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– श्यामदत्त चतुर्वेदी:
कार्ड छप गए हैं…न्यौता पहुंच गया है। अब साफ हो गया है कि महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनीवीस ही बनेंगे। शपथ की तारीख 5 दिसंबर तय की गई है। अब सवाल उठता है कि जब गठबंधन के पास पूर्ण बहुमत था तो 23 नवंबर को रिजल्ट आने के बाद से मुख्यमंत्री नाम तय करने में इतना वक्त क्यों लगा। जबकि 26 नवंबर को विधानसभा का कार्यकाल खत्म होते ही एकनाथ शिंदे ने इस्तीफा सौंप दिया था। इन सभी सवालों का जवाब भी एकनाथ शिंदे ही हैं। आइये जानें की आखिर शिंदे में ऐसा क्या है जो उन्होंने महायुति को पूर्ण बहुमत के बाद भी मामले को 10 दिन खींच दिया और बीजेपी किस कारण उन्हें इतना मान मनौव्वल करती रही।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए 20 नवंबर को मतदान हुए। 23 नवंबर को परिणाम सबके सामने आए। महायुति को 230 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत मिला। बीजेपी ने 132, शिंदे की शिवसेना ने 57 और अजित की NCP ने 41 सीटों पर जीत हासिल की। इसके बाद माना जा रहा था कि 26 तारीख से पहले मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान हो जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कारणों के बारे में भले कोई बात न करें लेकिन इसका कारण एकनाथ शिंदे को मनाना ही थी।
एकनाथ शिंदे क्यों अड़े रहे?
पिछले 10 दिनों से देश में एक सबसे सवाल यही था कि महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कौन होगा? लोक कयास लगा रहे थे कि शिंदे अड़े हुए हैं। वो या तो मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। उन्हें डिप्टी सीएम का पद स्वीकार नहीं है। इसके साथ ही उनको कुछ बड़े मंत्रालय चाहिए। खैर ये तो उनके मन की बात थी। इसके अलावा 3 बड़े कारण हैं जिस कारण शिंदे ने इतने दिनों का होल्ड ले लिया।
1- मुख्यमंत्री पद का छोड़ना सियासी जोखिम: एकनाथ शिंदे ने शिवसेना की विरासत की लड़ाई जीत ली है। हालांकि, उनका मुख्यमंत्री बने रहना उनके राजनीतिक करियर को और उड़ान देता। इतनी सीटें हासिल करने के बाद उनको प्रभावशाली मंत्रालय नहीं मिलते तो उनकी पार्टी और कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर होता। ऐसे में लोगों को जोड़े रहना उनके लिए मुश्किल होता।
2- कमजोर हो सकती है छवि: एकनाथ शिंदे खुद को शिवसेना का असली वारिस बताते हैं लेकिन उनकी पार्टी को गृह, वित्त जैसे ताकतवर विभाग नहीं मिलते, तो उनकी छवि कमजोर हो सकती है। शिंदे यह नहीं चाहते कि उन्हें केवल एक आंदोलनकारी नेता के रूप में देखा जाए। यह उनके लिए राजनीतिक अस्तित्व और पहचान का सवाल बन चुका है।
3- हिंदुत्व की विचारधारा: उद्धव ठाकरे से अलग होने के बाद शिंदे ने हिंदुत्व की राजनीति करने लगे। उन्होंने MVA पर आरोप लगाए की वह लोग (MVA सरकार) बालासाहेब ठाकरे के विचारों के खिलाफ है। ऐसे में उनके सियासी सफर के लिए विपक्ष कम बीजेपी बड़ी चुनौती है। क्योंकि बीजेपी भी हिंदुत्व की राजनीति करते हैं। इस कारण शिंदे के लिए जरूरी था कि वो उसे साधकर चलें और अपनी एक पहचान बनाए रखें।
भाजपा क्यों करती रही मान मनौव्वल?
सवाल या मुद्दा केवल इतना नहीं है कि शिंदे ने महाराष्ट्र की सियासत को इतना खींच दिया। आमतौर पर पर्याप्त सीटें होने के बाद भाजपा सहयोगियों को भाव नहीं देती, लेकिन महाराष्ट्र में मुद्दा कुछ और ही था। इसी कारण बीजेपी 10 दिन तक एकनाथ शिंदे का मान मनौव्वल करती रही। इसके पीछे सरकार बनाना नहीं बल्कि 3 सियासी मायने हैं।
1- मराठा नाराजगी से बचने की कोशिश: भाजपा महाराष्ट्र में मराठा समुदाय की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहती। एकनाथ शिंदे भी मराठा समुदाय से आते हैं। ऐसे में यदि भाजपा उन्हें हटाकर किसी अन्य नेता को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लेती है, तो यह कदम बेहद सोच-समझकर उठाना पड़ता। यानी इसके लिए भी शिंदे की राय जरूरी थी। ताकि मराठा समुदाय के बीच कोई नकारात्मक संदेश न जाए।
2- केंद्र में समर्थन: शिवसेना (शिंदे गुट) के 7 सांसद केंद्र में भाजपा सरकार को समर्थन दे रहे हैं। ऐसे में, यदि शिंदे भाजपा से अलग होते तो केंद्र में एनडीए सरकार कमजोर हो सकती थी। भाजपा इस स्थिति से बचने का हर संभव प्रयास कर रही थी। इस कारण भी वो शिंदे को मनाने में लगी थी।
3- मुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन चुनाव: मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन देश की सबसे बड़ी नगर पालिका है, जिसका सालाना बजट करीब 60 हजार करोड़ रुपए है। अभी यहां उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाला शिवसेना गुट सत्ता में है। जब शिंदे ने शिवसेना से अलग होकर अपना गुट बनाया तो मुंबई के कई बड़े नेता उनके साथ आ गए। भाजपा के लिए यह बेहद अहम है कि आगामी म्युनिसिपल चुनावों में शिंदे का समर्थन बरकरार रहे।
4- शिंदे की नाराजगी से भाजपा को खतरा: यदि शिंदे महायुति गठबंधन से अलग होते तो इसका सीधा लाभ उद्धव ठाकरे को मिलता। जनता को यह संदेश जाता कि भाजपा ने शिंदे को “यूज एंड थ्रो” की नीति के तहत इस्तेमाल किया। इससे उद्धव ठाकरे की छवि मजबूत होती और वे मराठा समुदाय के बीच फिर से लोकप्रिय हो जाते।
5- बड़ी पार्टी का खतरे में पड़ना: भाजपा ने शिवसेना को तोड़ने के बाद पहली बार महाराष्ट्र में खुद को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित किया है। यदि उद्धव ठाकरे मजबूत होते तो भाजपा के लिए राज्य में राजनीतिक चुनौतियां बढ़ सकती हैं। खतरा इस बात की भी पढ़ सकता था कि शिंदे घर वापसी कर लेते या फिर एक विचार का कोई और गठबंधन बनाकर मराठी मानुष के नाम पर बीजेपी को ही चुनौती दे देते।
नो रिस्क वाली कंडीशन में बीजेपी
महाराष्ट्र में सत्ता संतुलन बनाए रखना भाजपा के लिए बेहद जरूरी है। शिंदे के साथ के बिना भाजपा को न केवल मराठा समुदाय की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है, बल्कि केंद्र और राज्य की राजनीति में भी उसे बड़ा नुकसान हो सकता है। इस स्थिति को संभालने के लिए भाजपा मराठा समुदाय के बीच अपनी छवि को बनाए रखने और शिंदे को साथ रखने की रणनीति पर काम कर रही है।