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झारखंड के मुख्यमंत्रियों पर लगा यह ‘अभिशाप’ मिटता क्यों नहीं..? 24 साल में 4 चुनाव, 7 नेता 13 बार बने CM

Dayitva Jharkhand Election History
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कोई जेल में रहा तो कोई खेल में रहा। तो कोई निर्दलीय बन गया मुख्यमंत्री।

-श्यामदत्त चतुर्वेदी

बिहार से अलग होकर जबसे झारखंड अलग राज्य बना, तबसे लेकर आज तक 24 सालों में 4 चुनाव हो चुके हैं। 5वां विधानसभा चुनाव हो रहा है। इन 24 सालों में केवल 7 नेता ही 13 बार मुख्यमंत्री बने। 3 नेताओं ने तो 3-3 बार CM पद की शपथ ली, लेकिन एक मुख्यमंत्री को छोड़ दें तो कोई भी CM अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। बड़ा ही दिलचस्प है यहां के मुख्यमंत्रियों का इतिहास। कोई जेल में रहा तो कोई खेल में रहा। तो कोई निर्दलीय बन गया मुख्यमंत्री।

झारखंड की जनता अपने 14वें मुख्यमंत्री का चुनाव करने जा रही है। यह एक ऐसा प्रदेश है जहां पिछले 24 साल में 13 मुख्यमंत्रियों ने राज किया। इस बीच प्रदेश में 3 बार राष्ट्रपति शासन लगा। सबसे खास बात यह है कि एक नेता को छोड़कर कोई भी नेता प्रदेश में बतौर मुख्यमंत्री अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। हालांकि 3 नेताओं ने 3-3 बार प्रदेश की सत्ता संभाली। वहीं 4 अन्य नेताओं को भी एक-एक बार अपनी सरकार चलाने का मौका मिला।

झारखंड में 2 चरणों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। दूसरे और आखिरी चरण के लिए वोट 20 नवंबर को डाले जाएंगे। इसके बाद 23 नवंबर को प्रदेश की जनता का फैसला सबके सामने आएगा।

कौन कितनी बार बना CM?

अर्जुन मुंडा ने 3 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वहीं शिबू सोरेन और उनके बेटे हेमंत सोरेन ने भी 3-3 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। यानी ये 3 नेता ही कुल 9 बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वहीं इनके अलावा बाबूलाल मरांडी, मधु कोड़ा, रघुबर दास, चंपई सोरेन एक-एक बार मुख्यमंत्री बने।

झारखंड के CM के कार्यकाल पर एक नजर

  • बाबूलाल मरांडी– 15 नवंबर 2000 से 18 मार्च 2003 तक यानी कुल 2 साल 123 दिन के लिए मुख्यमंत्री रहे।
  • अर्जुन मुंडा – 18 मार्च 2003 से 2 मार्च 2005 तक के लिए यानी कुल 1 साल 349 दिन के लिए मुख्यमंत्री रहे।
  • शिबू सोरेन– 2 मार्च 2005 से 12 मार्च 2005 तक के लिए यानी कुल 10 दिन के लिए मुख्यमंत्री रहे।
  • अर्जुन मुंडा (दूसरा कार्यकाल) – 12 मार्च 2005 से 18 सितंबर 2006 तक के लिए यानी कुल 1 साल 190 दिन के लिए फिर से मुख्यमंत्री रहे।
  • मधु कोड़ा – 18 सितंबर 2006 से 27 अगस्त 2008 तक के लिए यानी कुल 1 साल 343 दिन के लिए मुख्यमंत्री रहे।
  • शिबू सोरेन (दूसरा कार्यकाल) – 27 अगस्त 2008 से 19 जनवरी 2009 तक के लिए यानी कुल 145 दिन के लिए फिर से मुख्यमंत्री रहे।
    *राष्ट्रपति शासन – 19 जनवरी 2009 से 30 दिसंबर 2009 के लिए यानी कुल 345 दिन।
  • शिबू सोरेन (तीसरा कार्यकाल) – 30 दिसंबर 2009 से 1 जून 2010 तक के लिए यानी कुल 153 दिन के लिए तीसरी बार मुख्यमंत्री रहे।
    *राष्ट्रपति शासन– 1 जून 2010 से 11 सितंबर 2010 के लिए यानी कुल 102 दिन
  • अर्जुन मुंडा (तीसरा कार्यकाल) – 11 सितंबर 2010 से 18 जनवरी 2013 तक के लिए यानी कुल 2 साल 129 दिन के लिए तीसरी बार मुख्यमंत्री रहे।
    *राष्ट्रपति शासन– 18 जनवरी 2013 से 13 जुलाई 2013 के लिए यानी कुल 176 दिन।
  • हेमंत सोरेन – 13 जुलाई 2013 से 28 दिसंबर 2014 के लिए यानी कुल 1 साल 168 दिन के लिए पहली बार मुख्यमंत्री बने।
  • रघुबर दास – 28 दिसंबर 2014 से 29 दिसंबर 2019 तक के लिए यानी कुल 5 साल 1 दिन के CM रहे और 5 साल पूरा करने वाले मुख्यमंत्री बन गए।
  • हेमंत सोरेन (दूसरा कार्यकाल) – 29 दिसंबर 2019 से 2 फरवरी 2024 तक कुल 4 साल 35 दिन मुख्यमंत्री रहे।
  • चंपई सोरेन – 2 फरवरी 2024 से 4 जुलाई 2024 तक यानी 153 दिन मुख्यमंत्री रहे।
  • हेमंत सोरेन (तीसरा कार्यकाल) – 4 जुलाई 2024 से अभी तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हैं।

2000 में झारखंड का गठन और पहला मुख्यमंत्री

झारखंड का गठन 15 नवंबर 2000 को हुआ था। उस समय राज्य में कोई चुनाव नहीं हुआ था। इसलिए तत्कालीन बिहार विधानसभा चुनाव के आधार पर बीजेपी को झारखंड में बहुमत मिला और बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने। उस समय बाबूलाल मरांडी विधायक नहीं थे, इस कारण उन्होंने रामगढ़ विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़ा और जीत हासिल की। हालांकि उन्हें अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही डोमिसाइल (अस्थायी निवास) विवाद के कारण मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा।

कुछ समय में ही मरांडी भाजपा से दूर होने लगे। 2006 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से खुद को अलग कर नई पार्टी ‘झारखंड विकास मोर्चा’ (जेवीएम) बनाई। 14 साल तक राजनीति करने के बाद उन्होंने 2020 में अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर लिया।

झारखंड में राजनीतिक उतार-चढ़ाव

बाबूलाल मरांडी के इस्तीफे के बाद अर्जुन मुंडा ने मुख्यमंत्री का पद संभाला। मुंडा 2003 से 2005 तक मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद 2005 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। इन चुनावों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन शिबू सोरेन को सरकार बनाने का अवसर मिला और वह 10 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने। हालांकि, काफी हंगामे के बाद राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल को सोरेन सरकार के फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया। इस बीच विधानसभा कुछ दिनों के लिए स्थगित कर दी गई। हंगामा और बरपा, फिर केंद्रीय कैबिनेट ने सोरेन को इस्तीफे का आदेश दे दिया।

फिर हुई अर्जुन मुंडा की एंट्री

शिबू सोरेन के इस्तीफे के बाद एनडीए ने राज्यपाल के समक्ष सरकार बनाने का दावा किया। फिर अर्जुन मुंडा 12 मार्च 2005 को दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इस बार उनका कार्यकाल 90 दिनों का रहा। हालांकि कुछ समय बाद यानी 18 सितंबर 2006 को निर्दलीयों के समर्थन वापस लेने के कारण मुंडा सरकार गिर गई।

पहला निर्दलीय मुख्यमंत्री

18 सितंबर 2006 को भाजपा से समर्थन वापस लेने वाले मधु कोड़ा ने कांग्रेस और जेएमएम के समर्थन से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और वह प्रदेश के पहले निर्दलीय मुख्यमंत्री बने। उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए। जांच एजेंसियों ने उनके कार्यकाल में कथित घोटालों की जांच की, जिसके कारण कांग्रेस ने उनसे समर्थन वापस ले लिया। अब गेंद JMM के पाले में आ गई और एक बार फिर से शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बन गए। सोरेन 145 दिन तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन रहे।

बिना विधानसभा की सदस्यता के मुख्यमंत्री बने शिबू सोरेन के लिए उनकी पार्टी का कोई नेता कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं था। हालांकि इस बीच JDU विधायक रहे रमेश मुंडा का निधन हो गया। अब यहां से सोरेन ने चुनाव लड़ने का फैसला किया, लेकिन उनको JDU के गोपाल कृष्ण पातर (उर्फ राजा पीटर) से करारी हार का सामना करना पड़ा। इस तरह आरजेडी, कांग्रेस और JMM की सरकार गिरी और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया जो 345 दिनों तक चला।

प्रदेश में दूसरा विधानसभा चुनाव

प्रदेश में दूसरा विधानसभा चुनाव साल 2009 में हुआ। इसमें किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस और जेवीएम (बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा) के गठबंधन को 25 सीटें मिलीं। इसमें कांग्रेस के खाते में 14 सीटें आईं और JVM को 11 सीटें मिली थीं। इन चुनावों में NDA के गठबंधन को 20 सीटों पर संतोष करना पड़ा। इसमें BJP ने 18 और JDU ने दो सीटें जीती थीं। ऐसे में JMM के 18 विधायक और 13 निर्दलीय पावर में आ गए। इसके साथ ही इन चुनावों में RJD को भी 5 सीटों पर जीत मिली थी। अब कांग्रेस भी JMM, RJD और निर्दलीयों के साथ सरकार बनाने की कोशिश करने लगी। हालांकि वो मुख्यमंत्री का पद शिबू सोरेन को नहीं देना चाहती थी, जबकि वह इसके लिए अड़े हुए थे।

जब कांग्रेस से बात नहीं बनी तो शिबू सोरेन ने भाजपा की ओर हाथ बढ़ाया। बात बनी और इस बार सोरेन NDA के सहयोग से मुख्यमंत्री बन गए और रघुबर दास उपमुख्यमंत्री बनाए गए। अभी भी शिबू सोरेन विधायक नहीं बल्कि सांसद थे। कुछ दिनों तक सब ठीक चला, लेकिन इस बीच लोकसभा में एक बिल आया। सोरेन NDA में होते हुए भी इसके खिलाफ आ गए। इसके बाद NDA ने समर्थन वापस लिया और फिर से 30 मई को सोरेन की सरकार गिर गई। राज्य में 102 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लग गया।

प्रदेश में दूसरी बार लगे राष्ट्रपति शासन के दौरान BJP ने सेटिंग बैठा ली और JMM, आजसू के समर्थन से प्रदेश में अर्जुन मुंडा की सरकार बन गई। इसमें हेमंत सोरेन और सुदेश महतो उप मुख्यमंत्री बने। हेमंत सोरेन के मन में पिता की तरह मुख्यमंत्री बनने की लालच थी, उन्होंने प्रदेश में एक बार फिर से डोमिसाइल का मुद्दा उठाया और लगभग ढाई साल बाद बीजेपी से समर्थन वापस ले लिया।

प्रदेश में तीसरी बार 176 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लग गया। राष्ट्रपति शासन के दौरान फिर से सियासी दलों ने सरकार बनाने के लिए दांव पेच लगाए। आखिरकार 13 जुलाई 2013 को कांग्रेस और आरजेडी के सहयोग से हेमंत सोरेन प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। उन्होंने 1 साल 168 दिनों तक प्रदेश की सत्ता संभाली।

तीसरे चुनाव में भाजपा की वापसी

विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद साल 2014 में फिर से विधानसभा के चुनाव कराए गए। इसमें बीजेपी ने 37 सीटें हासिल कर NDA के सभी दलों के सहयोग से बाबूलाल मरांडी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। उन्होंने 29 दिसंबर 2019 तक प्रदेश की जिम्मेदारी संभाली। वह प्रदेश के इतिहास में पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया।

2019 के बाद से हुए बड़े खेल

प्रदेश में चौथा विधानसभा चुनाव साल 2019 में हुआ। इसमें बीजेपी 25 सीटें ही जीत पाई। खुद मुख्यमंत्री रघुबर दास चुनाव हार गए। इन चुनावों में JMM ने गलतियों से सीखते हुए कांग्रेस और आरजेडी के साथ गठबंधन कर बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया। इन चुनावों में JMM को 30, कांग्रेस को 16 और आरजेडी को 1 सीट मिली। कुल 47 विधायकों के समर्थन से हेमंत सोरेन दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, इस बार भी उनका कार्यकाल पूरा नहीं हो पाया। 31 जनवरी 2024 को ED ने इनको जमीन घोटाले के मामले में गिरफ्तार किया। इसके बाद उन्होंने इस्तीफा देकर अपनी जिम्मेदारी चंपई सोरेन को सौंप दी, लेकिन जब उन्हें कोर्ट से जमानत मिली तो चंपई सोरेन को कुर्सी छोड़नी पड़ गई। चंपई सोरेन 3 जुलाई 2024 तक कुर्सी पर रहे। इसके बाद 4 जुलाई 2024 को हेमंत सोरेन फिर से प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए।

सियासी अखाड़े में आते रहे उतार-चढ़ाव

इस तरह, झारखंड की राजनीति में लगातार उतार-चढ़ाव आते रहे हैं. बाबूलाल मरांडी से लेकर हेमंत सोरेन तक के सफर में राज्य ने कई मोड़ देखे हैं. वहीं सियासी दाव-पेंच के बीच राज्य में 3 बार राष्ट्रपति शासन भी लगाया गया। झारखंड इस बात का उदाहरण है कि सत्ता के लिए हर तरह का गठबंधन मंजूर है. अब देखना होगा कि, 2024 के विधानसभा चुनाव में जनता किसे बहुमत देती है और अगला मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा कर पाता है कि नहीं.

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