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– गोपाल शुक्ल:
ये वाकया है साल 2017 का। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव विधान सभा में यूपी की योगी सरकार के काम काज की आलोचना करने के लिए खड़े हुए। अपने भाषण के दौरान अखिलेश यादव ने हल्के फुल्के अंदाज में तंज कसा और योगी आदित्यनाथ को एक नाम दिया, ‘बाबा बुलडोजर’। चूंकि योगी आदित्यनाथ को सियासी गलियारों में ज्यादातर लोग बाबा के नाम से ही पुकारते हैं और उनके आदेश पर ही यूपी के माफिया डॉन अतीक अहमद के खिलाफ कार्रवाई की गई थी और उनके अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाया गया थाा। उस वक्त अखिलेश यादव को भी शायद गुमान नहीं था कि वह मजाक में जो नाम देने जा रहे हैं, आने वाले वक्त में वही नाम सियासी तौर पर योगी की पहचान ही बन जाएगा। ऐसा ही हुआ। आज के हिन्दुस्तान की यही सच्चाई है कि चुनाव के दौरान विपक्षी पार्टियों की तमाम चुनौतियों के बोझ और भार को एक ही झटके में जो मशीन दूर करती दिखाई दे रही है वो और कुछ नहीं, बल्कि एक बुलडोजर है।
अमेरिकी किसान ने तैयार किया बुलडोजर
अमेरिका के दो किसानों ने अपनी मेहनत को कम करने की गरज से यह मशीन तैयार की थी। वाकया 1923 का है। अमेरिका के पेन्सिलवेनिया में रहने वाले दो किसान जेम्स कमिंग्स (James Cummings) और जे अर्ल मैक्लॉड (J. Earl McLeod) ने जो मशीन तैयार की उसे ‘बुलडोजर’ का नाम दिया था। शुरुआत में इसका इस्तेमाल सिर्फ खेती-किसानी में होता था, लेकिन धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल बिल्डिंग बनाने, गिराने, सड़क बनाने के लिए जगह समतल करने, खुदाई करने या मिट्टी-रेता-बजरी जैसी बड़ी चीजें और भारी भरकम बड़े-बड़े कंटेनरों में भरने में होने लगा। शुरुआती दौर में बुलडोजर एक अटैचमेंट हुआ करता था, जिसे किसी ट्रैक्टर आदि से जोड़ा जाता था, लेकिन 1940 तक आते आते ये अटैचमेंट खुद एक मशीन में तब्दील हो गया। तब शायद बुलडोजर बनाने वाले उन दोनों किसानों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनकी बनाई मशीन सात समंदर पार हिन्दुस्तान के एक सूबे उत्तर प्रदेश में चुनाव और सियासी ताकत का एक प्रतीक बन जाएगी।
बैकहो लोडर ही है बुलडोजर
19वीं सदी के आखिर तक तो ‘बुलडोजिंग’ का मतलब था किसी भी बाधा को पार करने या उसमें से गुजरने के लिए जबरदस्त ताकत का इस्तेमाल करना। असल में करीब 138 साल पहले इस ‘बुलडोजर’ शब्द का संदर्भ वर्चस्व या हैसियत की लड़ाई में एक दूसरे के सिर पर धक्का देने वाले दो बैलों से था, लेकिन उस वक्त की ये सैद्धांतिक परिकल्पना हिन्दुस्तान में आज की सियासी हकीकत बन चुकी है। हम और आप जिस बुलडोजर को जानते हैं, उसका असली नाम बैकहो लोडर (Backhoe Loader) है।
मजाक मजाक में दे दी पहचान
अब बात अगर बुलडोजर की करें तो बेशक उसके सामने आने वाली चीज को वह पूरी तरह से ध्वस्त कर देता है, कोई उसके सामने नहीं टिक सकता। इसी तरह यूपी चुनाव में भी बुलडोजर बाबा के सामने कोई नहीं टिक सका। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने हंसी हंसी में जो नाम सिर्फ एक तंज कसते हुए दिया, वह नाम आज योगी आदित्यनाथ की पहचान बन गया है। BJP ने चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार बुलडोजर का जिक्र किया। खुद योगी आदित्यनाथ ने कहा था- ‘बुलडोजर हाइवे भी बनाता है, बाढ़ रोकने का काम भी करता है और माफियाओं और उनकी हैसियत को मिट्टी में भी मिला देता है।
बाबा बुलडोजर की पहचान
देखते ही देखते योगी आदित्यनाथ बाबा बुलडोजर के नाम से मशहूर हो गए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2017 में सत्ता में आने के बाद एक ऐसा कदम उठाया, जिसने न केवल उनकी सरकार को एक सख्त शहरी प्रशासन के रूप में पेश किया, बल्कि उन्हें एक राजनीतिक प्रतीक भी बना दिया। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इस बुलडोजर नीति के जरिए न केवल कानून व्यवस्था की मजबूती की दिशा में कदम उठाए, बल्कि इसके जरिए एक सख्त और निर्णायक शासन की छवि भी बनाई।
अपराधियों के खिलाफ अभियान
योगी आदित्यनाथ की सरकार ने ‘बुलडोजर नीति’ की शुरुआत 2017 में की थी। जब वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। इस नीति के तहत यूपी की योगी सरकार ने उन अपराधियों और माफियाओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई की योजना बनाई थी, जिनके जुर्म के किस्सों ने यूपी पुलिस के सामने फाइलों का पुलिंदा तैयार कर दिया था। ये माफिया न केवल अपराधिक गतिविधियों में लिप्त थे, बल्कि जिनकी अवैध संपत्तियां भी सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा बनी हुई थीं।
अतीक अहमद और उसका अवैध साम्राज्य
योगी सरकार ने सबसे पहले जिन अपराधियों के खिलाफ बुलडोजर का इस्तेमाल किया, वह थे अतीक अहमद। अतीक अहमद और उसके जुर्म की दास्तां बताने के लिए किसी भी तरह की भूमिका की कोई जरूरत नहीं। कुख्यात अपराधी और गैंग्स्टर अतीक अहमद ने उत्तर प्रदेश में अपनी दहशत और सियासी पहुंच के जरिए राजनीतिक और व्यावसायिक इलाके में एक साम्राज्य बना लिया था। उसके खिलाफ कई अपराध दर्ज थे, जिनमें हत्या, अपहरण, जबरन वसूली और अवैध संपत्तियों पर कब्जा शामिल था।
बुलडोजर बाबा का ब्रांड बनना
योगी आदित्यनाथ के “बुलडोजर” का इस्तेमाल एक सख्त और निर्णायक सरकार की छवि बनाने में बड़ा मददगार साबित हुआ। यह महज एक प्रशासनिक कदम नहीं था, बल्कि एक सियासी संदेश भी था, जिसमें साफ कर दिया गया था कि योगी सरकार अपराधियों और उनके अवैध साम्राज्य के खिलाफ किसी भी प्रकार की नरमी नहीं बरतेगी।
बुलडोजर का प्रतीकात्मक महत्व
शुरू शुरू में बुलडोजर को एक राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतीक के रूप में रखा गया, जो ‘कानून के शासन’ और ‘राज्य की ताकत’ का प्रतीक कहलाने लगा, लेकिन योगी आदित्यनाथ को जब इसकी ताकत का अंदाजा हुआ तो उन्होंने इसे एक राजनीतिक हथियार के तौर पर भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। संदेश साफ था कि उनकी सरकार ‘अवैध कार्य’ बर्दाश्त नहीं करेगी। इस अभियान के तहत, कई ऐसे स्थानों पर बुलडोजर चलाए गए, जहां अपराधियों ने अवैध निर्माण कर रखे थे। यह संदेश भी दिया गया कि जो भी व्यक्ति अपराध में लिप्त होगा, उसकी संपत्ति को तोड़ा जाएगा। इसके साथ ही, यह भी दिखाया गया कि योगी सरकार अपराधियों के खिलाफ किसी भी तरह के समझौते के बजाय सख्त और निर्णायक कदम उठाएगी।
सियासी नफा, कानूनी नुकसान
बुलडोजर नीति ने योगी आदित्यनाथ को एक “कठोर” प्रशासक के रूप में स्थापित किया, जो अपनी प्रशासनिक क्षमता और अपराध के खिलाफ जंग में किसी प्रकार की नरमी नहीं बरतते। खासकर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में, जहां अपराध और अपराधियों का एक बड़ा नेटवर्क काम करता है। इस कदम ने योगी आदित्यनाथ को और भी ज्यादा लोकप्रिय बना दिया। इस कदम का सामाजिक प्रभाव भी पड़ा। बुलडोजर की मुहिम का यूपी के लोगों में असर पड़ा और सरकार पर उनका भरोसा कायम होने लगा। खासतौर पर उन लोगों में जो गुंडे और बदमाशों की दहशत से अब तंग आ चुके थे। लोग महसूस करने लगे कि अब राज्य सरकार उनके अधिकारों की रक्षा करने में गंभीर है, लेकिन जैसा कि किसी भी कड़े और सख्त कदम के साथ होता है, योगी सरकार के बुलडोजर की चर्चाएं और चिंताएं शुरु हो गईं। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार संगठनों और विपक्षी दलों ने इस नीति पर सवाल उठाए।
बुलडोजर पर कानूनी विवाद
सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या बुलडोजर के जरिए की जाने वाली कार्रवाई कानूनी रूप से सही थी? भारत के संविधान और कानून के तहत किसी व्यक्ति की संपत्ति को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के नष्ट करना गलत माना जाता है। हालांकि, योगी सरकार ने तर्क दिया कि यह कार्रवाई अदालत के आदेशों के तहत की जाती है और यह उन संपत्तियों पर की जा रही है जो अपराध से जुड़ी हैं। लेकिन इस तर्क को कई कानूनी विशेषज्ञों ने असंवैधानिक करार दिया। उनका कहना था कि बिना उचित न्यायिक प्रक्रिया के संपत्तियों को नष्ट करना, संविधान द्वारा सुनिश्चित किए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।