#स्पोर्ट्स

दोस्त, क्रिकेट, और जिंदगी: सचिन और कांबली दोनों की क्रिकेट इंनिंग खत्म, लेकिन दोस्ती ‘नॉटआउट’

Sachin vinod - Dayitva Media
Getting your Trinity Audio player ready...

– गोपाल शुक्ल:

बचपन के दो दोस्तों की ये कहानी सिर्फ एक कहानी भर नहीं है, बल्कि जिंदगी की एक जरूरी सीख भी है। इस कहानी में जो सबसे जरूरी पहलू है वो ये कि जिदगी में मौके तो सबको मिलते हैं, लेकिन उन्हें सही दिशा में ले जाना आपके अपने हाथ में होता है।

एक कामयाब गुरू के कामयाब शिष्य

क्रिकेट की दुनिया में जो मुकाम गुरु रमाकांत आचरेकर को हासिल है उसका सपना शायद क्रिकेट का हर कोच देखता है। कौन कौच ऐसा होगा जो नहीं चाहेगा कि उसके सिखाए शिष्य क्रिकेट के आसमान पर सितारा बनकर चमकते रहें। सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का भगवान कहा जाता है। मुंबई के मशहूर शिवाजी पार्क में उस महान कोच आचरेकर के स्मारक का अनावरण होना था। इस मौके पर सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली समेत ज्यादातर वो तमाम दिग्गज क्रिकेटर मौजूद थे जिन्होंने गुरु रमाकांत आचरेकर से क्रिकेट की बारीकियों को सीखते सीखते डांट भी खाई और शाबाशी भी पायी।

सचिन और कांबली का अतीत घूम गया जेहन में

क्रिकेट के अपने दौर के इतने बड़े सितारों का जब मेला लगा तो जाहिर है कि तस्वीरों में भी इस मौके को कैद होना था। हुआ भी। लेकिन एक तस्वीर अचानक वायरल हो गई जिसने लोगों को सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली के बचपन की तस्वीर और बचपन की कहानियों के गहरे समंदर में डुबो दिया। इस वायरल तस्वीर के जरिए उनका सारा अतीत लोगों के जेहन में किसी फीचर फिल्म की तरह गुजर गया। मंच पर खड़े इन दो दोस्तों के हालात की तस्वीरें एक बड़ा सवाल भी उठाती हैं कि क्यों कुछ सपने साकार होते हैं और कुछ अधूरे रह जाते हैं?

वायरल वीडियो और जिंदगी का सच

वीडियो वायरल में विनोद कांबली एकदम बूढ़े मजबूर और हर लिहाज से बेहद कमजोर दिखाई दे रहे हैं, जबकि सचिन उसी तरह एकदम ताजा दम, स्मार्ट और अपने करियर की तरह चमकदार नज़र आ रहे थे। उस वीडियो में कांबली सचिन का हाथ पकड़े दिखाई दिए।

बचपन में लिख दिए थे बड़े कारनामों के किस्से

कभी शिवाजी पार्क के मैदान पर बल्ला थामे एक ही गुरु से क्रिकेट की बारीकियां सीखने वाले सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली की दोस्ती ने भारत के क्रिकेट इतिहास में सुनहरे अक्षरों से अपनी छाप छोड़ी। दोनों एक साथ खेलते थे, एक ही मैदान पर अपना क्रिकेट का हुनर सीखते थे। दोनों ने मिलकर बचपन में ही अपने हुनर की झलक दिखा दी थी और वर्ल्ड रिकॉर्ड पार्टनरशिप से आने वाले दिनों की सुर्खियों में जगह पक्की कर ली थी। दोनों एक दूसरे के जीवन के सबसे अहम हिस्सा बन चुके थे। बचपन में, जब सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली ने शिवाजी पार्क में अपने क्रिकेट का हुनर दिखाया ये बात उसी वक्त तय हो गई थी कि एक दिन ये दोनों भारतीय क्रिकेट के सबसे चमकदार सितारे होंगे। लेकिन वक्त का सितम देखिये, एक झटके में उनकी राहें जुदा हो गई और इस कदर दोनों अलग हो गए कि जब इस मोड़ पर आकर मिले तो एक दूसरे से अजनबी लग रहे थे।

एक सपना साकार हुआ एक अधूरा टूट गया

उन दोनों की जिंदगी की राहें इस कदर जुदा हुईं कि एक ने कामयाबियों की बुलंदियों का नया आसमान छुआ और दूसरा संघर्षों की धुंध में कहीं खो गया।

दोनों की वो ऐतिहासिक साझेदारी

मुंबई का शिवाजी पार्क सिर्फ क्रिकेट का मैदान नहीं है, बल्कि इन दोनों दोस्तों की मेहनत और संघर्ष का जीता जागता गवाह भी है। 1988 में विनोद कांबली और सचिन तेंदुलकर ने हैरिस शील्ड में रिकॉर्ड 664 रनों की साझेदारी की थी। यह ऐतिहासिक रिकॉर्ड 1988 में तब बना था जब दोनों ने मुंबई के शैरी हसन स्कूल के लिए खेलते थे। यह रिकॉर्ड क्रिकेट इतिहास में अब भी याद किया जाता है और उस समय यह दुनिया की सबसे बड़ी साझेदारी का रिकॉर्ड था।

क्रिकेट से हटकर दोनों की बेजोड़ दोस्ती

पूरा देश इन दोनों उभरते क्रिकेटरों की हिम्मत, हुनर और हौसले को देखकर समझ चुका था कि ये दोनों जस्ट डिफरेंट हैं। मगर इस बात पर थोड़ा गौर करें तो यह सिर्फ क्रिकेट का खेल नहीं था, यह दोनों के बीच दोस्ती का भी मामला था, जो दोनों के बीच बेजोड़ था।

सचिन तेंदुलकर यानी एक महानायक

सचिन तेंदुलकर का नाम सुनते ही हमारे जेहन में क्रिकेट का महानायक उभरता है। वो खिलाड़ी जिसने न सिर्फ भारत को गर्व महसूस कराया, बल्कि पूरी दुनिया में क्रिकेट को एक नई पहचान दी।

कामयाबी का बुलंद आसमान

सचिन तेंदुलकर की कामयाबी के कभी खत्म न होने वाले किस्से हैं। क्रिकेट में बल्लेबाजी का वो कौन सा रिकॉर्ड है जिसे सचिन के करियर से जुड़ता हुआ नहीं देखा जाता। 100 अंतरराष्ट्रीय शतक, 200 टेस्ट मैच और वर्ल्ड कप जीतने के बाद, वे भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े सितारे बन चुके हैं।

बहुत कुछ सिखाती है सचिन की कहानी

लेकिन सचिन तेंदुलकर ने कुछ बातों को कभी नज़र अंदाज नहीं किया। वो है उनकी जीवनशैली और उनका अनुशासन। सचिन के अपने खेल को लेकर लगाव और उसके लिए हर दम जूझने की उनकी क्षमता उनकी कार्यशैली और अनुशासन ने उन्हें एक रोल मॉडल बना दिया। सचिन खेल के साथ-साथ समाज सेवा में भी एक्टिव रहते थे। ऐसे में सचिन का जीवन ये बताने के लिए काफी है कि अगर मेहनत और समर्पण सच्चे दिल से हो, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं रह पाती।

सचिन से उल्टा है विनोद कांबली का जीवन

सचिन तेंदुलकर दाहिने हाथ के बल्लेबाज थे। जबकि विनोद कांबली का न सिर्फ बल्लेबाजी स्टाइल बल्कि देखा जाए तो उनका क्रिकेट करियर सचिन से एकदम अलग था। विनोद कांबली ने अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत बहुत तेज़ की। कुदरती हुनर ने उन्हें क्रिकेट में काफी ऊंचे पायदान पर बहुत जल्दी पहुँचा दिया। लेकिन स्थिरता की कमी ने उनके करियर को वहीं कहीं अधूरा छोड़ दिया। कांबली ने करियर में जिस तेजी से उड़ान भरी थी, उतनी ही तेजी से उन्हें ढलान का सामना करना पड़ा। वो टीम में टिककर नहीं रह सके। बदकिस्मत विनोद कांबली की निजी जिंदगी के बवालों ने और उनकी लापरवाहियों और अनुशासनहीनता ने उनका क्रिकेट का उठता हुआ करियर चौपट कर दिया।

तेजी से उठा करियर जल्दी ढलान पर पहुँचा

विनोद कांबली का करियर तेज़ी से शुरू हुआ लेकिन उतनी ही तेजी से ढलान पर चला गया। विनोद कांबली ने अपने क्रिकेट में सिर्फ 17 टेस्ट मैच खेले और 1084 रन बनाए जिसमें दो दोहरे शतक हैं। लेकिन उनके करियर में स्थिरता की बेहद कमी नज़र आई। क्रिकेट के मैदान के बाहर भी कांबली के जीवन में संघर्षपूर्ण बना रहा। आर्थिक तंगी और बेरोजगारी ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था।

दोस्ती की इस कहानी में छिपा बड़ा सबक

इन दोनों दोस्तों की कहानी में एक बहुत बड़ा सबक छिपा हुआ है। सचिन की जिंदगी बताती है कि अनुशासन और समर्पण कामयाबी की कुंजी हैं। जबकि कांबली की जिंदगी सिखाती है कि केवल प्रतिभा ही पर्याप्त नहीं, सही दिशा और मेहनत भी जरूरी है।

जिंदगी के दो अलग पहलुओं का खुलासा है सचिन और कांबली

सचिन और विनोद कांबली की कहानी अकेले क्रिकेट या दोस्ती की कहानी नहीं है, बल्कि जिंदगी के दो पहलुओं का खुलासा है। आज के नौजवान और कामयाबी के पीछे भागने वालों के लिए ये एक बड़ा सबक है कि जिंदगी में मिले हर मौके को संभालकर रखना और उसकी कद्र करना कितना जरूरी है। वर्ना जिंदगी में एक मोड़ ऐसा ही मिलता है जहां बचपन का याराना किसी बेगाने की तरह मिलता है जैसे सचिन और कांबली मुंबई में एक मंच पर मिले।

Author

  • गोपाल शुक्ल - दायित्व मीडिया

    जुर्म, गुनाह, वारदात और हादसों की ख़बरों को फुरसत से चीड़-फाड़ करना मेरी अब आदत का हिस्सा है। खबर का पोस्टमॉर्टम करने का शौक भी है और रिसर्च करना मेरी फितरत। खबरों की दुनिया में उठना बैठना तो पिछले 34 सालों से चल रहा है। अखबार की पत्रकारिता करता था तो दैनिक जागरण और अमर उजाला से जुड़ा। जब टीवी की पत्रकारिता में आया तो आजतक यानी सबसे तेज चैनल से अपनी इस नई पारी को शुरु किया। फिर टीवी चैनलों में घूमने का एक छोटा सा सिलसिला बना। आजतक के बाद ज़ी न्यूज, उसके बाद फिर आजतक, वहां से नेटवर्क 18 और फिर वहां से लौटकर आजतक लौटा। कानपुर की पैदाइश और लखनऊ की परवरिश की वजह से फितरतन थोड़ा बेबाक और बेलौस भी हूं। खेल से पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन अब तमाम विषयों को छूना और फिर उस पर खबर लिखना शौक बन चुका है। मौजूदा वक्त में DAYITVA के सफर पर हूं बतौर Editor एक जिम्मेदारी का अहसास है।

    View all posts
दोस्त, क्रिकेट, और जिंदगी: सचिन और कांबली दोनों की क्रिकेट इंनिंग खत्म, लेकिन दोस्ती ‘नॉटआउट’

14 साल पहले 14 साल के एक

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *