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हार पचा नहीं पाते तो रोते हैं ईवीएम का रोना, सिर्फ विपक्ष ही नहीं, कभी बीजेपी ने भी उठाए थे ईवीएम पर सवाल

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– विकास मिश्र:

1999 के लोकसभा चुनाव में पहली बार जब ईवीएम यानी इलेक्टॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल हुआ था, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि हर चुनाव में कोई न कोई ईवीएम पर सवाल उठाएगा। जीतने वाली पार्टी चुप रहेगी, लड्डू बांटेगी और हारने वाली पार्टी ईवीएम का रोना रोएगी। अभी ताजा ताजा खबर है महाराष्ट्र की, जहां करारी हार के बाद महाविकास अघाड़ी के लोग ईवीएम पर हार का दोष मढ़ रहे हैं। उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना के नेता संजय राउत ने नतीजे आने के बाद ईवीएम पर अपनी भड़ास निकाली और इस नतीजे के लिए ईवीएम को दोषी करार दे दिया। संजय राउत ने कुछ नेताओं की बड़ी जीत पर सवाल उठाते हुए कहा,- “डेढ़ लाख से अधिक वोट प्राप्त करने के लिए उन्होंने कौन सा क्रांतिकारी काम किया है? यहां तक कि हाल ही में दल बदलने वाले नेता भी विधायक बन गए हैं। इससे संदेह पैदा होता है। पहली बार शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेता ने ईवीएम को लेकर संदेह जताया है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”

ईवीएम का रोना रोने वालों की सुप्रीम कोर्ट ने खबर ली

इसी बीच हार के बाद ईवीएम को लेकर रोना रोने वाले दलों की सुप्रीम कोर्ट ने अच्छी खबर ली। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव करवाने की मांग को लेकर नंदिनी शर्मा ने एक जनहित याचिका दायर की थी। 26 नवंबर को उसकी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस विक्रम नाथ और पीबी वराले की बेंच ने खारिज कर दिया। पीआईएल के याचिकाकर्ता ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी का हवाला दिया और कहा कि इन नेताओं ने भी ईवीएम से छेड़छाड़ की बात कही थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी तल्ख टिप्पणी में कहा- ‘जब आप हारते हैं तो ईवीएम से छेड़छाड़ की जाती है, जब आप जीतते हैं तो ईवीएम ठीक रहती है। जब चंद्रबाबू नायडू या जगन मोहन रेड्डी हारते हैं तो वे कहते हैं कि ईवीएम से छेड़छाड़ की जा सकती है, जब वे जीतते हैं, तो वे कुछ नहीं कहते, हम इस याचिका को खारिज कर रहे हैं। यह वह जगह नहीं है जहां आप इस सब पर बहस करें।’ इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी।

भारत में क्यों जरूरी था ईवीएम से चुनाव

1999 में ईवीएम से मतदान के बाद तो चुनावों की तस्वीर ही बदल गई। जहां लोकसभा और विधानसभा चुनावों के सभी नतीजे आने में तीन-चार दिन लग जाते थे, वहीं सुबह मतगणना के बाद दोपहर तक तस्वीर साफ हो जाती है और शाम तक सभी नतीजे आ जाते हैं। यह तो हुई सुविधा की बात, लेकिन ईवीएम ने भारतीय चुनावी इतिहास का एक बड़ा दाग धो दिया। वो दाग था वोटों की लूट और बूथ कैप्चरिंग का। 1980 और 1990 के दशक चुनावों में बूथ कैप्चरिंग के लिए कुख्यात रहे। जहां बाहुबलियों में जोर आजमाइश होती थी, वहां बूथ कैप्चरिंग और हिंसा बहुत आम बात थी। सबसे ज्यादा बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं बिहार में होती थीं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा चुनाव बीता हो, जिसमें बूथ कैप्चरिंग नहीं की गई हो। ईवीएम के आने बाद चुनावों में बूथ कैप्चरिंग का अभिशाप मिट गया।

जब शुरू हुआ ईवीएम का विरोध

1999 लोकसभा चुनावों में पहली बार भारत में ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हुआ। इस चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी। अगला लोकसभा चुनाव हुआ 2004 में और वो चुनाव एनडीए हार गया। केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी। अगला लोकसभा चुनाव हुआ 2009 में, तब बीजीपी ने लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित किया था। बीजेपी आश्वस्त थी कि सत्ता उसे ही मिलेगी, लेकिन हो गया उल्टा। कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए दूसरी बार सत्ता में आई। तब बीजेपी ने ईवीएम पर सवाल उठाया था। लालकृष्ण आडवाणी, बीजेपी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव और जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे। इन नेताओं का कहना था कि 2009 में ईवीएम के जरिए लोकसभा चुनावों में धांधली की गई। सुब्रमण्यम स्वामी तो बाकायदा सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गई थे।

मोदी युग आने के बाद ईवीएम को विपक्ष ने बनाया खलनायक

2009 में भले ही बीजेपी ने ईवीएम पर सवाल उठाए हों, लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई तो इस बार कांग्रेस ने ईवीएम पर सवाल उठा दिए। 2017 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी प्रचंड बहुमत में आई, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी की बुरी तरह हार हुई तो समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ईवीएम पर सवाल उठाने लगे। मार्च 2017 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद 13 राजनीतिक पार्टियां चुनाव आयोग गईं और ईवीएम पर सवाल उठाए। 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में भी ईवीएम पर सवाल उठे। परिपाटी यही रही कि जहां जहां विपक्ष की हार हुई, वहां वहां ईवीएम पर सवाल उठाए गए। तभी तो सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी तल्ख टिप्पणी की।

ईवीएम से चुनाव क्यों..?

1- सुरक्षा- ईवीएम चुनाव का सुरक्षित माध्यम है, इसमें छेड़छाड़ मुश्किल है। इसमें विशेष तरह की चिप लगी होती है।
2- सबसे तेज – ईवीएम से मतदान की प्रक्रिया तेज हो जाती है। मतगणना भी तेज होती है, चुनावी नतीजे भी जल्दी आ जाते हैं।
3- सुविधाजनक- ईवीएम से मतदान बहुत आसान है, वोटर को बस अपने प्रिय प्रत्याशी वाला बटन दबाना होता है और मतदान हो जाता है।
4- बूथ कैप्चरिंग का खतरा नहीं- ईवीएम आने के बाद से देश में बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं करीब-करीब समाप्त हो गईं।

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