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– साहिल सिंह:
पिछले कुछ समय से ये बात अक्सर उठते देखी गई है जब जब देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी संसद में लोकसभा का सत्र शुरु होने वाला होता है, तभी कोई न कोई बवाल ऐसा खड़ा हो जाता है जिसकी वजह से सत्ताधारी पार्टी अचानक सवालों के कठघरे में खड़ी नज़र आने लगती है। पिछले तीन सालों से जब भी संसद में लोकसभा सत्र शुरू होने को होता है, विदेश से कोई ऐसी रिपोर्ट सामने आती है, जो सीधे-सीधे केंद्र सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़े मुद्दों पर सवाल खड़े करती है। यह घटनाक्रम केवल एक बार नहीं, बल्कि बार-बार देखा गया है। भारतीय जनता पार्टी के सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने राज्यसभा में विपक्ष को आड़े हाथों लेते हुए एक तंज कसा। उन्होंने कहा कि पिछले 3 साल में संसद का सत्र शुरू होते ही भारत के सामरिक, आर्थिक और सामाजिक हित के खिलाफ रिपोर्ट जारी की जाती रही है।
सुधांशु त्रिवेदी ने सदन में कुछ सवाल उठाए…
- किसानों को लेकर रिपोर्ट आयी 3 फरवरी 2021 को और बजट सत्र की शुरुआत हुई थी 29 जनवरी 2021 से।
- पेगासस रिपोर्ट आती है 18 जुलाई 2021 को और मानसून सत्र की शुरुआत होती है 19 जुलाई से।
- 31 जनवरी 2023 से भारत का बजट सत्र शुरू होता है और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट 24 जनवरी 2023 को सामने आ जाती है।
- जनवरी 2023 में संसद के सत्र की शुरुआत होती है और 17 जनवरी 2023 को बीबीसी की तरफ से डॉक्यूमेंट्री लायी जाती है।
- 20 जुलाई 2023 को भारत के संसद का सत्र शुरू होता है और मणिपुर हिंसा का वीडियो 19 जुलाई को सामने आता है। सत्र शुरू होने के ठीक एक दिन पहले।
- 10 मई 2024 को कोविड वैक्सीन को लेकर एक रिपोर्ट छपी है। जिस समय भारत में आम चुनाव हो रहे होते हैं।
- वर्तमान सत्र 25 नवंबर से शुरू होता है और 20 नवंबर को अमेरिकी कोर्ट के अटॉर्नी की रिपोर्ट आती है भारत के एक बिजनेस हाउस के संदर्भ में।

दावा और सच्चाई की परख
सुधांशु त्रिवेदी ने जो दावा किया, उसमें कितनी सच्चाई है, जरा इस बात को भी परख लिया जाए।
किसानों की रिपोर्ट की बात- 3 फरवरी, 2021 को किसानों के बारे में एक विदेशी रिपोर्ट आई थी। इस दिन किसान संगठनों और सरकार के बीच कृषि कानूनों पर बात बनती नहीं दिख रही थी। और इसी के साथ 29 जनवरी 2021 से सदन का बजट सत्र भी चल रहा था।
न्यूर्याक टाईम्स की पेगासस पर रिपोर्ट- 18 जुलाई 2021 में अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट छापी थी। इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि मोदी सरकार ने जुलाई 2017 में इसराइली समूह एनएसओ से पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर खरीदा गया था। इस मुद्दे को लेकर विपक्ष ने मोदी सरकार पर जमकर हमला किया था। इसी के साथ 19 जुलाई को मानसून सत्र की शुरुआत होती है।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट- अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अदाणी समूह के खिलाफ अपनी रिपोर्ट 24 जनवरी 2023 को प्रकाशित की थी। 31 जनवरी को भारत का बजट सत्र शुरू होना था। इस रिपोर्ट में हिंडनबर्ग ने एक रिसर्च के जरीए गौतम अदाणी पर आरोप लगाते हुए लिखा था कि 2020 में अदाणी ने अपनी सात लिस्टेड कंपनियों के शेयरों के दामों में हेराफेरी की है। इसके चलते अदाणी को 100 अरब डॉलर का फायदा हुआ है।

BBC के डॉक्यूमेंट्री का मसला दरअसल, BBC ने 17 जनवरी 2023 को ‘द मोदी क्वेश्चन’ डॉक्यूमेंट्री का पहला एपिसोड यूट्यूब पर रिलीज किया था। दूसरा एपिसोड 24 जनवरी को रिलीज होना था। साथ ही 31 जनवरी को 2023-24 का बजट सत्र शुरू होना था। इससे पहले ही केंद्र सरकार ने पहले एपिसोड को यूट्यूब से हटा दिया था। यह मामला अभी कोर्ट में है।

मणिपुर हिंसा का वीडियो – मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है। 19 जुलाई 2023 को एक वीडियो सामने जिसमें सैकड़ों नौजवानों के हुजूम के बीच बिना कपड़े के दो महिलाओं को पकड़ ले जाया जा रहा था। इस वीडियो के बाद पूरे देश में मणिपुर हिंसा को लेकर उबाल आ गया। हालांकि ये वीडियो 4 मई का था। जिसे 2 महीने बाद रिलीज किया गया। तो जो बात सुधांशु त्रिवेदी बोल रहे है कि यह सारा खेल पॉलिटिकल एजेंडा है और मोदी सरकार को बदनाम करने का क्या एक नया तरीका है। इस वीडियो के साथ ही 20 जुलाई 2023 को भारत के संसद का सत्र शुरू होता है। जिसके बाद हंगामे के कारण संसद की कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा था।
अदाणी पर गिरफ्तारी का वारंट – अमेरिका की एक अदालत ने देश के दूसरे सबसे बड़े बिजनेसमैन गौतम अदाणी और उनके भतीजे सागर अदाणी के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया है। अदालत ने लगभग 2,029 करोड़ रुपये के रिश्वतखोरी का आरोप अदाणी पर लगाया है। यह वारंट 20 नवंबर 2024 को जारी किया गया। और संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से शुरू है। हम इसमें किसी को निर्दोष नहीं बता रहे है, हम बस समय और तारीख के गणित को आपके सामने रख रहे हैं। जिसकी बात सुधांशु त्रिवेदी ने आज राज्यसभा के सदन में कही है।
अदाणी का पूरा मामला समझना जरूरी
OCCRP यानी ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट का मुद्दा संसद में आज गूंजा। इस मुद्दे पर बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी विपक्ष पर जमकर बरसे। दरअसल, हाल के दिनों में फ्रांस के एक अखबार ने ओसीसीआरपी को लेकर एक रिपोर्ट छापी थी। इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि ओसीसीआरपी की रिपोर्ट न्यूट्रल नहीं है। फ्रांसीसी अखबार में छपी इस रिपोर्ट के आधार पर बीजेपी के सांसदों ने कांग्रेस को सदन में घेर लिया। बीजेपी के सांसदों ने कांग्रेस और विपक्ष के नेता पर विदेशी हस्तक्षेप को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है।
राज्यसभा में क्या कहा सुधांशु त्रिवेदी ने
राज्यसभा में सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने OCCRP का मुद्दा उठाया। उन्होंने इस दौरान विपक्ष पर कई गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना था कि जब भी संसद का सत्र चल रहा होता है या चलने वाला होता है, उसी समय विदेशों से कोई ना कोई रिपोर्ट सामने आ जा जाती है। जो सरकार और देश के हित में नहीं होती और देश में अराजकता फैलाने का काम करती है। राज्यसभा में बोलते हुए बीजेपी के सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि पिछले तीन सालों से ये संयोग होता दिखा है। जब भारत की संसद का सत्र चलता है, तभी ये रिपोर्ट्स आती हैं। पूर्व में भारत के किसानों को लेकर रिपोर्ट सामने आई , तब भी संसद सत्र चल रहा था और इसी तरह पेगासस और हिंडनबर्ग रिपोर्ट भी लगभग उसी समय सामने आईं, जब भारत की संसद का सत्र या तो चल रहा था या शुरू होने वाला था।
सवाल: यह संयोग है या सोची-समझी रणनीति?
सुधांशु त्रिवेदी का सवाल इस पूरे घटनाक्रम पर ध्यान खींचता है।
संयोग का तर्क: कुछ विशेषज्ञ इसे सिर्फ घटनाओं का क्रम मानते हैं। वे कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया और संस्थाएं स्वतंत्र रूप से अपनी रिपोर्ट जारी करती हैं।
प्रयोग का तर्क: कई राजनीतिक विश्लेषक इसे एक रणनीति मानते हैं, जो संसद सत्र में सरकार को बैकफुट पर लाने के लिए रची जाती है।
विदेशी ताकतों की भूमिका: यह सवाल भी उठता है कि क्या विदेशी रिपोर्टें भारत की राजनीति में जानबूझकर हस्तक्षेप करने के लिए जारी की जाती हैं?

देशहित बनाम राजनीति
इन घटनाओं से सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इससे संसद में बहस का असली मकसद पीछे छूट जाता है और बहस भटक जाती है। सरकार उन सवालों से बचने की नीति अपनाती है जबकि विपक्ष उन्हीं बातों को हथियार बनाकर सरकार पर हमलावर हो जाती है। नीति निर्माण, जनता के मुद्दे, और देश की प्रगति पर चर्चा की बजाय ये विवाद संसद का समय खा जाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय छवि: भारत की छवि पर भी असर पड़ता है, क्योंकि हर बार अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टें एक नया विवाद खड़ा कर देती हैं।
जनता का भरोसा: ऐसी घटनाओं से जनता के मन में संसद और राजनीतिक व्यवस्था के प्रति निराशा बढ़ती है।
अब ऐसे में सवाल यही है कि यहां से आगे का रास्ता क्या हो सकता है? ऐसे में जरूरी है कि रिपोर्टों की पारदर्शिता पर ध्यान दिया जाए। सरकार और विपक्ष दोनों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि रिपोर्टें निष्पक्षता से जांची जाएं।
क्या है जनप्रतिनिधियों का दायित्व?
विवादों से अलग हटकर संसद में देश के मुद्दों पर ही चर्चा करना जन प्रतिनिधियों का पहला दायित्व बनता है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से हर मुमकिन तरीके से बचा जाए।