका ऐलान करने खुद अरविंद केजरीवाल ने किया। फैसला सरकारी था और केजरीवाल फिलहाल सरकार में नहीं हैं। इसके बावजूद इसका ऐलान केजरीवाल ने किया और आतिशी उनके बगल में खड़ी होकर सिर्फ मुस्कुराती रहीं।
बीजेपी ने दिल्ली की महिलाओं को किया आगाह
दिल्ली सरकार की महिला सम्मान योजना पर अरविंद केजरीवाल अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, वहीं बीजेपी का मानना है कि यह भी अरविंद केजरीवाल का चुनावी और खोखला वादा है। दिल्ली भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “अरविंद केजरीवाल एक शातिर खिलाड़ी हैं। उन्हें पता है कि पैसे नहीं देने हैं। जानबूझकर नियमों का उल्लंघन करना, अब कहेंगे कि उपराज्यपाल ने फाइल को रोक दिया। मार्शल वाली फाइल पर भी यही कह रहे हैं। जो काम करना होता है उसके नियम उनके अधिकारी बताते होंगे, लेकिन जिन कामों को नहीं करना होता उसमें कानूनी पेचीदगी पैदा करते हैं। ताकि दूसरे पर आरोप लगा सकें।”
बीजेपी के दिल्ली अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने केजरीवाल पर सवाल उठाते हुए कहा-“पंजाब चुनाव से पहले आपने वहां पर भी माता और बहनों को राशि देने की घोषणा की थी, जरा बताएं आज तक किसी को 1 रुपया किसी के अकाउंट में गया हो। AAP के पास जवाब नहीं है। सरकारी खजाना खाली होने का रोना रोते हैं। आपने 2024 लोकसभा चुनाव में भी दिल्ली में महिलाओं के फॉर्म भरे थे और वादा किया था 1 सितंबर तक 1,000 महीना महिलाओं को देंगे. दिसंबर आ गया, किसी के अकाउंट में 1 रुपए नहीं दिए गए।”
रेवड़ी संस्कृति के भरोसे केजरीवाल
देश की राजनीति की दिशा और दशा बदलने के ऐलान के साथ अरविंद केजरीवाल सियासत के मैदान में उतरे थे। 2 अक्टूबर 2012 को उन्होंने आम आदमी पार्टी का गठन किया था। दिल्ली का पहला चुनाव तो उनकी पार्टी ने आंदोलनकारी और क्रांतिकारी पार्टी के तौर पर जीता, लेकिन बाद में केजरीवाल ‘रेवड़ी बांटो और राज करो’ की राह पर निकल पड़े। दिल्ली की महिलाओं को 1000 रुपये महीने देने का ऐलान और चुनाव बाद 2100 रुपये महीने देने की घोषणा उनकी इसी रेवड़ी संस्कृति का ही एक्सटेंशन है। इससे पहले उन्होंने दिल्ली में किस तरह रेवड़ी बांटी है, हम आपको इसकी बानगी दिखाते हैं।

मुफ्त की रेवड़ी और दिल्ली के खजाने का हाल
केजरीवाल ने सत्ता में बने रहने के लिए दिल्ली में मुफ्त की रेवड़ी खूब बांटी। इसका असर दिल्ली के खजाने पर भी पड़ा है। दिल्ली में सब्सिडी पर कितना खर्च हो रहा है, उसकी एक बानगी आप यहां देख सकते हैं।

केजरीवाल मुफ्त में बांटें माल, दिल्ली बेहाल
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली वालों को मुफ्त का चस्का लगाकर सत्ता में वापसी कर तो ली, लेकिन उसके साइड इफेक्ट भी हुए हैं। दिल्ली सरकार की कई योजनाएं फंड की कमी के चलते पूरी नहीं हो पा रही हैं, लेकिन सरकार ठोस काम करने की बजाय सस्ती लोकप्रियता देने वाले कार्यक्रमों पर जोर लगा रही है। दिल्ली की तमाम योजनाओं के लिए सरकार के पैसा ही नहीं बचा है, ये योजनाएं पैसे की राह देख रही हैं।

कहां से आई मुफ्त की रेवड़ी..? जानिए पूरा इतिहास
चुनावों में जीत के लिए सियासी पार्टियां जनता को जो मुफ्त सुविधाएं देने की घोषणा करती हैं, वही सियासत की दुनिया में रेवड़ी कल्चर के नाम से प्रसिद्ध है। आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में रेवड़ी कल्चर को विस्तार दिया है, लेकिन इसकी शुरुआत तो आजादी के बाद से ही शुरू हो गई थी। चुनावों के दौरान मुफ्त की रेवड़ी बांटने का इतिहास दक्षिण भारत से शुरू होता है।
- 1954 से 1963 के बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी कामराज ने मुफ्त शिक्षा और मुफ्त भोजन योजनाएं शुरू की थीं।
- 1967 में सी.एन. अन्नादुरई (डीएमके) ने गरीबों को साढ़े चार किलो मुफ्त चावल देने की योजना चलाई।
- 2006 में, जयललिता ने हर घर में रंगीन टीवी बांटने का वादा किया, तो डीएमके ने मुफ्त टीवी के साथ केबल कनेक्शन देने का वादा कर दिया।
- 2015 में आम आदमी पार्टी के मुखिया केजरीवाल रेवड़ी संस्कृति दिल्ली में ले आए उन्होंने मुफ्त बिजली और पानी जैसी योजनाओं पर जोर देते हुए चुनाव जीता।
- उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने लैपटॉप वितरण और साइकिल देने की योजनाएं शुरू कीं।
- राजस्थान में अशोक गहलोत ने मुफ्त स्मार्टफोन और इंटरनेट की पेशकश की
- मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार ने लाडली बहना योजना शुरू की।
- महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन लाडकी बहिन योजना लेकर आई
रेवड़ी संस्कृति के राजनीतिक फायदे
राजनीति में करोड़ों-अरबों की विकास योजनाएं धरी रह जाती हैं, लेकिन जनता तक सीधे पहुंचने वाला लाभ चुनावी राजनीति को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। सरकारों की मुफ्त योजनाएं गरीब और निम्न आय वर्ग को सीधे लाभ पहुंचाती हैं। राजनीतिक पार्टियां इसी से अपना वोट बैंक तैयार करती हैं। बात दिल्ली की करें तो यहां की सातों लोकसभा सीटों पर 2014 से ही बीजेपी का कब्जा है। तीन लोकसभा चुनाव हुए, लेकिन कांग्रेस या आम आदमी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई, लेकिन विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के सामने कोई पार्टी टिक ही नहीं पाई। वजह साफ है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की मुफ्त बिजली और पानी की योजनाओं ने जनता को सहज आकर्षित कर लिया। निम्न मध्यम वर्ग और निम्न आय वर्ग लोग केजरीवाल के ठोस वोट बैंक बन गए। केजरीवाल की मुफ्त बिजली पानी की योजनाओं का असर इतना हुआ कि 2023 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने मुफ्त बिजली और महिलाओं के लिए विशेष योजनाओं का ऐलान कर दिया।
चुनावों में राजनीतिक दलों का मुफ्त में चीजें देने का ऐलान तो आसान है, लेकिन धरती पर उतारना बहुत ही मुश्किल है। यही वजह है कि लम्बे समय तक ऐसी योजनाएं टिकती नहीं हैं। मुफ्त की योजनाओं का समाज पर भी सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का प्रभाव पड़ता है। एक तरफ जहां मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और बिजली जैसी योजनाएं निम्न और मध्यम वर्ग के जीवनस्तर को सुधारने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। जैसे तमिलनाडु की मुफ्त भोजन योजना ने कुपोषण की समस्या को काफी हद तक कम कर दिया। वहीं मुफ्त की रेवड़ी से खतरा यह भी है कि मुफ्त की इन योजनाओं से जनता आत्मनिर्भर बनने की बजाय सरकार पर ही निर्भर रहने लगती है।
मुफ्त की रेवड़ी को सुप्रीम कोर्ट ने बताया खतरनाक
राजनीतिक पार्टियां मुफ्त की रेवड़ी बांटकर सत्ता तो हासिल कर लेती हैं, लेकिन इससे राज्य की तरक्की में बाधा पड़ती है। मुफ्त योजनाएं राजस्व की कमी और कर्ज में बढ़ोतरी की वजह बन जाती हैं। अब पंजाब का ही उदाहरण लें। पंजाब में मुफ्त बिजली योजनाओं के चलते राज्य पर भारी कर्ज बढ़ा। 2024 में, राज्य का कर्ज करीब 3 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की आशंका है। इसी तरह मुफ्त में राज्य का धन खर्च होता है तो शिक्षा, इन्फ्रास्टक्चर और रोजगार के सृजन के मामले लटक जाते हैं। जैसा कि दिल्ली में दिखाई दे रहा है। जब टैक्स देने वालों की मेहनत का धम मुफ्त योजनाओं में खर्च होता है तो इससे निजी क्षेत्र में निवेश और विकास भी प्रभावित होता है। तभी तो सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त की रेवड़ी बांटने की संस्कृति को गैर-जिम्मेदाराना परंपरा बताते हुए कहा- लंबे समय तक के लिए चुनावों में मुफ्त की रेवड़ी अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक हो सकती है।
केजरीवाल के लिए बहुत कठिन है डगर पनघट की..?
सवाल फिर वही है कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल एक बार फिर मुफ्त की रेवड़ी के भरोसे हैं। महिला सम्मान योजना में उसी में आगे की एक कड़ी है। तो क्या अरविंद केजरीवाल दिल्ली की जनता का दिल एक बार फिर जीतेंगे..? इस सवाल का जवाब हां और नहीं में नहीं हो सकता है। केजरीवाल ने मुफ्त की रेवड़ी बांटी है, लेकिन जन कल्याणकारी योजनाएं इस चक्कर में पीछे छूट गई हैं। जनता दूरगामी सामाजिक और आर्थिक सुधारों की ओर देख रही है और यह जानती है कि मुफ्त की सेवाएं सिर्फ तत्काल में लाभ दे सकती हैं। अरविंद केजरीवाल मुफ्त की रेवड़ी बांटकर अपनी सरकार की नाकामियों को ढंकने के प्रयास में हैं, जिसे उजागर करने में विपक्षी पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ने वाली। ऐसे में तो केजरीवाल के लिए बहुत कठिन है डगर पनघट की।
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